गुवाहाटी उच्च न्यायालय (Gauhati High Court) के प्लेटिनम जयंती समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) और कानून मंत्री किरन रिजिजू एक साथ शामिल हुए। गुवाहाटी हाईकोर्ट के 75 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित इस समारोह में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सार्वजनिक दिखावे की जगह विचार-विमर्श और संवाद होना चाहिए।

उन्होंने कहा, “प्रशासनिक पक्ष में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों को एक मजबूत संवैधानिक राजनीति के साथ चिह्नित किया जाना चाहिए। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका जैसे तीनों अंग राष्ट्र निर्माण में लगे हुए हैं। लेकिन न्यायिक पक्ष पर नागरिकों का विश्वास न्यायिक स्वतंत्रता के व्यापक अर्थ में निहित है। न्यायिक संस्था की वैधता हमारे नागरिकों के विश्वास पर निर्भर करती है और यह विश्वास केवल एक कारक से निर्धारित किया जाता है कि क्या हम संकट और आवश्यकता के समय नागरिकों के लिए पहली और आखिरी पसंद बनते हैं।”

गुवाहाटी उच्च न्यायालय के प्लेटिनम जयंती समारोह में बोलते हुए CJI ने आपातकाल के दौरान उच्च न्यायालय द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों पर प्रकाश डाला। गुवाहाटी हाईकोर्ट की स्थापना साल 1948 में हुई थी। कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी शामिल हुईं।

कानून मंत्री ने क्या कहा?

उसी कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने कहा, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मतभेद लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और इसे ‘टकराव’ नहीं कहा जाना चाहिए। कुछ तत्व भारत की प्रगति नहीं देखना चाहते हैं और इसलिए यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव है।

उन्होंने कहा, “कानून मंत्री के रूप में कानून को बनाए रखना कर्तव्य है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, कभी-कभी हम समान चर्चा और बहस के शिकार होते हैं। CJI ने अपना मन स्पष्ट कर दिया है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण होने चाहिए। कुछ तत्व करते हैं आज के ऑनलाइन युग में भारत को प्रगति नहीं देखना चाहते हैं। ऐसी स्थिति को चित्रित करने का प्रयास किया गया है जहां सरकार और न्यायपालिका में मतभेद हैं। राय के मतभेद लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं लेकिन इसे टकराव नहीं कहा जा सकता है।”

केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा, “बार और न्यायपालिका के सदस्यों को एक साथ काम करना होगा। न्यायाधीश और बार के सदस्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, दोनों के बिना न्याय नहीं हो सकता।”

जजों की नियुक्ति को लेकर विवाद

मंच साझा करने के दौरान सीजेआई और कानून मंत्री ने भले ही किसी टकराव से इनकार किया है। लेकिन पिछले कुछ समय से जजों की नियुक्ति की प्रणाली ‘कॉलेजियम सिस्टम’ को लेकर न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच बयानबाजी की घटनाएं आम हुई हैं। कानून मंत्री स्पष्ट शब्दों में कॉलेजियम सिस्टम में ‘पारदर्शिता की कमी’ को रेखांकित कर चुके हैं।

पिछले साल अक्टूबर में, रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली बहुत अपारदर्शी है और दुनिया में कहीं भी न्यायाधीश न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करते हैं।

5 नवंबर को उन्होंने कहा था कि न्यायिक समुदाय के भीतर भी गहन राजनीति चल रही है जो वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार है और कॉलेजियम प्रणाली में ‘पारदर्शिता की कमी’ पर केंद्र सरकार हमेशा के लिए ‘चुप’ नहीं रहेगी।

इसके बाद कई पूर्व न्यायाधीशों की नाराजगी सामने आयी, जिन्होंने यह कहते हुए पलटवार किया कि पारदर्शिता की कमी वास्तव में सरकार की ओर से है।