ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम करीब सात बजे भीषण ट्रेन हादसा हुआ। कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841), सर एम. विश्वेश्वरैया-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864) और मालगाड़ी के एक्सीडेंट से 238 लोगों की जान चली गई है। करीब 900 लोग घायल हैं। कौन सी ट्रेन पहले हादसे का शिकार हुई, इसे लेकर अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं।

कैसे हुआ ट्रेन हादसा?

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, शालीमार से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के 12 डिब्बे पटरी से उतर गए और बगल के ट्रैक से गुजर रही हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन (12864) से जा टकराए। कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन का बोगी नंबर बी2 से बी9, ए1 से ए2, बी1 और इंजन हादसे का शिकार हो गए। टक्कर से हावड़ा एक्सप्रेस के जनरल बोगी नंबर 1 और 2 पीछे की तरफ से पटरी से उतर गए। इसके बाद आयी मालगाड़ी भी कोरोमंडल ट्रेन के डिब्बों से ही टकरा गई।

कैसे पटरी से उतर जाती है ट्रेन?

ट्रेनों के पटरी से उतरने के कई कारण होते हैं। अक्सर टूटी हुई पटरी और स्वीच में गड़बड़ी के कारण  ट्रेन पटरी से उतर जाती है। ये खामियां खराब रखरखाव, मौसम की मार या अन्य दूसरे कारणों से परिणामस्वरूप देखने को मिलते हैं।

कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि भारतीय रेल की पटरियों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में हाई स्पीड ट्रेन के पहियों और ट्रैक के बुनियादी ढांचे पर अधिक दबाव पड़ने से, ट्रेन के डिरेल होने का खतरा बढ़ जाता है।

कई बार ट्रेन के डिरेल होने में मानवीय त्रुटियों का भी योगदान होता है। ट्रेन ऑपरेटरों, सिग्नल अनुरक्षकों, या रखरखाव कर्मियों द्वारा की गई गलतियों के कारण भी ट्रेन पटरी से उतर सकती है। इसमें गलत स्विचिंग, सुरक्षा प्रोटोकॉल का ठीक से पालन न करना या पटरियों और उपकरणों के निरीक्षण व रखरखाव में लापरवाही शामिल हैं।

मशीनों के फेल हो जाने के कारण भी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं। ट्रेन के पुर्जों जैसे पहिए एक्सल, बियरिंग या ब्रेकिंग सिस्टम के फेल होने पर भी डिब्बों के पटरी से उतर जाने का खतरा होता है।

पटरियों पर मौजूद वस्तुएं, जैसे कि मलबा, गिरे हुए पेड़, या वाहन, ट्रेन के पटरी से उतरने का कारण बन सकते हैं। रेलवे नियमित निरीक्षण, रखरखाव और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन कर सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।

कवच सिस्टम क्यों नहीं किया काम?

कवच को लेकर दावा किया जाता है कि वह ट्रेन हादसों को रोकने में कारगर है। कवच को लेकर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने पहले कहा था, “हम अपना एक सिस्टम कवच बना रहे हैं। कवच यूरोप के सिस्टम से भी ज़्यादा बेहतर है। हमने एक टेस्ट भी किया। इस टेस्ट में एक ट्रेन में मैं भी सवार था। एक ही ट्रैक पर दो तरफ़ से हाई स्पीड में ट्रेनें आ रही थीं। ठीक 400 मीटर की दूरी पर कवच सिस्टम ट्रेनों को ख़ुद से रोक देता है। मैं इंजीनियर था तो मैंने इन ट्रेनों में बैठने का रिस्क ख़ुद लिया और इसका परीक्षण किया। मैं बहुत आत्मविश्वास से भरा था।”

अब सवाल है कि ओडिशा की घटना को कवच क्यों नहीं रोक पाया? रेलवे प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने इस सवाल का जवाब दिया है। उन्होंने बताया है कि, “कवच सिस्टम रूट के आधार पर होता है। दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली बॉम्बे रूट पर ही फिलहाल कवच सिस्टम को लगाया जा रहा है। प्रक्रिया में है। जिस रूट पर हादसा हुआ, वहां कवच सिस्टम शुरू नहीं हुआ था।”

कवच एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली है, जिससे ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलती है। कवच प्रणाली की घोषणा वर्ष 2022 के केंद्रीय बजट में की गई थी। तब योजना थी कि वर्ष 2022-23 तक 2000 किलोमीटर रेल नेटवर्क को कवच के तहत लाना था। पहले कवच का नाम ट्रेन कोलिज़न बचाव प्रणाली (Train Collision Avoidance System-TCAS) था। इस पर साल 2012 से काम चल रहा था। अब इसका नाम बदल कवच कर दिया गया है।

कैसे काम करता है कवच?

कवच इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) उपकरणों का एक सेट होता है। इसे लोकोमोटिव तथा सिग्नलिंग सिस्टम के साथ-साथ पटरियों में लगाया जाता है। कवच सिस्टम एक प्रोग्राम के आधार पर काम करता है। कवच सिस्टम ट्रेनों के ब्रेक को कंट्रोल करने के लिये अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है। साथ ही लोको पायलट को सतर्क भी करता है। ऐसा दावा किया जाता है कि अगर दो ट्रेनें एक ट्रैक पर आ रही हों तो कवच दोनों ट्रेनों को रोक देगा। लोको पायलट द्वारा सिग्नल जंप करने पर भी कवच अलर्ट करता है।

ट्रेन हादसों के लिए कौन जिम्मेदार?

“किसी भयानक ट्रेन हादसे के बाद रूटीन जांच के आदेश दिए जाते हैं और जांच आयोग कई महीनों के बाद अपनी रिपोर्ट देता है। तब तक, जनता इस दुर्घटना के बारे में भूल जाती है। और तब तक भूली रहती है, जब तक उस तरह की एक और दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना नहीं हो जाती। फिर मृतकों के आंकड़ों की तुलना की जाती है कि कौन सा दुर्घटना बड़ा था, फिर एक और जांच आयोग का आदेश दिया जाता है। और इस तरह दुर्घटनाओं और नियमित जांच आयोगों का चक्र चलता रहता है।” यह कहना है पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी का।

साल 2016 में पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में एक लेख लिखकर बताया कि ऐसे हादसों के लिए कौन जिम्मेदार होता है। वह लिखते हैं, “रेल हादसों का विश्लेषण किया जाए तो ज्यादातर गरीब लोगों की जान जाती है। ऐसी अधिकांश दुर्घटनाएं राजधानी, शताब्दी आदि के विपरीत गैर-वीआईपी श्रेणी की ट्रेनों में होती हैं। क्या इसका मतलब यह है कि राजधानी और शताब्दी बिल्कुल सुरक्षित हैं? जवाब है- नहीं। चूंकि ट्रैक और सिग्नलिंग सिस्टम एक ही हैं, जो अलग है वह रोलिंग स्टॉक की गुणवत्ता है, अर्थात् लोकोमोटिव, एलएचबी कोच और ऐसी ट्रेनों के गुजरने से पहले पटरियों की बेहतर निगरानी।”

पूर्व रेलमंत्री अपना एक किस्सा बताते हैं, “10 जुलाई को कानपुर के पास फतेफुर मालवा में एक ट्रेन हादसे का शिकार हो गई थी। मैंने 12 जुलाई, 2011 को रेल मंत्री के रूप में शपथ ली। शपथ लेने के तुरंत बाद मैं राष्ट्रपति भवन से सीधे दुर्घटनास्थल पर पहुंचा। यात्रियों और मरने वालों के रिश्तेदारों का दर्द और दुख मुझे आज भी डराता है। मैंने फैसला किया कि रेलमंत्री के रूप में मेरा पूरा जोर ट्रेन यात्रा को सुरक्षित बनाना होगा।  

अब सवाल यह है कि वास्तव में भारतीय रेलवे में क्या समस्या है? हादसों के लिए कौन दोषी है? क्या हम अक्षम रेलवे प्रणाली के लिए ब्रिटिश सरकार दोषी है? हरगिज नहीं क्योंकि विरासत में हमें एक कुशल रेलवे प्रणाली मिली थी। तो क्या गैंगमैन की गलती है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि वह रेल की गुणवत्ता जानने के लिए योग्य नहीं है। मैं उन सभी को दोष दूंगा जिन्होंने भारतीय रेलवे को एक संपत्ति के बजाय एक राजनीतिक उपकरण माना।”

वह जापान की ट्रेन प्रणाली का उदाहरण देते हुए त्रिवेदी लिखते हैं, “सेना के बाद सबसे प्रतिभाशाली लोगों से लैस भारतीय रेलवे अभी भी दुनिया के सबसे अच्छे संगठनों में से एक है। लेकिन इस संगठन की क्षमता की समझ की कमी के कारण लगातार कई सरकारों द्वारा इसे नुकसान पहुंचाया जा रहा है। भारतीय रेलवे को जापानी रेल सिस्टम की तरह बनाने की आवश्यकता। जापान की सुपर फास्ट ट्रेन शिंकानसेन 1964 से हादसे का शिकार नहीं हुई है। उस ट्रेन से यात्रा करने के दौरान किसी की मौत नहीं हुई है। भारतीय रेलवे भी ऐसा करने में सक्षम है, बशर्ते हम इसे आवश्यक संसाधन दें।