देश का पहला राष्‍ट्रपत‍ि चुने जाने को लेकर पंड‍ित जवाहर लाल नेहरू ने जो राजनीत‍ि की थी और राजेंद्र प्रसाद से यह ल‍िखवा ल‍िया था क‍ि वह राष्‍ट्रपत‍ि का चुनाव नहीं लड़ना चाहते, इससे सरदार पटेल को धक्‍का लगा था। राजेंद्र प्रसाद द्वारा उम्‍मीदवार नहीं बनने की इच्‍छा संबंधी पत्र ल‍िखे जाने की जानकारी सरदार पटेल को महावीर त्‍यागी से हुई। त्‍यागी ने राजेंद्र प्रसाद को जाकर बताया क‍ि ब‍िना बताए पत्र ल‍िख देने के उनके कदम से पटेल काफी आहत हैं।

इस पर प्रसाद ने कहा, “गांधीवादी होते हुए मेरे लिए यह कैसे संभव हो सकता था कि मैं बच्चों की तरह पद के लिए जिद करता, पर सरदार से बात जरूर करनी चाहिए थी, मुझे तब समझ नहीं आया, वरना मैं यह कह सकता था कि साथियों और अपने समर्थकों से पूछकर उत्तर दूंगा, पर अब तो जो हो गया, सो गया।”

समस्या को भांपते हुए त्यागी ने सुझाव दिया, “आप जवाहरलालजी को एक पत्र लिख दें कि मैं अपनी बात पर कायम हूं, पर चूंकि पार्टी के साथियों से बिना परामर्श किए अपना नाम वापस लिया है, इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप पार्टी के प्रमुख सदस्यों को बुलाकर समझा दें कि उम्‍मीदवारी से मेरे हट जाने पर चुनाव निर्विरोध हो जाने दें।”

राजेंद्र प्रसाद को यह सुझाव पसंद आया। उन्होंने तुरंत चिट्ठी भिजवा दी। अगले दिन त्यागी जब सरदार के साथ टहलने निकले तो उन्होंने कहा, “तुम्हारा कश्मीरी बहुत सयाना है। उसने कांग्रेस सदस्यों की बैठक आज शाम को मेरे घर बुलाने का निश्चय किया है, ताकि तुम लोगों का मुंह बंद रहे। इसलिए सबको अपनी बात मुलायम शब्दों में रखनी होगी।”

नेहरू का आखिरी प्रयास

बैठक की खबर मिलते ही महावीर त्यागी सत्यनारायण सिन्हा के पास गए। त्यागी लिखते हैं, वो हमारे व्हिप थे। उन्हें अपने पक्षवाले नाम लिखवा दिया, ताकि उनको अवश्य मीटिंग में बुला लिया जाए।

शाम के साढ़े चार बजे औरंगजेब रोड पर सरदार की कोठी के सामने वाले चबूतरे पर बैठक हुई। बैठक आरंभ होते ही जवाहरलाल नेहरू ने भाषण करते हुए बताया कि राजेंद्र बाबू ने अपना नाम वापस ले लिया है और यह बड़े गौरव की बात इतिहास में जाएगी कि हमने प्रथम राष्ट्रपति को निर्विरोध चुन लिया। यों तो मैं जानता हूँ कि राजगोपालाचारी का नाम उनके सन् 1942 के आंदोलन का विरोध करने के कारण कांग्रेस वालों को बहुत अच्छा नहीं लगेगा, पर यदि विदेशी खिड़की से झाँका जाए तो राजाजी का व्यक्तित्व बहुत ऊँचा है, उन्होंने गवर्नर जनरल के रूप में बहुत कुछ नाम कमाया है…।

त्यागी लिखते हैं, “तुरंत ही हमारी टोली के सदस्यों ने खड़े होकर जवाहरलालजी की युक्तियों का खंडन आरंभ कर दिया। पहले शायद जसपतराय कपूर बोले, फिर रामनाथ गोयनका ने बड़े गुस्से से चिल्लाकर कहा कि हमें यह बताइए कि हम राष्ट्रपति कांग्रेस वालों के लिए चुन रहे हैं या उनके विरोधियों के लिए? जब आप अपने मुँह से मान रहे हो कि राजाजी का नाम कांग्रेस वालों को पसंद नहीं आएगा, तो हम क्या गैर-कांग्रेसी हैं?”

गोयनका के बाद त्यागी बोले, “जवाहरलालजी, आपको यह क्या आदत पड़ गई है कि आप हमेशा विदेशी खिड़कियों में से झाँकते हैं? फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे में से देखो तो आप जानोगे कि राजेंद्र बाबू का व्यक्तित्व आसमान के बराबर ऊंचा है।”

इस तरह विरोध का सिलसिला चला। त्यागी के मुताबिक, नेहरू निराश दिखने लगे। इतने में बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने खड़े होकर प्रस्ताव रखा कि राष्ट्रपति के चयन का प्रश्न नेहरू के ऊपर छोड़ दिया जाए। वह हमारी बातों पर उचित रूप से विचार कर लें और अंतिम निर्णय सुना दें। सभी सहमत हो गए। लेकिन तभी किसी ने संशोधन पेश करते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल दोनों मिलकर निर्णय लें। इसके बाद सभी चाय पीकर अपने-अपने घर निकल गए।

तो पटेल और नेहरू में क्या हुई बात?

महावीर त्यागी के मुताबिक, अगले दिन सरदार पटेल ने बताया कि सभी के जाने के बाद जवाहरलाल और वे एक कमरे में सलाह करने के लिए जा बैठे। नेहरू ने कहा, ‘मेरी राय में तो यह अच्छा ही हुआ कि पार्टी ने यह सवाल हमारे ऊपर छोड़ दिया। राजेंद्र बाबू तो उम्मीदवार हैं नहीं, इसलिए हमें अपना निर्णय राजगोपालाचारी के पक्ष में दे देना चाहिए।’

सरदार ने कहा, ‘प्रस्ताव के शब्दों के अनुसार हमें पार्टी की आवाज का फैसला देना है, अपनी आवाज का नहीं। पार्टी के अधिकांश लोग राजेंद्र बाबू को चाहते हैं। हमें अपनी राय नहीं बतानी, वह तो सबको पता है। हमको पंच फैसला देना है। क्या आपकी राय में बहुमत राजाजी को स्वीकार करेगा?’ इसको सुनकर जवाहरलालजी ने कहा, ‘तो आप फैसला सुना दो कि हम दोनों की राय में राजेंद्र बाबू को ही राष्ट्रपति चुना जाना चाहिए। इस तरह डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए।

यह सारा ब्‍योरा वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘भारतीय संविधान-अनकही कहानी’ में दर्ज क‍िया है।