बिहार और केंद्र में सत्ता चला रहे एनडीए ने चुनाव हार चुके नेता उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। बिहार की राजनीति में हाल में कुशवाहा नेताओं को सभी पार्टियां अहमियत दे रही हैं। ऐसा आने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया जा रहा है। कुशवाहा लंबे समय तक नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी रहे हैं, लेकिन एक समय दोनों के संबंध इतने खराब हुए कि उन्होंने अलग पार्टी बना ली।
कभी मुस्लिम और यादव समीकरण की राजनीति के लिए पहचाने जाने वाले बिहार में अब सियासत बदलती दिख रही है। बिहार की सियासत में अब कुशवाहा समाज की अहमियत बढ़ती दिख रही है। इसका ताजा संकेत राष्ट्रीय लोक मोर्चा के संयोजक और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए के द्वारा राज्यसभा भेजे जाने के फैसले से भी मिलता है।
इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़े कुशवाहा चेहरे भगवान सिंह कुशवाहा को विधान परिषद भेजा था। भाजपा ने पहले ही प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री का पद एक कुशवाहा नेता (सम्राट चौधरी) को दे रखा है।

राजद ने भी अभय कुशवाहा को दी बड़ी जिम्मेदारी
कुछ दिन पहले ही राजद ने अपनी मुस्लिम-यादव समीकरण वाली राजनीति में बदलाव करते हुए कुशवाहा समाज से आने वाले अभय कुशवाहा को लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया था। जबकि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती भी इस पद की दौड़ में थीं।
अभय कुशवाहा भी बिहार की कुशवाहा राजनीति में एक बड़ा नाम हैं और वह जेडीयू के टिकट पर विधायक रहे थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबियों में गिने जाते थे।
अभय कुशवाहा लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही आरजेडी में आए थे और पार्टी ने उन्हें औरंगाबाद सीट से लोकसभा का टिकट दिया और जीत मिलने के बाद संसदीय दल के नेता जैसी बड़ी जिम्मेदारी भी। इसका मतलब यही है कि आरजेडी भी नीतीश कुमार का समर्थक माने जाने वाले इस वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहता है।

कुशवाहा इतने अहम क्यों?
बिहार की राजनीति में इससे पहले कभी कुशवाहा इतनी अहम भूमिका में नहीं दिखाई दिए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसका पता चला था जब एनडीए और इंडिया गठबंधन की तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले कुशवाहा जाति के दोगुने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे गए थे।
आखिर कुशवाहा समुदाय एनडीए और आरजेडी के लिए इतना जरूरी क्यों हो गया है? बताना होगा कि बिहार के विधानसभा चुनाव में सिर्फ डेढ़ साल बचा है और लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद एनडीए और इंडिया गठबंधन ने नए सिरे से चुनावी रणनीति बनानी शुरू की है।
पिछले दो विधानसभा चुनाव में किस दल के कितने कुशवाहा विधायक जीते
राजनीतिक दल | 2015 में जीते विधायक | 2020 में जीते विधायक |
जेडीयू | 11 | 4 |
बीजेपी | 4 | 3 |
आरजेडी | 4 | 4 |
कांग्रेस | 1 | – |
सीपीआई (माले) | – | 4 |
सीपीआई | – | 1 |
हार के बाद भी राज्यसभा भेजे जा रहे कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। हार के बावजूद एनडीए उन्हें राज्यसभा भेज रहा है तो इसका सीधा संदेश यही है कि एनडीए गठबंधन भी कुर्मी, कोईरी और कुशवाहा वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखना चाहता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस वोटर समुदाय के सबसे बड़े चेहरे हैं।
पवन सिंह के काराकाट से चुनाव लड़ने को उपेंद्र कुशवाहा की हार की प्रमुख वजह माना गया था। पवन सिंह को काराकाट में 2.75 लाख वोट मिले थे जिस वजह से उपेंद्र तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। यहां से सीपीआई (एमएल) के नेता राजा राम सिंह चुनाव जीते हैं।
लोकसभा चुनाव में किसे कितनी सीटें मिली
राजनीतिक दल | मिली सीटें |
जेडीयू | 12 |
बीजेपी | 12 |
आरजेडी | 4 |
कांग्रेस | 3 |
लोजपा (रामविलास) | 5 |
हम | 1 |
सीपीआई (माले) (लिबरेशन) | 2 |
निर्दलीय | 1 |
एनडीए और इंडिया ने दोगुने उम्मीदवार उतारे
लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए और इंडिया गठबंधन ने कुल मिलाकर मिलाकर कुशवाहा जाति के 11 नेताओं को उम्मीदवार बनाया था जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 6 था।

एनडीए का ‘लव कुश’ समीकरण
जातियों की राजनीति के लिए पहचाने जाने वाले बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण का हमेशा से ही महत्व रहा है। ‘लव कुश’ समीकरण में से ‘लव’ का मतलब कुर्मी समुदाय और ‘कुश’ का मतलब कुशवाहा समुदाय से है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से हैं तो बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद संभाल रहे सम्राट चौधरी कुशवाहा समाज से संबंध रखते हैं। उपेंद्र कुशवाहा के राज्यसभा जाने के बाद यह समीकरण निश्चित रूप से और मजबूत होगा।
लालू प्रसाद यादव के यादव-मुस्लिम समीकरण के जवाब में नीतीश कुमार ने कुर्मी और कुशवाहा समुदायों को साथ लाने की पहल की थी और बीजेपी का साथ मिलने के बाद वह इस जातीय समीकरण के बलबूते आरजेडी को सत्ता से हटाने में कामयाब रहे।

7% से ज्यादा हिस्सेदारी
बिहार सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की आबादी में लव-कुश की हिस्सेदारी 7% से कुछ ज्यादा है। इसमें से कुर्मी 2.9% और कोइरी 4.2% हैं। लव-कुश समुदाय के मतदाता बिहार के लगभग सभी इलाकों में हैं लेकिन नालंदा, अरवल, मुंगेर, भोजपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में इनकी आबादी ज्यादा है। इस समुदाय में बड़े पैमाने पर जमींदार और किसान हैं।

बिहार में किस समुदाय की है कितनी आबादी
वर्ग | संख्या | संख्या (प्रतिशत में) |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) | 4,70,80,514 | 36.01% |
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) | 3,54,63,936 | 27.12% |
अनुसूचित जाति (SC) | 2,56,89,820 | 19.65% |
अनुसूचित जनजाति (ST) | 21,99,361 | 1.68% |
सवर्ण जातियां | 2,02,91,679 | 15.52% |
बिहार में पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो पता चलता है कि कुशवाहा वोटर्स बीजेपी और जेडीयू से दूर जा रहे हैं और शायद यही इनकी चिंता का कारण है।
भूमिहार वोटर्स को भी अहमियत दे रहे दल
कुशवाहा वोटर्स की ही तरह भूमिहार मतदाताओं को भी बिहार में राजनीतिक दल अहमियत दे रहे हैं। बीजेपी ने इस समुदाय से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया है तो कांग्रेस में भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं। जेडीयू की ओर से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह केंद्रीय मंत्री हैं। बिहार विधानसभा में 21 भूमिहार विधायक हैं।