MVA Internal Rift Maharashtra Elections: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सरकार बनाने का सपना देख रही महा विकास अघाड़ी (MVA) के बीच जिस तरह सीटों के बंटवारे को लेकर लड़ाई चल रही है, उसका क्या कोई असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ सकता है? सीट बंटवारे को लेकर जारी इस खींचतान के बीच महाराष्ट्र और देश की सियासत के अनुभवी नेता शरद पवार विवाद को सुलझाने के लिए आगे आ सकते हैं।

याद दिलाना होगा कि बीजेपी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए 99 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर चुकी है और साथ ही उसने अपने सहयोगियों एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की NCP के साथ सीट बंटवारे के मसले को भी काफी हद तक सुलझा लिया है लेकिन MVA के भीतर सीट बंटवारे की लड़ाई लगातार उलझती दिखाई दे रही है। 

सीट बंटवारे को लेकर चल रही कसरत के बीच शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि सीटों को लेकर ज्यादा मतभेद नहीं हैं और जल्द ही तीनों दल मिलकर सीट बंटवारे के फार्मूले का ऐलान कर देंगे। लेकिन इसे लेकर हुई देरी से पता चलता है कि कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। 

शिवसेना (यूबीटी) विदर्भ में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है जबकि कांग्रेस का भी दावा है कि यहां उसका आधार ज्यादा है और उसे ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए। ऐसे में MVA में शामिल दलों को अब शरद पवार से उम्मीद है कि शरद पवार ही सीटों के बंटवारे के मसले को सुलझाकर इन दलों के नेताओं को एक मंच पर ला सकते हैं। 

पवार ही थे MVA के सूत्रधार 

याद दिलाना होगा कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब बीजेपी और अविभाजित शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर लड़ाई छिड़ गई थी तो यह शरद पवार ही थे जिन्होंने महाराष्ट्र में एक नया राजनीतिक गठबंधन तैयार किया था और एक-दूसरे की धुर विरोधी शिवसेना और कांग्रेस को एक मंच पर लाने का काम कर दिखाया था। 

शरद पवार ने ही अविभाजित एनसीपी, शिवेसना और कांग्रेस को एक मंच पर लाकर MVA बनाया था और यह सरकार आराम से चल भी रही थी। जून, 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना में विभाजन हो गया था और पार्टी के अधिकतर विधायक एकनाथ शिंदे के साथ चले गए थे। ऐसा ही विभाजन एनसीपी में भी हुआ था जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया था और उन्हें एकनाथ शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। 

सवाल यह है कि MVA के अंदर जिस तरह की लड़ाई सीटों के बंटवारे को लेकर देखने को मिली है, उसका असर क्या MVA के प्रदर्शन पर पड़ेगा? महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के नतीजे MVA के पक्ष में रहे थे।  

महाराष्ट्र में अगर आप लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखेंगे तो MVA ने निश्चित रूप से बड़ी जीत हासिल की थी लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग का पैटर्न अलग होता है इसलिए MVA ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह की बढ़त हासिल की थी, कहीं सीट बंटवारे को लेकर चल रही लड़ाई की वजह से वह इस बढ़त को गंवा न दे? MVA को मिलने वाले वोटों में असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली AIMIM, समाजवादी पार्टी और प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी भी सेंध लगा सकती है। ऐसे में MVA के लिए चुनावी लड़ाई आसान नहीं है। 

लोकसभा चुनाव 2024 में किस दल को मिली कितनी सीटें

MVA seat sharing dispute 2024
लोकसभा चुनाव में MVA ने किया था शानदार प्रदर्शन।

हरियाणा के नतीजों से लगा झटका 

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से भी महाराष्ट्र में कांग्रेस और MVA को एक बड़ा झटका लगा है क्योंकि विपक्षी दलों को ऐसी उम्मीद थी कि हरियाणा में बीजेपी को हार मिलेगी और कांग्रेस को जीत। लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा भरोसा और मजबूत हुआ था कि हरियाणा की सत्ता में वापसी कर पाना बीजेपी के लिए मुश्किल है लेकिन सारे दावे और अनुमान धरे के धरे रह गए। 

हरियाणा के नतीजों के बाद बीजेपी का मनोबल बढ़ा हुआ है और उसने इस छोटे से राज्य के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों और एनडीए के बड़े नेताओं को बुलाकर यह दिखाया कि वह लोकसभा चुनाव के खराब प्रदर्शन को भुलाकर आगे बढ़ चुकी है और महाराष्ट्र और झारखंड में पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी। 

महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद MVA ने दावा किया था कि वह शिंदे सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी लेकिन हरियाणा के नतीजों से पता चलता है कि एक ही राज्य के लोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि लोकसभा में मिली जीत विधानसभा चुनावों में कामयाबी की गारंटी नहीं है। हरियाणा में बीजेपी ने 2019 में सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी लेकिन 2024 में वह सिर्फ 5 सीटें जीत पाई थी। लेकिन इसके बाद भी उसने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की।

देखना होगा कि बुजुर्ग नेता शरद पवार क्या MVA के दलों के बीच चल रहे आपसी गतिरोध को खत्म कर इसके नेताओं को एकजुट होकर चुनाव लड़ने के लिए राजी कर पाएंगे?