यशी
बीते 25 दिसंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की 147वीं जयंती थी। मुसलमानों के लिए अलग देश बनाना जिन्ना का सपना था। लेकिन सपना साकार होने के तुरंत बाद जिन्ना की मौत हो गई थी। इस तरह पाकिस्तान में जिन्ना की यादें, जीत की यादें हैं।
पाकिस्तान बनाने का उनका फैसला कितना सही था, इसकी जांच हो पाती, उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह वह उस कसौटी से बच गए, जिसका सामना भारत में नेहरू को करना पड़ा। जिन्ना की मौत को लेकर अटकलें सीमा के दोनों ओर लंबे समय तक बनी रहीं। इस आर्टिकल में हम जिन्ना के जीवन के तीन अलग-अलग पहलुओं के बारे में जानेंगे।
जब गांधी ने जिन्ना को प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया
भारत की आजादी और विभाजन से पहले के उथल-पुथल वाले वर्षों की एक लोकप्रिय अफवाह यह है कि महात्मा गांधी ने जिन्ना को प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया था और यदि नेहरू सहमत हो जाते, तो संभवतः पाकिस्तान का निर्माण नहीं होता।
इस थ्योरी में दो चीजें गलत हैं। पहला तो यह कि पीएम पद की पेशकश एक बार नहीं, बल्कि कई बार की गई थी और जिन्ना ने हर बार प्रस्ताव ठुकरा दिया। दूसरा यह कि इसमें नेहरू के सहमत होने या न होने का मामला नहीं था।
सबसे अधिक उद्धृत उदाहरण अप्रैल 1947 का है, जब गांधी ने नए वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन के सामने प्रस्ताव रखा था कि जिन्ना को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने की पेशकश की जाए। गांधी जी ने पहले भी यही सुझाव दिया था।
लेकिन जैसा कि अमेरिकी इतिहासकार स्टैनली वोल्पर्ट अपनी किताब ‘जिन्ना ऑफ पाकिस्तान’ में लिखते हैं, “अगर जिन्ना गांधी पर भरोसा करते तो इस तरह की पेशकश उन्हें लुभा सकती थी। लेकिन उनका (जिन्ना) मानना था कि गांधी की ‘स्वतंत्र भारत’ की अवधारणा मूल रूप से उनसे अलग है… गांधी के लिए स्वतंत्रता का मतलब कांग्रेस राज है।”
जिन्ना ने यह बात 6 दिसंबर, 1945 को अपने भाषण में भी कही थी। उन्होंने स्पष्ट किया था कि हिंदू और मुसलमान इस उपमहाद्वीप में रहने वाले दो प्रमुख राष्ट्र हैं। जिन्ना ने कहा था, “…ब्रिटिश सरकार ने निश्चित रूप से भारत के विभाजन और पाकिस्तान और हिंदुस्तान की स्थापना के लिए अपना दिमाग लगाया। यह सही भी है। इसका मतलब है दोनों देशों के लिए स्वतंत्रता। जबकि एक संयुक्त भारत का अर्थ है मुसलमानों के लिए गुलामी और इस उपमहाद्वीप में साम्राज्यवादी हिंदू राज का पूर्ण प्रभुत्व। हिंदू कांग्रेस यही हासिल करना चाहती है…”
क्या जिन्ना ने बनाई थी कश्मीर पर हमले की योजना?
महाराजा हरि सिंह को भारत में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा था क्योंकि अक्टूबर 1947 में उनके राज्य जम्मू और कश्मीर पर पाकिस्तान के कबाइलियों ने हमला कर दिया था। भारत का मानना है कि कबायलियों को पाकिस्तान ने सपोर्ट किया। उन्हीं के इशारे पर कबाइलियों ने हमला किया। जबकि पाकिस्तान कहता रहा है कि उन्होंने कबायलियों की मदद नहीं की। बल्कि कबायलियों ने मुसलमानों के खिलाफ “अत्याचारों का बदला लेने” के लिए हमला किया था। हालांकि यह सवाल उठता रहा है कि क्या कश्मीर पर हमले की योजना जिन्ना ने बनाई थी?
अपनी पुस्तक कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट में ब्रिटिश लेखिका विक्टोरिया स्कोफील्ड ने इस मामले पर रोशनी डालने की कोशिश की है। लेखिका के अनुसार, पाकिस्तान के रक्षा सचिव इस्कंदर मिर्जा ने 26 अक्टूबर को जॉर्ज कनिंघम को बताया था कि जिन्ना को लगभग 15 दिन पहले पता चला कि क्या हो रहा है। कबायलियों की योजना के बारे में चलने पर जिन्ना ने कहा था, “मुझे इस बारे में कुछ मत बताओ।” हालांकि, अन्य टिप्पणीकारों मानते हैं कि जिन्ना को इस योजना की पूरी जानकारी थी।
जब जिन्ना ने पाकिस्तान में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का वादा किया
इससे पहले कि एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान कोई आकार ले पाता, 1948 में जिन्ना की मृत्यु हो गई। दिलचस्प यह है कि लंबे संघर्ष के बाद धर्म के आधार पर पाकिस्तान बना लेने के बाद जिन्ना उसे एक ऐसे राष्ट्र में बदलने की कल्पना कर रहे थे, जहां सभी धर्म के लोगों को समान अधिकार हो। इसकी झलक 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण में देखा जा सकता है।
पाकिस्तान के कायद-ए-आज़म ने कहा था, “आप स्वतंत्र हैं; आप अपने मंदिरों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं, आप अपनी मस्जिदों में या पाकिस्तान के किसी अन्य पूजा स्थल पर जाने के लिए स्वतंत्र हैं। आप किसी भी धर्म या जाति या पंथ का पालन कर सकते हैं- इसका सरकार के कामकाज से कोई लेना-देना नहीं है।”
उसी भाषण में उन्होंने कहा, “यदि आप अपने बीत कल को भूलकर इस भावना से एक साथ काम करते हैं कि आप में से हर कोई, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो, चाहे उसका आपके साथ कोई भी रिश्ता हो, चाहे उसका रंग, जाति या पंथ कुछ भी हो, सब एक हैं। सभी को समान अधिकार हैं, तो आपकी तरक्की की कोई सीमा नहीं होगी।”