मोहम्मद अली जिन्ना की मां मीठीबाई को यकीन था कि उनका बड़ा बेटा जीवन में कुछ बड़ा करेगा। जिन्ना की मां काठियावाड़ के एक गांव की साधारण और धार्मिक स्त्री थीं। मोहम्मद अली जिन्ना, अपनी मां-बाप की पहली संतान थे। जिन्ना जब बहुत छोटे थे तो एक फकीर ने उनके बारे में भविष्यवाणी की थी।
जिन्ना के बड़े होने पर मां उन्हें यह भविष्यवाणी बताई थी, जिसका जिक्र वह अक्सर अपनी बेटी से किया करते थे। जिन्ना के पैर के तलुए के पैदाइशी निशान (बर्थ मार्क) की तरफ इशारा करते हुए उस फकीर ने ऐलान किया था कि जिन्ना एक दिन ‘बड़ा आदमी’ बनेंगे।
जब जिन्ना इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर लौटे, तब तक उनकी मां का निधन हो गया था। लेकिन जिन्ना की बहनें अपने भाई की भावी नियति के उस निशान को देखने को उत्सुक थीं। उन्होंने उनसे जुराब उतारने को कहा। जिन्ना इंग्लैंड जाकर इस कदर अंग्रेज बन चुके थे कि उन्हें घर में भी नंगे पैर देखना मुश्किल था। हालांकि जिन्ना ने अपनी बहनों के अंधविश्वास के लिए उन्हें झिड़का। लेकिन अपना पैदाइशी निशान दिखाने से मना नहीं किया।
मोहल्ले के बच्चों के बीच नेता थे जिन्ना
शुरुआत में जिन्ना को पढ़ाने के लिए एक टीचर घर पर आया करते थे। वह जिन्ना को गुजराती और अंकगणित पढ़ाते थे। ये दोनों ही विषय जिन्ना को पसंद नहीं थे। जब जिन्ना थोड़े बड़े हुए तो उनके पिता ने उनका दाखिला घर के ही करीब स्थित एक प्राइमरी स्कूल में करवा दिया था।
शीला रेड्डी ने मंजुल से प्रकाशित अपनी किताब ‘मिस्टर और मिसेज जिन्ना’ में लिखा है कि स्कूल में एडमिशन होने से पहले जिन्ना का पूरा दिन खेल के मैदान में बीतता था, जहां उनकी फितरत और कद-काठी ने उन्हें पड़ोसी बच्चों के बीच एक कुदरती नेता बना दिया था। इससे उनके इस विश्वास को बढ़ावा मिलता था कि वह एक हुक्मरान बनने के लिए ही पैदा हुए थे। वह खुशी-खुशी अपने नए स्कूल गए। जल्द ही उन्होंने अपने सहपाठियों को अपने प्रभाव में ले लिया। लेकिन जब पहले स्कूली इम्तिहान का नतीजा आया, तो उन्हें बड़ा झटका लगा। वह लड़के, जिन्होंने जिन्ना के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया था, वे ज़्यादा अंक हासिल करते हुए उनसे आगे निकल गए थे।”
स्कूल छोड़ने का ले लिया फैसला
परीक्षा का परिणाम आने के बाद जिन्ना ने अपने घर पर स्कूल छोड़ने का एलान कर दिया था। हालांकि शीला रेड्डी लिखती हैं, “इस अपमान के सामने झुकने का उन्हें कोई तुक समझ में नहीं आया। वह ऐसी किताबों की गुलामी नहीं करना चाहते थे, जिनमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी या शायद उन्होंने खुद को समझाया कि उनकी नियति उन्हें कोई दूसरी दिशा अख्तियार करने को पुकार रही थी।”
वजह जो भी हो जिन्ना ने निश्चय कर लिया कि वह स्कूल जाकर अपना और ज़्यादा वक़्त बर्बाद नहीं करेंगे। उनके पिता इससे बुरी तरह निराश हुए क्योंकि उनकी दिली इच्छा थी कि उनका बड़ा बेटा कम से कम मैट्रिक की परीक्षा तो पास कर ही ले, लेकिन उन्होंने अपने इस नौ साल के बच्चे को डांटने-डपटने या बहलाने-फुसलाने का रास्ता अपनाने की बजाय एक अलग ही दृष्किोण अपनाया। उन्होंने उसे उसके फैसले से डिगाने के लिए समझाया कि काम में बहुत समय लगता है।
शीला रेड्डी लिखती हैं, जिन्ना के पिता ने अपने बेटे को समझाया, “तुम्हें सुबह जल्दी मेरे साथ ऑफिस जाना होगा, दो से चार के बीच दोपहर के खाने के लिए लौटना होगा। फिर चार से नौ बजे तक ऑफिस में रहना होगा। इससे तुम्हे खेलने के लिए बिलकुल वक्त नहीं मिल पाएगा।” पिता के इन बातों का जिन्ना पर कोई असर नहीं पड़ा। वह अपने फैसले पर अडिग रहे। काम शुरू कर दिया। लेकिन कुछ माह काम करने के बाद उन्हें अहसास हो गया कि वहां सीखने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है और वह दोबारा स्कूल जाने लगे।