साल 1712 में बहादुर शाह (प्रथम) की मौत के बाद उसका बेटा जहांदार शाह (Jahandar Shah) मुगल सल्तनत की गद्दी पर बैठा। जहांदार अपनी रंगीन मिजाजी के लिए बदनाम था। तानसेन के वंशज खसूरियत खान की बेटी लालकुंवर पर इस कदर फिदा हुआ कि मुग़ल सल्तनत की बागडोर एक तरीके से उसके हाथ में दे दी। जहांदार शाह से उम्र में तकरीबन दोगुनी तवायफ लालकुंवर ने इसका भरपूर फायदा उठाया।

लोकभारती पब्लिकेशन से प्रकाशित राजगोपाल सिंह वर्मा अपनी किताब ‘किंगमेकर्स में लिखते हैं कि लालकुंवर की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जहांदारशाह अपने खजाने को अनाप-शनाप खर्च करने लगा। लालकुंवर के भाइयों को, उसके करीबियों और दूर के रिश्तेदारों तक को सौगातें बांटने लगा। हाथी, घोड़े, हीरे-जवाहरात और जागीर न्यौछावर कर दिये। दूसरी तरफ, दरबार से पढ़े-लिखे और विद्वान अधिकारियों की छुट्टी कर दी गई।

2 करोड़ देता था गुजारा भत्ता

वर्मा लिखते हैं कि लाल कुंवर को उस जमाने में दो करोड़ रुपए के बराबर का गुजारा भत्ता मिलता था। जब वो चलती थी तो उसकी पालकी के आगे-पीछे सैकड़ों सैनिक ड्रम बजाते हुए चला करते थे। करीब 500 लोगों का काफिला चलता था। जैसे कोई बादशाह ही निकल रहा हो।

बैलगाड़ी में छिपकर जाता था मयखाने

जहांदार शाह अपनी मनपसंद रखैलों और साथियों के साथ बैलगाड़ी में बैठकर शराब के अड्डों पर जाया करता था, ताकि कोई उसे पहचान न ले। एक रात लालकुंवर के साथ इसी तरह शराब खाने पहुंचा और इतनी पी ली खुद का होश न रहा। लालकुंवर तो अपने महल तक पहुंच गई, लेकिन बादशाह बैलगाड़ी में ही पड़ा रहा। सुबह जब महल में नहीं मिला तो हर तरफ चीख-पुकार मच गई। फिर लालकुंवर को याद आया और उसे बैलगाड़ी से महल में लाया गया।

शौक के लिए डुबवा दी नाव

जहांदार शाह लालकुंवर के प्रेम में इस कदर पागल था कि कुछ भी कर गुजरने को तैयार था। ऐसा ही एक वाकया वर्मा अपनी किताब में लिखते हैं। एक दिन लालकुंवर ने बादशाह से कहा कि मैंने कभी नदी में लोगों से भरी नाव डूबते नहीं देखी है, लोग कैसे चीखते-चिल्लाते हैं और खुद को बचाने की कोशिश करते हैं…मैं यह सब अपनी आंखों से देखना चाहती हूं। लाल कुंवर की बात सुनकर बादशाह ने कहा कि अच्छा मौत का मंजर देखना चाहती हो?

लालकुंवर की फरमाइश पूरी करने का इंतजाम किया गया। बादशाह जहांदार और लालकुंवर लाल किले में एक ऊचीं जगह पर बैठे। यमुना में मुसाफिरों से भरी एक नाव रोकी गई। लोग चीखने-चिल्लाने लगे, लेकिन सैनिकों ने एक न सुनी। नाव डुबो दी गई। जैसे-जैसे लोग डूब रहे थे, इधर किले पर बैठी लालकुंवर रोमांच से तालियां बजा रही थी। इस घटना में 25 लोगों की मौत हुई थी।

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लाल कुंवर और मुगल बादशाह जहांदार शाह। फोटो सोर्स- Wikimedia Commons

बेटों की आंखें फोड़ दी थीं

लालकुंवर को जहांदार शाह (Jahandar Shah) के सगे बेटे फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे। उसने इनको रास्ते से हटाने का फैसला किया और एक दिन जहांदार शाह से कहा कि वह अपने दोनों बेटों की आंखें फोड़ दे और उन्हें कैद खाने में डाल दें। बादशाह ने बिल्कुल वही किया, जैसा लालकुंवर ने हुक्म दिया था।