साल 1712 में बहादुर शाह (प्रथम) के निधन के बाद मुगल सल्तनत के लिए उनके बेटों के बीच लड़ाई शुरू हो गई। आखिरकार जहांदार शाह (Jahandar Shah) को सफलता मिली और मुगल सल्तनत (Mughal Empire) की गद्दी पर बैठा। जहांदार शाह (Jahandar Shah) अपनी अय्याशियों और रंगीन-मिज़ाजी के लिए बदनाम था। मुगल साम्राज्य की गद्दी संभालते ही एक तरीके से उसने पूरी सत्ता लाल कुंवर (Lal Kunwar) को सौंप दी, जो उसकी कनीज (रखैल) थी।
कनीज के वश में हो गया जहांदार शाह
लाल कुंवर, मुगल दरबार के गायक खासुरैत खान की की बेटी थी, जो मियां तानसेन के घराने का था। लाल कुंवर, जहांदार शाह (Mughal Emperor Jahandar Shah) से उम्र में लगभग दोगुनी। वह अपनी खूबसूरती और नृत्य के लिए मशहूर थी। दिल्ली और मुगल इतिहास के जानकार रहे आर.वी. स्मिथ ‘द हिंदू’ पर एक लेख में लिखते हैं कि लाल कुंवर ने पूरी तरीके से जहांदार शाह को अपने वश में कर लिया था।
अय्याशियों के चलते सत्ता हाथ से जाती रही
जहांदार शाह ने सत्ता संभालते ही लाल कुंवर को अपनी रानी का दर्जा दे दिया और ‘इम्तियाज मुगल’ (Imtiyaz Mughal) का तमगा प्रदान कर दिया। उसका ज्यादातर समय लाल कुंवर की शोहबत में बीतने लगा। लाल कुंवर ने इसका फायदा उठाया और सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों को मंसब के तौर पर नियुक्ति दिलवाई और उन्हें मुगल साम्राज्य से जागीरें दिलवा दीं। इसके बाद एक-एककर तमाम ताकतवर पदों पर अपने रिश्तेदारों को नियुक्त करवा दिया।
अपने ही बेटों की आंखें फोड़ दी थी
लाल कुंवर के वश में आकर जहांदार शाह (Jahandar Shah) एक से बढ़कर एक क्रूरता और मूर्खतापूर्ण हरकतें करने लगा। इतिहासकारों के मुताबिक लाल कुंवर को जहांदार शाह के सगे बेटे फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे। उसने जहांदार शाह से कहा कि वह अपने दोनों बेटों की आंखें फोड़ दे और उन्हें कैद खाने में डाल दें। जहांदार शाह ने किया भी ऐसा ही। उसकी क्रूरता का एक और किस्सा मशहूर है। एक बार सिर्फ मजे के लिए उसने लोगों से भरी नाव डुबवा दी और लोगों की चीख-पुकार देख हंसता रहा।

नंगे लगाता था दरबार
जहांदार शाह कभी पूरी तरह नंगे होकर दरबार में जाने लगा तो कभी महिलाओं के कपड़े पहनकर दरबार लगाने लगा। जहांदार शाह की इन्हीं हरकतों की वजह से उसका नाम ‘लंपट’ (Idiot Mughal King) पड़ गया और उसे मुगल इतिहास का सबसे मूर्ख बादशाह कहा जाने लगा।
9 महीने गद्दी पर रहा, फिर बेरहमी से मारा गया था
जहांदार महज 9 महीने ही मुगल साम्राज्य की गद्दी पर रह पाया और उसके भतीजे फर्रूखसियर (Farrukhsiyar) ने उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 6 जनवरी 1713 को हार के बाद वह, लाल कुंवर के साथ भागकर दिल्ली में शरण ली। यहां उसे कैद कर लिया गया और बाद में कैदखाने में ही बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था।
कुछ लोग दावा करते हैं कि जहांदार शाह का कत्ल फर्रूखसियर ने ही किया था, लेकिन इसके पुष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं।