मुगल बादशाह औरंगज़ेब (Aurangzeb) ने भारत पर करीब आधा दशक राज किया था। उनके शासन काल में मुगल साम्राज्य खूब फला-फूला। लगभग पूरे उपमहाद्वीप पर मुगलिया सल्तनत का परचम लहराया।
बावजूद इसके आज भी आम भारतीयों के बीच औरंगज़ेब की की छवि एक क्रूर और कट्टर धार्मिक तानाशाह की है। भारत का बहुसंख्यक हिंदू समुदाय का एक वर्ग औरंगज़ेब को एंटी हिंदू शासक मानता है।
मुगल साम्राज्य के छठे शासक औरंगज़ेब की कट्टरता का जिक्र करते हुए दारा शिकोह और शाहजहां का नाम जरूर आता है। औरंगज़ेब ने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने बड़े भाई दारा शिकोह (Dara Shikoh) को मरवा दिया था। सत्ता के लिए अपने बूढ़े पिता शाहजहां (Mughal Emperor Shah Jahan) को आगरा के किले में कैदी बना कर रखा था, वहीं उनकी मौत भी हुई थी।
दारा का बेटा, औरंगज़ेब की बेटी
औरंगज़ेब ने अपने भाई दारा शिकोह और उसके सबसे बड़े बेटे की गर्दन कटवा दी थी। दूसरे बेटे सिफिर शिकोह को जेल भेज दिया था। कालांतर में औरंगज़ेब ने अपने इस भतीजे की न सिर्फ जान बख्श दिया था, बल्कि उससे अपनी बेटी ज़ब्दातुन्निसा की शादी भी कर दी थी। ज़ब्दातुन्निसा औरंगज़ेब और दिलरस बानू बेगम की संतान थीं।
सिफिर ने युद्ध और अपने पिता व भाई की हत्या को भूलकर अपनी चचेरी बहन से 9 फरवरी, 1673 को धूमधाम के साथ शादी की थी। इस तरह वह पांचवें मुगल बादशाह शाहजहां के पोते के साथ-साथ छठे मुगल बादशाह औरंगजेब के भतीजे और दामाद दोनों कहलाए।
सिफिर में थी दारा की झलक
मुगल शहजादा दारा शिकोह की तरह उनके बेटे सिफिर शिकोह (Sipihr Shikoh) भी विभिन्न धर्म की कलाओं से बेहद प्यार था। रॉयल कलेक्शन ट्रेस्ट में आज भी सिफिर की एक पोट्रेट है, जिसमें वह एक हिंदू सन्यासी को वीणा बजाते सुनने के लिए कालीन पर घुटने के बल बैठे नजर आ रहे हैं। जिस तरह दारा शिकोह ने इस्लामिक सूफीवाद और हिंदू वेदांत दर्शन में समानता खोजने की कोशिश की थी, संभव है कि उन्होंने अपने बेटे को मुस्लिम और हिंदू दोनों आध्यात्मिक मार्गदर्शकों के साथ संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित किया हो।
मुगल लाइब्रेरी नामक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, सिफिर शिकोह का जन्म 13 अक्टूबर, 1644 को हुआ था। वहीं उनकी मौत 13 अक्टूबर, 1708 को हुई थी।
औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच जब उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ था, तब सिफिर ने अपने पिता का साथ दिया था। सामुगढ़ की लड़ाई के दौरान उन्होंने दारा के जनरल रुस्तम खान दखिनी के साथ औरंगजेब के तोपखाने के खिलाफ घुड़सवार सेना का नेतृत्व किया।
युद्ध में दारा शिकोह की हार के बाद उनका और उनके एक बेटे का गर्दन काट दिया गया। वहीं सिफिर को जेल भेज दिया गया। औरंगज़ेब ने सिफिर से वादा किया था कि उन्हें नहीं मारा जाएगा। औरंगज़ेब ने सिफिर को विद्रोह का हिस्सा बनने के लिए माफ कर दिया और उन्हें शाही ढंग से रहने की इजाजत दी गई।
औरंगज़ेब की बेटी से शादी के बाद दोनों ने एक साथ लंबा खुशहाल जीवन बिताया। यह तथ्य कि सिफिर शिकोह ने अपने चाचा की बेटी का हाथ स्वीकार कर लिया था, यह साबित करता है कि उन्हें अपने चाचा से कोई शिकायत नहीं थी। सिफिर की मौत 64 वर्ष की आयु में सन् 1708 में हुई थी।