मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और तेलंगाना व‍िधानसभा चुनावों के पर‍िणाम आ गए हैं। तेलंगाना को छोड़ तीनों राज्‍यों में भाजपा की सरकार बनेगी। इन सरकारों ने जनता से क‍िए वादे पूरे क‍िए तो तात्‍काल‍िक तौर पर उसे कुछ पैसे म‍िल जाएंगे, लेक‍िन अंतत: जनता के ल‍िए बड़ी मुसीबत खड़ी होगी। कांग्रेस भी जीतती तो ऐसी ही स्‍थि‍त‍ि बनती, क्‍योंक‍ि उसने भी लगभग वैसे ही वादे क‍िए थे। इस बात को आंकड़ों से देखते-समझते हैं। फ‍िलहाल हम मध्‍य प्रदेश की ही बात करते हैं।

छह साल में तीन गुना बढ़ा जनता का कर्ज

मध्‍य प्रदेश की जनता का कर्ज छह साल में तीन गुना बढ़ गया है। स‍ितंबर मध्‍य में मध्‍य प्रदेश की प्रत्‍येक जनता पर 40 हजार रुपए का कर्ज था, जो छह साल में करीब तीन गुना बढ़ गया। मार्च 2016 में यह आंकड़ा 13,853 रुपए हुआ करता था। राज्‍य पर कुल 3.4 लाख करोड़ का कर्ज है, जो 31 मार्च, 2023 को 3.3 लाख करोड़ था।

2023 में अप्रैल से स‍ितंबर के बीच मध्‍य प्रदेश सरकार ने 9000 करोड़ रुपए कर्ज ल‍िए। मई (2000 करोड़) और जून (4000 करोड़) के दो महीनों में ही 6000 करोड़ रुपए कर्ज ल‍िए गए। 2018 के चुनाव के पहले भी अप्रैल से स‍ितंबर के बीच राज्‍य सरकार ने 7000 करोड़ रुपए कर्ज ल‍िया था।

मध्‍य प्रदेश सरकार की ओर से की गई तीन बड़ी घोषणाओं पर ही 3000 करोड़ रुपए महीने का खर्च आने का अनुमान है। लाडली बहना योजना पर ही 1500 करोड़ रुपए मास‍िक खर्च होंगे। गेस्‍ट टीचर्स का पैसा बढ़ाने और 450 रुपए में गैस स‍िलेंडर की घोषणा पर अमल में 920 करेाड़ रुपए जाएंगे।

रेवड़ी बंटेगी, मजदूरी नहीं म‍िलेगी

जहां मुफ्त सुव‍िधा या र‍ियायत देने पर सरकार बड़ी रकम खर्च कर रही है, वहीं मजदूरी देने के मामले में मध्‍य प्रदेश सरकार सबसे पीछे है। र‍िजर्व बैंक ऑफ इंड‍िया (आरबीआई) के आंकड़े के मुताब‍िक ग्रामीण खेत‍िहर मजदूरों को पूरे देश में सबसे कम मजदूरी मध्‍य प्रदेश में ही दी जाती है। मध्‍य प्रदेश में पुरुष खे‍त‍िहर मजदूरों को 2023 में मात्र 229.20 रुपए मजदूरी दी गई। अगर इन्‍हें महीने में 25 द‍िन भी काम म‍िल जाए तो कुल 5730 रुपए म‍िलेंगे, जो चार-पांच लोगों का पर‍िवार चलाने के ल‍िए नाकाफी है। 

रेट‍िंग फर्म क्र‍िस‍िल की ताजा गणना (स‍ितंबर) के मुताब‍िक शाकाहारी थाली की कीमत 27.90 रुपए पड़ती है, जबक‍ि मांसाहारी थाली 61.40 रुपए में आती है। इस ह‍िसाब से पांच शाकाहारी लोगों के एक पर‍िवार को खाने के ल‍िए महीने में कम से कम 8400 रुपए चाह‍िए। 

दर्द ही दर्द

सामाज‍िक और आर्थ‍िक रूप से लोगों की प्रगत‍ि का आंकड़ा भी उत्‍साहजनक नहीं है। कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं:

  • 1. 2015-16 में मध्‍य प्रदेश में 64 प्रत‍िशत लड़क‍ियां/मह‍िलाएं स्‍कूल जाती थीं। 2019-21 में यह आंकड़ा केवल ढाई प्रत‍िशत बढ़ कर 67.5 पर पहुंचा।

  • 2. Human Development Index (HDI) में मध्‍य प्रदेश 1990 में 30 राज्‍यों में 26वें नंबर पर था और 2021 में यह एक पायदान नीचे (27वें) ही लुढ़क गया।

    3. आर्थ‍िक मोर्चे पर भी हाल बुरा है। प्रत‍ि व्‍यक्‍त‍ि सकल राज्‍य घरेलू उत्‍पाद (एनएसडीपी) के मामले में 1993-94 में मध्‍य प्रदेश 27 में से 19वें नंबर पर था। 2021-22 में दो पायदान नीचे पहुंच गया।

  • 4. पढ़ाई के मामले में देखें तो प्राथम‍िक, माध्‍यम‍िक और कॉलेज लेवल की पढ़ाई में दाख‍िले के मामले में मध्‍य प्रदेश 2020 में 30 राज्‍यों की सूची में 20वें नंबर पर था।

    5. बाल मृत्‍यु दर (हर हजार नवजात बच्‍चों पर) के मामले में मध्‍य प्रदेश 30 राज्‍यों की सूची में 27वें नंबर पर है। 

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राजस्‍थान का हाल

2022-23 के दौरान राजस्थान का कर्ज बढ़कर ₹537,013 करोड़ हो गया है, जो एक साल पहले ₹458,089 करोड़ था। राजस्थान की कुल बकाया देनदारियां एक दशक में चार गुना से अधिक हो गई हैं। राजस्थान भारत का पांचवां सबसे कर्जदार राज्य है। इसका राजकोषीय घाटा 2020-21 में 5.9 प्रतिशत, 2021-22 में 5.2 प्रतिशत और 2022-23 में 4.3 प्रतिशत रहा। पिछले तीन वर्षों में इतना राजकोषीय घाटा किसी राज्य का केंद्र शासित प्रदेश का नहीं रहा।