भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को छात्रों द्वारा कथित आत्महत्याओं की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की और कहा कि पीड़ितों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति उनकी संवेदना है। उन्होंने कहा कि मैं सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत कर रहे हैं कि स्टूडेंट्स अपनी जान लेने को मजबूर हैं।
हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाशिए के समुदायों के साथ ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।
द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एनएएलएसएआर) में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा कि भारत में न्यायाधीशों की अदालत के अंदर और बाहर समाज के साथ संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है ताकि सामाजिक परिवर्तन पर जोर दिया जा सके।
मैंने दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा- CJI
सीजेआई ने कहा, “हाल ही में मैंने IIT बॉम्बे में एक दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा। इसने मुझे पिछले साल ओडिशा में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्र की आत्महत्या के बारे में याद दिलाया। मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं कि छात्रों को अपना कीमती जीवन देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।”
गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने कथित तौर पर 12 फरवरी को IIT बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी। चंद्रचूड़ ने कहा, “हाशिए के समुदायों में आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं। ये संख्याएं केवल आंकड़े नहीं हैं। मेरा मानना है कि अगर हम इस मुद्दे का समाधान करना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और पहचानना है।”
छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण- CJI
चंद्रचूड़ ने कहा कि वह वकीलों के मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देते रहे हैं और उतना ही महत्वपूर्ण छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य भी है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा पाठ्यक्रम को न केवल छात्रों में करुणा की भावना पैदा करनी चाहिए बल्कि अकादमिक लीडर्स को भी उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “मुझे लगता है कि भेदभाव का मुद्दा शिक्षण संस्थानों में सहानुभूति की कमी से सीधे जुड़ा हुआ है।”