गुलामी के दिनों में इंकलाब जिंदाबाद (Long Live The Revolution) का नारा भारतीय क्रांतिकारियों के लिए युद्ध घोष बन गया था। इस नारे को गढ़ने वाले सैयद फजल-उल-हसन को दुनिया मौलाना हसरत मोहानी के नाम से जानती है।

हसरत मोहानी न सिर्फ एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वह लेखक, अनुवादक और पत्रकार भी रहे। उन्होंने गीत और गजल भी लिखे। बॉलीवुड फिल्म ‘निकाह’ में गुलाम अली की ग़ज़ल “चुपके-चुपके रात दिन” हसरत मोहानी की लिखी हुई है।

मोहानी का जन्म 1 जनवरी, 1881 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के एक कस्बे में हुआ था। कॉलेज में रहते हुए मोहानी ने एक पत्रकार के रूप में लिखना शुरू किया और उर्दू मासिक उर्दू-ए-मुअल्ला के संपादक बने। उन्होंने खुद भी एक उर्दू अखबार मुस्तक़िल की शुरुआत की थी।

हसरत मोहानी एक साधारण जमींदार परिवार से थे। मोहानी के पिता सैयद अज़हर हुसैन को उनकी दादी से पैतृक संपत्ति के रूप में खजवाहा तहसील के तीन गांव विरासत में मिले थे। मोहानी ने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा एक स्थानीय मकतब में ली। अच्छे अंकों के साथ मैट्रिक पास करने के बाद, वह 1899 में महोम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ में शामिल हो गए। इसे ही वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

कृष्ण भक्त मौलाना मोहानी

एक बहुमुखी कवि के रूप में उन्होंने कई उल्लेखनीय कविताएँ लिखीं, जिनमें से कई उन्होंने भगवान कृष्ण को समर्पित कीं। हसरत के मन में भगवान कृष्ण के प्रति अपार प्रेम और भक्ति थी जो उनके छंदों में झलकता है। ऐसा कहा जाता है कि वह भगवान कृष्ण का जन्मदिन कृष्ण जन्माष्टमी मनाने के लिए अक्सर मथुरा जाते थे। उन्होंने कृष्ण को लेकर कई गीत लिखे, कुछ उर्दू में और कुछ अवधी बोली में। उदाहरण के लिए हसरत मोहानी की लिखी ये पंक्तियां पढ़ा जा सकती हैं-

मन तोसे प्रीत लगाई कन्हाई
काहू और किसुरती अब काहे को आई
गोकुला ढूंढ बृंदाबन ढूंढो
बरसाने लग घूम के आई
तन मन धन सब वार के ‘हसरत’
मथुरा नगर चली धूनी रमाए

हसरत मोहानी ने कृष्ण को ‘हज़रत श्री कृष्ण अलैहि रहमा’ (आदरणीय श्री कृष्ण का नाम धन्य है) कहा।

क्रांतिकारी मौलाना मोहानी

हसरत, एक सफल कवि होने के अलावा, एक महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। भारत की आजादी के लिए राष्ट्रीय आंदोलन में उनके महत्वपूर्ण योगदान और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, उन्हें भारतीय इतिहास के पन्नों से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वह हिंदू-मुस्लिम एकता में दृढ़ता से विश्वास करते थे।

1917 में रूस की बोल्शेविक क्रांति का कई भारतीय क्रांतिकारियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। मोहानी उनमें से एक थे। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा थे। उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है-

गांधी की तरह बैठके काटेंगे क्यों चरखा
लेनिन की तरह देंगे दुनिया को हिला हम

हसरत मोहानी 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहमदाबाद सत्र में भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के नेता स्वामी कुमारानंद के साथ भारत के लिए ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ या ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग करने वाले पहले भारतीय थे। इस सत्र में प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खान भी मौजूद थे। मोहानी 25 दिसम्बर, 1925 को आयोजित प्रथम भारतीय कम्युनिस्ट सम्मेलन की स्वागत समिति के अध्यक्ष थे।

कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान के विरोधी मौलाना मोहानी

संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 17 अक्टूबर, 1949 को संविधान सभा की बहस में भाग लेते हुए मोहानी ने अपने मित्र शेख अब्दुल्ला को दी जा रही रियायतों पर आपत्ति जताई, हालांकि उन्होंने कश्मीर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए छंद लिखे थे।

मौलाना हसरत मोहानी कश्मीर को दी जा रही विशेष प्रावधान के खिलाफ थे। तब प्रावधान को मसौदे में अनुच्छेद 306ए के रूप में क्रमांकित किया गया था, बाद में इसे संविधान में अनुच्छेद 370 में संशोधित किया गया।

26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद स्वतंत्रता सेनानी मोहानी ने संविधान सभा में स्पष्ट रूप से पूछा, “यह भेदभाव क्यों?” इस पर संविधान सभा के सदस्यों में से एक एन गोपालस्वामी अयंगर ने कहा कि यह कश्मीर की विशेष परिस्थितियों के कारण है। राज्य “अभी इस प्रकार के एकीकरण के लिए तैयार नहीं है।”

वह अपने रुख पर कायम रहते उन्होंने संविधान सभा में फिर से तर्क दिया: “जब आप कश्मीर के लिए ये सभी रियायतें देते हैं तो मैं बड़ौदा राज्य को बॉम्बे में विलय करने के लिए मजबूर करने के आपके मनमाने कृत्य पर सबसे अधिक आपत्ति जताता हूं।”