स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आज़ाद मूल नाम मुहियुद्दीन अहमद था। उन्हें प्रसिद्धि मौलाना आजाद के नाम से मिली। उनका जन्म 11 नवंबर, 1888 को सऊदी अरब के मक्का में हुआ था। मौलाना आज़ाद की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षा व्यवस्था की डाली नींव
हिंदू मुस्लिम एकता के पैरोकार आज़ाद एक शानदार वक्ता थे। उनके नाम ‘अबुल कलाम’ का शाब्दिक अर्थ भी ‘संवादों का देवता’ होता है। आजादी के बाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने आजाद, अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में ही भारत के शिक्षा व्यवस्था की नींव पड़ी थी। उन्हीं के कार्यकाल में IIT, IISc, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और UGC जैसे संस्थानों की स्थापना हुई थी। आज़ाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से भी एक थे।
मदरसा की शिक्षा पर उठाया था सवाल
‘द हिंदू’ पर प्रकाशित इतिहासकार एस इरफान हबीब के लेख के मुताबिक, मौलाना आज़ाद 19वीं सदी के आखिर के इस्लामी मदरसों की शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ”ये एक प्राचीन शिक्षा प्रणाली थी, जो अब हर दृष्टि से बेकार हो चुकी है। पढ़ाने का तरीका दोषपूर्ण है, पढ़ाए जाने वाले विषय बेकार हैं, पुस्तकों के चयन में कमी है।”
मौलाना आज़ाद की टिप्पणी पर अपनी राय व्यक्त करते हुए हबीब लिखते हैं, ”यदि आज़ाद ने सौ साल से भी अधिक समय पहले इस्लामी मदरसों के बारे में ऐसा महसूस किया था, तो हम शिक्षा की समकालीन प्रणाली में आमूल-चूल सुधार की तात्कालिकता और आवश्यकता की कल्पना कर सकते हैं।”
मौलाना आज़ाद को प्रारंभिक शिक्षा के लिए मदरसों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा था। वह लिखते हैं, ”ज़रा सोचिए अगर मैं वहीं रुक गया होता और नई जिज्ञासा के साथ नए ज्ञान की तलाश में नहीं निकलता तो मेरी क्या दुर्दशा होती! जाहिर है कि मेरी प्रारंभिक शिक्षा ने मुझे एक निष्क्रिय दिमाग और वास्तविकता से अंजान रहने के अलावा कुछ नहीं दिया होता।”
मौलाना के रूढ़िवाद विरोधी विचार
हबीब के लेख से ही मौलाना आज़ाद के रूढ़िवाद विरोधी विचारों का भी पता चलता है। अपने एक पत्र में आज़ाद लिखते हैं, ”किसी भी व्यक्ति के बौद्धिक विकास में उसकी रूढ़िवादी मान्यताएं सबसे बड़ी बाधा होती है। इंसान को कोई और ताकत उतना नहीं जकड़ती है, जितना कि उसकी रूढ़िवादी मान्यताएं।
कभी-कभी विरासत में मिली मान्यताओं की पकड़ इतनी मजबूत होती है कि शिक्षा और आस-पास का माहौल भी उससे छुटकारा नहीं दिला पाता। शिक्षा इंसान को एक नया रंग देती है लेकिन वह आंतरिक विश्वास के उस ढांचे में कभी प्रवेश नहीं करती, जहां जाति, परिवार और सदियों पुरानी परंपराओं का प्रभाव होता है।”