फलों का राजा कहे जाने वाले आम को शुरुआती संस्कृत ग्रंथों में अमरा कहा गया है। लोक कथाओं की मानें तो हजारों साल पहले भारत या बर्मा में कहीं आम का पेड़ लगा था।  632 ई. में भारत आने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने दुनिया को आम के बारे में सबसे पहले बताया था।

मुगल बादशाह अकबर ने दरभंगा (बिहार) में 100,000 आम के पेड़ों का बाग लगाया था। उन्होंने आईन-ए-अकबरी (1590) में आम के गुणों का विवरण दिया है। मुगल सम्राट बाबर ने भी बाबरनामा में आम की प्रशंसा की है।

इतिहास में यह दर्ज है कि दिल्ली में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में आमों का आनंद लिया जाता था। लाल किले (दिल्ली) के अंदर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के आम के बगीचे को हयात बख्श कहा जाता था। 

शाहजहां ने अपने पसंदीदा फल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मझगांव में पश्चिमी तट के एक बाग से दिल्ली तक अपने लिए एक कूरियर सेवा शुरू की थी, जिसकी रखवाली सैनिकों द्वारा की जाती थी।

मौर्य सम्राट अशोक ने शाही सड़कों के किनारे आम के पेड़ लगवाए थे। भारतीय कवि अमीर खुसरो ने अपनी रचना में आम को सबसे सुंदर फल बताया है। यूरोपीय भाषा में ‘आम’ का सबसे पहला संदर्भ 1510 में Ludovico di Varthema के इटालियन टेक्स्ट में मिलता है।

मिर्ज़ा ग़ालिब और आम

उर्दू के प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब ने आम न खाने वालों की तुलना गधा से कर दी थी। रेख्ता पर प्रकाशित एक किस्सा में बताया गया है कि एक रोज़ मिर्जा गालिब के दोस्त हकीम रज़ी उद्दीन ख़ान साहब जिनको आम पसंद नहीं थे, मिर्जा के घर पर आये। दोनों दोस्त बरामदे में बैठ कर बातें करने लगे। इत्तफ़ाक़ से एक कुम्हार अपने गधे लिए सामने से गुज़रा। ज़मीन पर आम के छिलके पड़े थे। गधे ने उनको सूंघा और छोड़कर आगे बढ़ गया। हकीम साहिब ने झट से मिर्जा से कहा, “देखिए! आम ऐसी चीज है जिसे गधा भी नहीं खाता।” मिर्जा तपाक से बोले, “बेशक गधा नहीं खाता।”

औरंगजेब से बचने के लिए आम किया ऑफर

साल 1687 की बात है। गोलकुंड के शासक अबुल हसन को औरंगजेब के बेटे शहजादा शाह आलम ने मुगल साम्राज्य के अधीन रहने की सलाह दी। अबुल हसन नहीं मानें। नतीजतन भरी गर्मी में औरंगजेब की सेना ने गोलकुंड किले के चारों ओर से घेर लिया। घबराए अबुल हसन ने औरंगजेब को मनाने के लिए दो लाख रुपये और लगभग 10 लाख रुपये के रत्न-आभूषण भेजे। साथ ही भेजा कई टोकरी आम। लेकिन औरंगजेब के लिए यह प्रलोभन पर्याप्त नहीं था। युद्धा हुआ और अबुल हसन को हारकर आत्मसमर्पण करना पड़ा।  

अल्फांसो के साथ जुड़ा है खूनी इतिहास

अल्फांसो को सबसे मीठे और रसीले आमों में गिना जाता है। हालांकि इसके नामकरण का इतिहास बहुत कड़वा है। अल्फांसो का नाम एक पुर्तगाली आक्रमणकारी अल्फांसो डी अल्बुकर्क के नाम पर रखा गया है। अल्फांसो पुर्तगाली गवर्नर था, जिसने वर्ष 1510 में गोवा पर आक्रमण किया था। उसने अपनी जीत के बाद अल्फांसो स्थानीय लोगों का नरसंहार किया। भयंकर रक्तपात हुआ। अल्फांसो की जीत के बाद पुर्तगालियों ने लगभग 450 वर्षों तक गोवा पर शासन किया। लेकिन विडंबना है कि आज भी उसका नाम मिठास और प्रलोभन देता है।