महाराष्ट्र सरकार ने ऐलान किया है कि अहमदनगर जिले का नाम बदलकर महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) के नाम पर रखा जाएगा और अहिल्या नगर के नाम से जाना जाएगा। राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा महारानी अहिल्या बाई की वीरता और उनका जीवन हिमालय से कहीं ऊंचा है। उनके नाम पर जिले का नाम रखना हमारा सौभाग्य है।
कौन थीं महारानी अहिल्याबाई होल्कर?
महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) का जन्म 31 मई 1725 को हुआ था। उनके पिता मन्कोजी शिंदे बीड जिले के धारनगर के ग्राम प्रमुख हुआ करते थे। लेखक-इतिहासकार विक्रम संपत पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ‘शौर्यगाथाएं: भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा’ में लिखते हैं कि होल्कर साम्राज्य के संस्थापक मल्हार राव होलकर एक अभियान से इंदौर लौट रहे थे। उन्होंने बीड में अपना डेरा डाला। एक दिन उनकी निगाह 8 साल की अहिल्या पर गई और बेहद प्रभावित हुए।
8 साल की उम्र में बनी थीं होल्कर परिवार की बहू
मल्हार राव ने मन्कोजी शिंदे के सामने अपने दस साल के बेटे खांडे राव से अहिल्या की शादी का प्रस्ताव रखा। मन्कोजी तुरंत तैयार हो गए। अहिल्याबाई होल्कर की दो संतानें हुईं। बेटा माले राव और बेटी मुक्ताबाई। 1754 में कुम्हेर किले की लड़ाई के दौरान खांडे राव की गोली लगने से मौत हो गई। खांडे राव ने अहिल्याबाई समेत करीब 10 महिलाओं से शादी की थी और निधन के बाद अहिल्या को छोड़कर सब उनके साथ सती हो गईं। ससुर मल्हार राव ने किसी तरह अहिल्या को सती होने से रोक लिया था।
22 साल की उम्र में गुजर गया था इलकलौता बेटा
20 मई 1766 को मल्हार राव होल्कर (Malhar Rao Holkar) भी चल बसे। ससुर के निधन के बाद अहिल्याबाई ने पेशवाओं के विरोध के बावजूद बेटे मालेराव को गद्दी पर बैठाया। हालांकि उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। सत्ता संभालने के साल भर बाद ही मालेराव का 22 साल की उम्र में निधन हो गया।
संपत लिखते हैं कि बेटे के निधन के बाद दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ ने अहिल्याबाई को किसी रिश्तेदार के पुत्र को गोद लेने की सलाह दी, लेकिन अहिल्याबाई ने खुद गद्दी संभालने का फैसला किया।
किससे की थी इलकौती बेटी की शादी?
विक्रम संपत लिखते हैं कि इकलौते बेटे के निधन के बाद अहिल्याबाई की सारी उम्मीदें बेटी मुक्ताबाई पर टिक गई थीं। इसी बीच उनके राज्य में डकैतों ने आतंक मचा दिया। महारानी ने ऐलान किया कि जो डकैतों से निपटने में मदद करेगा, उसके साथ अपनी बेटी का विवाह करेंगी। यशवंतराव फणसे नामक शख्स ने डकैतों का खात्मा किया। महारानी ने डकैतों को फांसी की सजा ना देकर कर बटोरने का काम सौंप दिया और यशवंतराव से अपनी बेटी मुक्ताबाई का विवाह कर दिया।
यशवंतराव और मुक्ताबाई को बेटा हुआ और उसका नाम नथीबा रखा गया। नथीबा ने दो शादियां की, लेकिन साल 1789 में बीमारी के चलते असमय निधन हो गया और दोनों पत्नियों ने भी आत्मदाह कर लिया। बेटे के निधन के अगले साल यशवंतराव भी चल बसे। इसके बाद अहिल्याबाई की बेटी ने भी सती होने का फैसला लिया।
जब महारानी की चीख सुन कलेजा कांप गया था…
सर जॉन मैल्कम लिखते हैं कि अहिल्याबाई बेटी की चिता के पास शांत खड़ी रहीं, लेकिन जैसे ही आग की लपटें निकलीं वो चीखने लगीं। उनकी चीत्कार से आसपास के लोगों का हृदय कांप गया। यह शायद पहली बार था जब अहिल्याबाई को इस तरह रोते हुए देखा गया था। इस घटना के बाद वह 3 दिनों तक अपने महल में बंद रहीं। न तो कुछ खाया-पीया और न ही किसी से एक शब्द बातचीत की।
मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, पंडित नेहरू भी प्रशंसक
महारानी अहिल्या बाई 1765 से 1795 के बीच करीब 30 साल तक होल्कर साम्राज्य की गद्दी पर रहीं। जीवन पर्यंत दान धर्म से लेकर मंदिरों के निर्माण में लगी रहीं। ओडिशा के महाराजा से लेकर हैदराबाद-अवध के नवाबों तक को मंदिर निर्माण के लिए लिखती रहीं। सोमनाथ मंदिर से लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
पंडित नेहरू भी रहे हैं मुरीद
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी किताब में लिखते हैं कि ‘महारानी अहिल्याबाई का शासन अपने दौर में बेमिसाल था। उस दौरान सुशासन था, सब लोग खुशहाल थे और राज्य की जनता महारानी की बहुत इज्जत किया करती थी। वह एक मजबूत औक कुशल प्रशासक थीं’।