उत्तर प्रदेश की राय बरेली सीट से कांग्रेस का नाता पहले लोकसभा चुनाव से ही है। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दामाद और इंदिरा गांधी के पति राय बरेली से सांसद बने थे। नेहरू-गांधी परिवार का राय बरेली से नाता इससे भी पुराना है। राय बरेली ही वह जगह है जहां आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार अंग्रेजों की गोली का सामना किया था। राय बरेली में ही घूमने के बाद पंडित नेहरू को पता चला था कि देश में गरीबी का क्या हाल है।
Bertil Falk ने अपनी किताब FEROZE The Forgotten GANDHI में इस बात का जिक्र किया है और यह भी बताया है कि फिरोज गांधी कैसे पहली बार राय बरेली से चुनाव लड़ने के लिए आए।
जवाहरलाल नेहरू को पहली बार ब्रिटिश साम्राज्य की गोलियों का सामना करना पड़ा
आजादी से काफी पहले राय बरेली में किसान आंदोलन के दौरान जवाहरलाल नेहरू को पहली बार ब्रिटिश साम्राज्य में गोलियों का सामना करना पड़ा था। उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शुरू किया गया था।
नेहरू का पहली बार हुआ गरीबी से सामना
यह दिलचस्प है कि जब जवाहरलाल नेहरू 32 साल के थे, तब उनकी राय बरेली की यात्रा से ही उन्हें उन परिस्थितियों का एहसास हो गया था, जिनमें भारतीय रहते थे। किताब में एम.जे. अकबर के हवाले से लिखा गया है, “वास्तविक भारत” की पहली और आकस्मिक यात्रा ने जवाहरलाल को नाटकीय रूप से बदल दिया। गरीबी के उस दृश्य ने उनके मानस पर एक अमिट प्रभाव छोड़ा। दूसरे शब्दों में, जवाहरलाल नेहरू तीन दशकों तक अंधेरे में रहे, उन्हें यह एहसास नहीं था कि उनके हमवतन गरीब थे।

रायबरेली के चुनाव मैदान में फिरोज गांधी
1952 में चुनाव लड़ने के लिए फिरोज गांधी को अपने लिए एक सीट की तलाश थी। वह तलाश राय बरेली में पूरी हुई।
ओंकार नाथ भार्गव याद करते हैं, “1946 में केंद्रीय और प्रांतीय विधानमंडलों के लिए चुनाव हुए। रफ़ी अहमद किदवई मुसलमानों के तत्कालीन आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव की संभावनाओं का आकलन करने के लिए राय बरेली जिले के राजा साहब शिवगढ़ आये। सभी बड़े कांग्रेस नेताओं ने कहा कि मुस्लिम लीग के उम्मीदवार शमीन अपनी जमानत खो देंगे। उस बैठक में सभी प्रमुख कांग्रेसी मौजूद थे और फिरोज गांधी ने किदवई साहब को सुझाव दिया कि उन्हें वहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहिए क्योंकि फिरोज को लगता था कि उनकी जीत की संभावनाएं कम हैं। किदवई साहब और अन्य कांग्रेसियों ने उनकी सलाह नहीं मानी और अंततः शिवगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से रफी साहब की हार हुई।
इलाहाबाद से नहीं उतर सके फिरोज
फ़िरोज गांधी एक इलाहाबादी थे लेकिन उनके लिए अपने घरेलू मैदान से चुनाव लड़ना संभव नहीं था। इसका कारण केवल इतना था कि वहां कई प्रतिस्पर्धी थे। इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट जवाहरलाल नेहरू और मसुरिया दीन के लिए निर्धारित किए गए थे। साथ ही लाल बहादुर शास्त्री जैसे कई अन्य लोग थे जिनके पास इलाहाबाद से टिकट का दावा करने के लिए फ़िरोज़ से कहीं अधिक बड़ा कारण था। (शास्त्री 1952 में लोकसभा के लिए नहीं, बल्कि उच्च सदन, राज्यसभा के लिए चुने गए थे।) ऐसे में सवाल ही नहीं था कि फ़िरोज़ वहां उम्मीदवार के रूप में खड़े हो सकते थे।

ऐसे में फ़िरोज गांधी को लोकसभा के लिए अपनी दावेदारी पेश करने के लिए एक अन्य निर्वाचन क्षेत्र की तलाश करनी पड़ी। फ़िरोज गांधी जब इलाहाबाद से चुनाव नहीं लड़ सके तो रफ़ी अहमद किदवई उन्हें राय बरेली ले आए। चूंकि, रफ़ी ने आज़ादी के संघर्ष के दौरान राय बरेली में अच्छा काम किया था, इसलिए वहां उनका बहुत सम्मान किया गया।
फिरोज के चुनाव प्रचार में आती थीं इंदिरा
जब रफ़ी अहमद किदवई ने फ़िरोज गांधी का परिचय देते हुए, उनके नेहरू परिवार से पारिवारिक संबंधों का वर्णन किया तो यह राय बरेली के लोगों के लिए एक बड़ी घटना थी। फ़िरोज गांधी ने अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की और चुनाव कार्य में अपने पति की सहायता के लिए इंदिरा भी रायबरेली पहुंचीं और कई दिनों तक अभियान चलाया। 1952 में चुनावी दौरे पर जवाहर लाल भी रायबरेली आए और फिरोज गांधी के निर्वाचन क्षेत्र में तीन-चार सभाओं को संबोधित किया।’
नेहरू के फिरोज से सवाल
इस दौरान जब नेहरू ने इंदिरा को देखा तो उन्होंने फिरोज से पूछा कि उनकी हर दिन कितनी माटिंग होती हैं, इंदिरा के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस सवाल पर फ़िरोज़ चुप रहे। इंदिरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “पापा, मैं बिल्कुल ठीक हूं।”
लेखक लिखते हैं कि आर.के पांडे 1997 में रायबरेली में स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता सेनानी संघ के कोषाध्यक्ष के साथ-साथ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ के सदस्य भी थे। उन्हें वे दिन अच्छे से याद हैं जब फिरोज गांधी और उनकी पत्नी ने फिरोज का पहला चुनावी अभियान राय बरेली में चलाया था। उस समय फिरोज गांधी लक्ष्मी होटल में रुके थे जबकि इंदिरा गांधी बेली गंज में रुकी थीं। वे अलग-अलग स्थानों पर प्रचार कर रहे थे और पत्रों के माध्यम से संवाद किया करते थे।
आर.के पांडे ने बताया, ‘कांग्रेस ने मुझे इंदिरा जी की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया था और मैं पूरे दिन उनके साथ रहता था। वह एक दिशा में जाती थीं और फ़िरोज गांधी दूसरी दिशा में। फ़िरोज साहब गांवों में जाते थे और बहुत अच्छी हिंदी बोलते थे। मैंने उसके जैसा सुन्दर व्यक्ति कभी नहीं देखा था। इंदिराजी की वजह से गांवों में उनके साथ जीजा जैसा व्यवहार किया जाता था, जहां लोग उनके पैर भी धोते थे। उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता था और वे जो भी कहते थे, हर कोई हाथ उठाकर उनका समर्थन करता था। इंदिरा फ़िरोज के आने से पहले से ही लोकप्रिय थीं क्योंकि वह नेहरूजी की बेटी थीं और 1930 में नमक आंदोलन के दौरान वह यहां भी आई थीं। जब फ़िरोज यहां से चुने गए और उन्होंने रायबरेली के लिए सारा काम करना शुरू कर दिया तो वे और अधिक लोकप्रिय हो गए।’
1952 के चुनाव के वक्त राय बरेली में 8,06,589 मतदाता थे। फिरोज गांधी को 1,62,595 मत मिले थे। दूसरे नंबर पर श्री नंद किशोर थे। उन्हें 1,33,342 वोट मिले थे।