18वीं लोकसभा अध्‍यक्ष के रूप में ओम ब‍िरला का चुनाव कुछ मायनों में खास रहा। चार दशक से भी ज्‍यादा समय के बाद ब‍िरला ऐसे दूसरे लोकसभा अध्‍यक्ष हुए जो एक कार्यकाल पूरा करके लगातार दूसरी बार स्‍पीकर बने। उनसे पहले बलराम जाखड़ के नाम यह रिकॉर्ड दर्ज था।

ब‍िरला का चुनाव इस मामले में भी व‍िरला कहा जाएगा क‍ि वह न‍िर्व‍िरोध न‍िर्वाच‍ित नहीं हुए। उनका न‍िर्वाचन ध्‍वन‍ि मत से हुआ। आजादी के पहले ऐसा होना असामान्‍य नहीं था, पर आजाद  भारत के संसदीय इत‍िहास में ऐसा कम ही हुआ है। 

1925 में जब सेंट्रल लेज‍िस्‍लेट‍िव असेंबली के प्रेस‍िडेंट सर फ्रेडेर‍िक व्‍हाइट र‍िटायर हुए तो पहली बार सेंट्रल लेज‍िस्‍लेट‍िव असेंबली के प्रेस‍िडेंट (मौजूदा लोकसभा स्‍पीकर के समकक्ष) का चुनाव हुआ। सरकार ने अपना उम्‍मीदवार खड़ा क‍िया, लेक‍िन व‍िट्ठल भाई पटेल ने ब्र‍िट‍िश सरकार के उम्‍मीदवार को दो वोट से हरा द‍िया था। वह 22 अगस्‍त, 1925 को इस पद पर न‍िर्वाच‍ित हुए थे। 

मत पत्र तो नष्‍ट कर द‍िए

1946 का स्‍पीकर का चुनाव भी द‍िलचस्‍प था। कांग्रेस ने व‍िपक्ष के उम्‍मीदवार के रूप में गणेश वासुदेव (जी.वी.) मावलंकर को उतारा। बहुमत ब्र‍िट‍िश सरकार के पक्ष में था। सरकार को पूरी उम्‍मीद थी क‍ि उसका उम्‍मीदवार जीत जाएगा। लेक‍िन, उसकी उम्‍मीदों पर पानी फ‍िर गया था। 

सरकार के सदस्‍यों ने क्रॉस वोट‍िंग कर द‍िया। नतीजा हुआ क‍ि जीवी मावलंकर तीन वोट से न‍िर्वाच‍ित घोष‍ित कर द‍िए गए। 

इस नतीजे से ब्र‍िट‍िश सरकार तमतमा गई थी। उसने पता लगाने की कोश‍िश की क‍ि वोटि‍ंग में दगा करने वाले सदस्‍य कौन थे।

सरकार मतपत्रों की जांच करना चाहती थी। असेंबली के सेक्रेटरी ने सरकार की इस मंशा को भांप ल‍िया था। इसके बाद उन्‍होंने सारे मत पत्र ही नष्‍ट करवा द‍िए।  

…1946 के चुनाव का वो क‍िस्‍सा

21 जनवरी, 1946 को छठी सेंट्रल लेज‍िस्‍लेट‍िव असेंबली का पहला सत्र शुरू हुआ। मनोनीत सदस्‍य सर सी. जहांगीर को प्रेस‍िडेंट के चुनाव तक सत्र चलाने की ज‍िम्‍मेदारी दी गई थी। 24 जनवरी, 1946 को प्रेस‍िडेंट का चुनाव हो रहा था। सर जहांगीर सरकार की ओर से उम्‍मीदवार थे। उन्‍हें सरकारी पक्ष, यूरोप‍ियन ग्रुप और मुस्‍ल‍िम लीग का पूरा समर्थन प्राप्‍त था। नवाबजादा ल‍ियाकत अली खान ने उनके नाम का प्रस्‍ताव क‍िया।

उधर, कांग्रेस की ओर से शरत चंद्र बोस ने जी.वी. मावलंकर के नाम का प्रस्‍ताव रखा। गुप्‍त मतदान के बाद जब मतपत्रों की ग‍िनती हुई तो मावलंकर को 66 और जहांगीर को 63 वोट म‍िले थे। नतीजों से सब हैरान थे।

जाह‍िर है, सत्‍ता पक्ष के तीन सांसदों ने कांग्रेस उम्‍मीदवार के पक्ष में मत द‍िया था। यह जानते हुए क‍ि इससे ब्र‍िट‍िश सरकार काफी नाराज होगी। ऐसा हुआ भी।

सरकार ने र‍िटर्न‍िंग ऑफ‍िसर एम.एन. कौल से मतपत्र द‍िखाने के ल‍िए कहा। लेक‍िन, कौल को ऐसा होने का अंदाज पहले से था। इसल‍िए उन्‍होंने सरकार को जवाब द‍िया क‍ि मतपत्र नष्‍ट कर द‍िए गए हैं।

आजाद भारत में जब न‍िर्व‍िरोध नहींं हुआ स्‍पीकर का चुनाव

आजाद भारत में जब पहली लोकसभा का अध्‍यक्ष चुना जाने लगा तब भी जी.वी. मावलंकर ने शंकर शांताराम मोरे को हरा कर यह पद हास‍िल क‍िया और वह ताउम्र (1956) अध्‍यक्ष बने रहे। इसके बाद से लोकसभा अध्‍यक्ष न‍िर्वि‍रोध ही न‍िर्वाच‍ित होते रहे। लेक‍िन, 1967 में दूसरी बार इसके ल‍िए मुकाबला हुआ। 

1967 में कांग्रेस के नीलम संजीव रेड्डी और न‍िर्दलीय सांसद टी व‍िश्‍वनाथम लोकसभा अध्‍यक्ष पद के ल‍िए उम्‍मीदवार थे। मत-व‍िभाजन के ल‍िए पहली बार सांसदों को पर्ची दी गई। उन्‍हें हां या ना दर्ज कर पर्ची जमा कराना था। मतदान गुप्‍त ही था। वोटों की ग‍िनती हुई तो पता चला क‍ि नीलम संजीव रेड्डी के समर्थन में 278 और व‍िरोध में 207 वोट पड़े थे।

आजाद भारत में तीसरी बार 1976 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस के बल‍िराम भगत और जनसंघ के जगन्‍नाथ राव के बीच लोकसभा अध्‍यक्ष पद के ल‍िए मुकाबला हुआ था। 344 वोट पाकर भगत व‍िजेता घोष‍ित क‍िए गए थे।