पंजाब में भारतीय जनता पार्टी (BJP) 28 साल बाद बिना गठबंधन के चुनाव लड़ने वाली है। भाजपा दूसरे दलों के प्रमुख सिख नेताओं और गैर-राजनीतिक लेकिन प्रभावशाली सिख चेहरों, विशेषकर जाट सिख को जोड़ने की कोशिश में लगी हुई है।
पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं। पिछले तीन दशकों से भाजपा ने राज्य में अधिकतर तीन लोकसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ा है। इस बार भाजपा को 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारना है और वह अपनी रणनीतिक के तहत विभिन्न पार्टियों के कई सिख नेताओं के साथ संपर्क में है।
कहां-कहां से कौन आया?
पिछले कुछ दिनों में आप (सुशील कुमार रिंकू) और कांग्रेस (रवनीत सिंह बिट्टू) से एक-एक सांसद भाजपा में शामिल हुए हैं। इसके अलावा पूर्व राजनयिक तरणजीत सिंह संधू को भी भाजपा ने सदस्यता दी है। आप के एक मात्र सांसद सुशील कुमार रिंकू दलित समुदाय से हैं। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए भी उनके नाम की सिफ़ारिश की गई थी।
मंनप्रीत बादल जैसे कई नेता और कुछ अन्य पहले ही पार्टी में शामिल हो चुके हैं। उनके अलावा कांग्रेस की एक अन्य मौजूदा सांसद प्रणीत कौर, जो कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं, वो भी हाल ही में भाजपा में शामिल हो गई हैं।
बिट्टू, कौर और बादल पंजाब में जाने-पहचाने जाट सिख चेहरे हैं। भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। पंजाब में भाजपा बड़े पैमाने पर राज्य के शहरी कस्बों में हिंदू मतदाताओं तक ही सीमित रही है।

संधू को पार्टी में लाने का महत्व
तरणजीत सिंह संधू पंथिक (सिख धर्म के प्रति समर्पित) जाट सिख हैं, शिक्षित हैं और एक विश्वसनीय चेहरा हैं। अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत, संधू के दादा सरदार तेजा सिंह समुंद्री, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के संस्थापकों में से एक थे। पंजाब में अकाली राजनीति मुख्य रूप से SGPC पर आधारित है।
सिख संप्रदाय के दस गुरुओं के अलावा समुंद्री एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनका नाम अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में हॉल या किसी अन्य स्थान पर है।
पिछले विधानसभा चुनावों को छोड़कर बीते तीन दशकों में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने एक साथ चुनाव लड़ा है। दोनों एक दूसरे को शहरी हिंदू वोट और पंथिक सिख वोट ट्रांसफर करते रहे हैं। इस तरह दोनों पार्टियां एक दूसरे को फायदा पहुंचा चुकी हैं। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन नहीं है।
SAD के संरक्षक और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत प्रकाश सिंह बादल अपनी पार्टी और भाजपा के गठजोड़ को “नौ-मास दा रिश्ता” यानी नाखून और त्वचा की तरह बताते थे।

अब भाजपा के सामने क्या है चुनौती?
किसानों के विरोध और हाल ही में कनाडा सरकार द्वारा सिख चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारतीय एजेंसियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बाद, पंजाब में भाजपा को एक कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में चित्रित किया जा रहा है।
सिखों को भाजपा के वैचारिक स्रोत RSS ने हमेशा उन्हें एक बड़े हिंदू परिवार का हिस्सा माना है, जबकि सिख अपनी अलग और स्वतंत्र पहचान पर जोर देते रहे हैं।