संजय गांधी की मौत (23 जून, 1980) के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी अपने पति के संसदीय क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़ना चाहती थीं। लेकिन तब उनकी उम्र 25 वर्ष नहीं थी, जो भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु है।
ऐसे में मेनका चाहती थीं कि उनकी सास और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संविधान में संशोधन कर चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु को ही कम कर दें। हालांकि इंदिरा गांधी ने ऐसा नहीं किया और उपचुनाव में राजीव गांधी को अमेठी से उतार दिया। वह सांसद बन गए।
मेनका को लगा कि उनके पति की राजनीतिक विरासत को हड़पा जा रहा है। सोनिया गांधी के विपरीत मेनका हमेशा से मुखर और राजनीतिक रूप से सक्रिय रही थीं। वह अपने पति के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेती थीं।
संजय की मौत के बाद राजनीति में उतरने को बेताब मेनका को इंदिरा गांधी के गुस्से का सामना करना पड़ा। इंदिरा, संजय की खाली जगह को राजीव से भरना चाहती थीं। ऐसे में मेनका ने जब राजनीतिक सक्रियता दिखाने की कोशिश की थी, तो इंदिरा ने उन्हें घर से निकाल दिया। मेनका गांधी को ससुराल से निकाले जाने का पूरा किस्सा पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें
ससुराल छोड़ने के बाद
ससुराल से निकाले जाने के बाद मेनका गांधी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट कर दीं। अमेठी से राजीव गांधी को उपचुनाव में मिली जीत के एक साल बाद, मेनका गांधी ने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने अमेठी को अपना ‘असली राजनीतिक घर’ बताया। उन्होंने अमेठी में संकल्प लिया कि वह अपने जेठ (राजीव गांधी) के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेगीं।
उन्होंने संजय के करीबी और विश्वासपात्र अकबर अहमद के साथ राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की और 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से आम चुनाव लड़ा। प्रचार अभियान के दौरान मेनका गांधी का प्रमुख मुद्दा “पतित कांग्रेस संस्कृति को उजागर करना” था।
15 जून, 1984 की इंडिया टुडे मैगज़ीन की रिपोर्ट में मेनका गांधी का बयान छपा है। रिपोर्ट के मुताबिक मेनका ने कहा था, “चाहे कांग्रेस पार्टी पैसा बहाए या नहीं, मुद्दा यह है कि हर कोई कांग्रेस और उसके तरीकों से तंग आ चुका है।”
राजीव ने प्रचार के लिए सोनिया को मैदान में उतारा
चुनाव से पहले राजीव गांधी खेमे ने सोचा था कि मेनका को हराना उनके लिए आसान काम नहीं होगा क्योंकि वह जमीन पर सक्रिय रूप से काम कर रही थीं। अमेठी की आबादी में बड़े पैमाने पर महिला मतदाता शामिल थीं, और इसलिए राजीव गांधी ने अपनी पत्नी सोनिया से इस निर्वाचन क्षेत्र में उनके साथ प्रचार करने के लिए कहा। उन्होंने अपने पति का साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इंडिया टुडे मैगज़ीन के दिसंबर 1984 के एक लेख के अनुसार, जब राजीव गांधी देशभर का दौर कर रहे थे, तब सोनिया ने अमेठी में मजबूती से डेरा डाला।
रिपोर्ट में लिखा है, “सोनिया अपना सिर साड़ी के आंचल से ढक कर, माथे पर लाल बिंदी और कलाई में लाल चूड़ियां पहनकर, अमेठी पहुंची थीं। हालांकि उन्होंने कोई भाषण नहीं दिया। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को शुद्ध हिंदी में संबोधित किया। कार्यकर्ता उन तक आसानी से पहुंच सकते थे। महिला मतदाताओं से उन्होंने ज्यादा से ज्यादा संपर्क किया।”
अचानक बदल गया माहौल
31 अक्टूबर, 1984 के बाद चीजें नाटकीय रूप से बदल गईं, जब इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षक द्वारा हत्या कर दी गई। इसके परिणामस्वरूप राजीव गांधी अंतरिम प्रधानमंत्री बने और चुनाव में जनता की भावना उनके पक्ष में चला गया।
हालांकि, मेनका इससे विचलित नहीं हुईं। अब उनका मुकाबला एक सांसद से नहीं, बल्कि एक प्रधानमंत्री से था। उन्होंने इसे अपने प्रचार का मुद्दा बनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी के पास अमेठी के लिए अतिरिक्त समय नहीं होगा।
इंडिया टुडे मैगजीन की एक रिपोर्ट में मेनका गांधी के एक भाषण का जिक्र मिलता है, जिसमें वह कहती हैं, “श्रीमती गांधी को याद करें? जब वह विधवा हो गईं, तो वह अपने पति के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली के लोगों के पास गईं। लोगों ने उन्हें वोट दिया और रायबरेली में खूब विकास हुआ। लेकिन एक बार जब वह प्रधानमंत्री बन गईं, तो रायबरेली का पतन शुरू हो गया। यहां भी वैसा ही होगा। इसलिए मैं कहती हूं।”
हालांकि, माहौल राजीव गांधी के पक्ष में था। कांग्रेस को शानदार जीत मिली। 514 में से 404 सीटें जीतीं। अमेठी में उन्होंने मेनका गांधी को 3.14 लाख से अधिक वोटों से हराया। मेनका गांधी की जमानत जब्त हो गई और फिर उन्होंने कभी भी अमेठी से चुनाव नहीं लड़ा।