किसी भी प्रधानमंत्री की नीतियां और फैसले उनके करीबी अफसरों या लोगों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। इंदिरा गांधी की बात करें तो परमेश्वर नारायण हक्सर उनके ऐसे सहयोगी थे जिनका बैंकों के राष्ट्रीयकरण, कांग्रेस के विभाजन, प्रिवी पर्स समाप्ति और बांग्लादेश युद्ध से जुड़े फैसलों में बड़ा हाथ था। इन फैसलों ने इंदिरा को इतिहास में दर्ज कराया। लेकिन, इंदिरा गांधी पर जब संजय गांधी का प्रभाव बढ़ गया और संजय काफी ताकतवर भूमिका में आ गए तो हक्सर को जाना पड़ा।
संजय के उभार के साथ, इंदिरा के करीबियों में राजेंद्र कुमार (आरके) धवन जैसे लोगों की पैठ बढ़ी। धवन ऑल इंडिया रेडियो के पूर्व कर्मचारी थे। उन्हें 1962 में इंदिरा के स्टाफ में यशपाल कपूर ने एंट्री दिलाई थी। यशपाल और धवन रिश्ते में भाई (सगा नहीं) थे। उस समय यशपाल पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ काम कर रहे थे।
बाद में यशपाल इंदिरा गांधी के ओएसडी बने। यह इंदिरा को बड़ा भारी पड़ा और कह सकते हैं कि मूल रूप से आपातकाल लगाए जाने का करण भी बना। कैसे, जानते हैं:
कहानी 1971 के लोकसभा चुनावों से शुरू हुई, इंदिरा की कांग्रेस (आर) ने शानदार जीत दर्ज की। 518 में से 352 सीटें! 10 मार्च को आए नतीजे में इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से जीती थीं। उन्होंने संयुक्त समाजवादी पार्टी के राज नारायण को 1,10,000 मतों से हराया।
‘इंदिरा हटाओ’ का नारा देने वाले राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष गांधी के चुनाव को चुनौती दी। उन्होंने गलत तरीके से चुनाव जीतने का दावा करते हुए इंदिरा पर आरोपों की झड़ी लगा दी। हालांकि, ज्यादातर आरोप खारिज हो गए, लेकिन दो महत्वपूर्ण बिंदुओं के आधार पर 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी ठहराते हुए उनका निर्वाचन रद्द कर दिया।
इंदिरा को महंगे पड़ गए यशपाल कपूर
इंदिरा गांधी ने यशपाल कपूर को अपना चुनाव एजेंट बनाया था। कपूर सरकारी सेवा में थे और गजेटेड ऑफिसर थे। प्रधानमंत्री सचिवालय में ओएसडी का काम कर रहे थे।
कपूर ने 13 जनवरी, 1971 को पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया था। 14 जनवरी को उनका इस्तीफा स्वीकार किया गया, लेकिन इसकी अधिसूचना 25 जनवरी को जारी की गई थी। 4 फरवरी, 1971 को गांधी ने उन्हें औपचारिक तौर पर अपना चुनाव एजेंट नियुक्त किया।
हाईकोर्ट ने माना कि गांधी ने 29 दिसंबर, 1970 से चुनाव के लिए खुद को एक उम्मीदवार के रूप में पेश किया था। यह भी माना गया कि यशपाल कपूर ने 13 जनवरी, 1971 को अपनी सेवा से इस्तीफा सौंपा था, जो 25 जनवरी, 1971 को तब तक प्रभावी नहीं हुआ, जब तक कि अधिसूचित नहीं किया गया था। इस बीच कपूर ने (गांधी के निर्देशों के तहत) 7 जनवरी, 1971 को मुंशी गंज में और 19 जनवरी, 1971 को कालान में इंदिरा के पक्ष में भाषण दिया था। इस आधार पर अदालत का यह निष्कर्ष था कि गांधी ने चुनावी फायदे के लिए सरकारी अधिकारी यशपाल कपूर की सहायता प्राप्त की।
कोर्ट इस नतीजे पर भी पहुंचा था कि यशपाल कपूर, रायबरेली के जिला मजिस्ट्रेट, रायबरेली के पुलिस अधीक्षक और उत्तर प्रदेश सरकार के गृह सचिव ने 1 और 25 फरवरी, 1971 को इंदिरा गांधी के चुनाव दौरे के संबंध में मंच, लाउडस्पीकर और बैरिकेड लगाने और पुलिस बल के सदस्यों को तैनात करने की व्यवस्था की थी। हाईकोर्ट ने माना कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(7) के तहत एक भ्रष्ट आचरण है।
इन दो प्वाइंट्स पर अदालत ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करते हुए छह साल तक उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। इस फैसले के बाद 15 दिन के भीतर ही (25 जून को) इंदिरा ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
इंदिरा को जिस ‘गुनाह’ की सजा मिली थी, उसे कुछ लोग साधारण अपराध मानते थे। ‘द टाइम्स’ ने लिखा था, ”यह एक प्रधानमंत्री को यातायात के नियम तोड़ने पर बर्खास्त करने जैसा था।”
खुद इंदिरा गांधी को भी अहसास नहीं था कि अदालत इतनी सख्त सजा सुनाएगी। उन्हें एक बार कोर्ट में तलब किया गया था और राज नारायण के वकील शांति भूषण ने उनसे पूछताछ की थी। इस तरह के मामले में अदालत में पेश होने वाली वह पहली प्रधानमंत्री थीं।
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