लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस उत्तराखंड में खाता भी नहीं खोल सकी और राज्य में सरकार चला रही भाजपा को सभी पांचों सीटों पर जीत मिली है। कांग्रेस ने अपने खराब प्रदर्शन का शुरुआती आकलन किया है और इसमें उसे पता चला है कि पार्टी नेताओं के बीच तालमेल, सद्भाव और आपसी बातचीत की कमी हार की प्रमुख वजहें हैं।

ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पूनिया से भी कहा है कि वह उत्तराखंड में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा करें और इस महीने के अंत तक पूनिया इस काम को शुरू कर सकते हैं।

उत्तराखंड में 10 जुलाई को विधानसभा की दो सीटों- बद्रीनाथ और मंगलौर में वोटिंग भी होनी है।

उत्तराखंड कांग्रेस की ओर से चुनाव नतीजों को लेकर अनुशासन कमेटी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री नव प्रभात के द्वारा आकलन किया गया है। नव प्रभात उत्तरकाशी और टिहरी गढ़वाल जिले में विधानसभा और ब्लॉक लेवल पर बैठक भी कर चुके हैं।

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2024 में लगभग दो गुनी हुई हैं कांग्रेस की सीटें। (Source-rahulgandhi/FB)

लगातार जीत रही है बीजेपी

ऐसा लगातार तीसरी बार हुआ है जब बीजेपी ने उत्तराखंड में लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर जीत दर्ज की है। पार्टी 2017 और 2022 में विधानसभा का चुनाव जीतकर राज्य में सरकार भी बना चुकी है।

कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरा

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले गिर गया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 38% वोट मिले थे जबकि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस का वोट शेयर 32.83% रहा है।

2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि इस बार पार्टी इन 19 में से भी 14 विधानसभा सीटों पर पीछे रही है। कांग्रेस के अंदरुनी सूत्रों का कहना है कि यह प्रदर्शन पार्टी के लिए एक बड़े झटके की तरह है।

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी। (Source-ANI)

नेता प्रतिपक्ष की सीट पर भी पीछे रही कांग्रेस

कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बाजपुर की विधानसभा सीट पर भी पीछे रही है जबकि इस सीट से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य विधायक हैं। इसी तरह चकराता विधानसभा सीट से जहां से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह विधायक हैं, इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे हैं।

कुल मिलाकर कांग्रेस 70 विधानसभा सीटों में से 63 पर पीछे रही है।

नव प्रभात ने बताया, अपने भ्रमण के दौरान मैं संगठन के भीतर तालमेल और बातचीत की कमी की वजह से नतीजों पर पड़ने वाले असर को समझने की कोशिश कर रहा हूं। अब तक मैंने जिन दो जिलों का दौरा किया है, लोगों ने मुझे बताया कि नेताओं में एक दूसरे के प्रति सद्भाव और सम्मान की कमी थी और इसने आपसी लड़ाई को बढ़ावा दिया।

नवप्रभात ने बताया कि वह चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह की पहचान कर रहे हैं और सुझाव जुटा रहे हैं कि चीजों को बदलने के लिए क्या किया जाए क्योंकि पार्टी 2027 के विधानसभा के चुनाव के लिए तैयारी शुरू करने जा रही है।

उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष (संगठन और प्रशासन) मथुरादत्त जोशी ने बताया कि लोकसभा चुनाव में मिली हार को देखते हुए नव प्रभात से पूरे प्रदेश का दौरा करने के लिए कहा गया है। इससे मिले फीडबैक से वह आगामी स्थानीय निकाय, पंचायत और विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की रणनीति को फिर से बनाएंगे।

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मोदी सरकार ने चलाया था आकांक्षी जिला कार्यक्रम। (Source-FB)

कमियों पर नहीं दिया गया ध्यान

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस तरह की समीक्षा बैठकें पिछले चार चुनावों (दो लोकसभा और दो विधानसभा) में पार्टी को मिली हार के बाद भी की जा चुकी हैं। लेकिन ऐसी समीक्षा बैठकों से जो कमियां निकल कर सामने आई थीं, उन पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने स्थानीय इकाइयों को हर पोलिंग बूथ पर 21 से 51 लोगों को जोड़ने का निर्देश दिया था लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि जमीन पर इस निर्देश पर कितना अमल किया गया।

पार्टी के एक नेता ने बताया कि टिहरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग जोत सिंह गुनसोला को उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में नहीं था।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले वोट

लोकसभा सीट का नाममिले वोट (प्रतिशत में)
नैनीताल-उधम सिंह नगर34.61
अल्मोड़ा-पिथौरागढ़29.18
हरिद्वार37.6
टिहरी गढ़वाल22
गढ़वाल36.43

वरिष्ठ नेताओं ने नहीं लड़ा चुनाव

पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि अगर राज्य में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जैसे- पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस बार चुनाव लड़ा होता तो कांग्रेस कुछ सीटें जीत सकती थी। पार्टी ने इन नेताओं से चुनाव लड़ने के लिए भी कहा था लेकिन उन्होंने कई बातों का बहाना बनाकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

हरीश रावत राज्य में पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने खुद को हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के मैदानी इलाकों तक ही सीमित कर लिया। यहां से उनके बेटे वीरेंद्र रावत चुनाव लड़ रहे थे। वीरेंद्र को लोकसभा चुनाव में 1.64 लाख वोटों से हार मिली है। हरिद्वार सीट से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चुनाव जीते हैं।

पार्टी के एक नेता ने कहा कि अगर हरीश रावत चुनाव लड़े होते तो यह दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच सीधा मुकाबला होता और कांग्रेस के यहां पर जीतने के मौके ज्यादा थे।