जैसे-जैसे मतगणना की तारीख नजदीक आ रही है, उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को ऐसा लगता है कि इस चुनाव में उनके द्वारा बनाए गए सामाजिक गठबंधन से उन्हें फायदा मिलेगा। बताना होगा कि इस चुनाव में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में PDA (पीडीए) और तेजस्वी यादव ने बिहार में BAAP (बाप) नाम से सामाजिक गठबंधन तैयार किया।
चुनाव के दौरान तमाम अलग-अलग लोगों के समूह एक सामाजिक गठबंधन बनाते हैं और ऐसे गठबंधन किसी पार्टी को पहले नंबर पर भी ले जा सकते हैं।
Akhilesh Yadav PDA: पुराने MY समीकरण से आगे बढ़े अखिलेश
इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के सामने समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव के द्वारा बनाए गए मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण से आगे ले जाने की चुनौती थी। उन्होंने इस दिशा में कोशिश की और पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर पीडीए का फार्मूला दिया।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और इस बार उसने यादव समुदाय के सिर्फ पांच लोगों को टिकट दिया है। यह सभी मुलायम सिंह यादव के सैफई परिवार से संबंध रखते हैं।

Akhilesh Yadav Social Engineering: अखिलेश की सोशल इंजीनियरिंग
सपा ने इस बार चुनाव मैदान में कुर्मी समुदाय के 10 नेताओं को, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, सैनी समुदाय के नेताओं को 6, निषाद समुदाय को तीन, ब्राह्मण समुदाय को चार और पाल समुदाय को एक टिकट दिया है। चुनाव के बीच में ही अखिलेश यादव ने ओबीसी के अंतर्गत आने वाली गडरिया जाति के नेता श्यामलाल पाल को उत्तर प्रदेश में सपा की उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया।
अखिलेश यादव ने इस तरह की सोशल इंजीनियरिंग इसलिए बनाई क्योंकि वह बीजेपी के सपा को यादव-मुस्लिम पार्टी बनाने और यह पार्टी सिर्फ मुलायम सिंह यादव के परिवार के द्वारा चलाई जा रही है, इन आरोपों का जवाब दे सके। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में ओबीसी के अंतर्गत आने वाली गैर यादव जातियों के समर्थन की वजह से कामयाबी हासिल की है।
सपा ने इस बार टिकट वितरण में बीजेपी के आधार वाले जातीय समुदायों कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, सैनी, पाल और दलित तबके के एक वर्ग को ध्यान में रखकर टिकट बांटे।
उत्तर प्रदेश में बसपा के कमजोर होने की वजह से बीजेपी और सपा दोनों की नजर दलित समुदाय पर है। बीजेपी ने बसपा के कोर वोट बैंक माने जाने वाले जाटव समुदाय तक पहुंचने की कोशिश की है। दलित समाज के पासी समुदाय पर पहले से ही बीजेपी का फोकस है।

सामान्य सीटों पर दलित नेताओं को दिया टिकट
समाजवादी पार्टी ने इस बार सामान्य सीटों पर भी दलित समुदाय के नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। जैसे- अयोध्या में कई बार के विधायक और पासी समुदाय से आने वाले अवधेश प्रसाद को और मेरठ में जाटव समुदाय से आने वाली सुनीता वर्मा को टिकट दिया।
Tejashwi BAAP Equation: तेजस्वी का बाप समीकरण
जैसे मुलायम सिंह यादव का उत्तर प्रदेश में आधार मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण है, इसी तरह लालू प्रसाद यादव को बिहार में मुस्लिम-यादव मतदाताओं का समर्थन मिलता है। लेकिन इस बार लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने MY समीकरण से आगे बढ़ते हुए इसे BAAP समीकरण तक ले जाने की कोशिश की है। इसमें उन्होंने B से बहुजन (दलित), A से अगड़ा, A से आधी आबादी यानी महिलाएं और P से पिछड़ों को शामिल किया है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछड़े वोटों को एकजुट करने की लड़ाई मंडल की राजनीति से आगे मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव तक जाती है। 1960 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) ने खेती करने वाली पिछड़ी और कारीगर जातियों के लिए आरक्षण की मांग की थी। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने पिछड़े पावें 100 में 60 का नारा दिया था। इसका मतलब था ओबीसी समुदाय को 60% आरक्षण दिया जाना चाहिए।
इस नारे का असर हुआ और 1967 में एसएसपी ने उत्तर प्रदेश की 425 में से 44 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि भारतीय जन संघ को 99 सीटें मिली। बिहार में एसएसपी ने 271 में से 68 सीटें जीती और भारतीय जन संघ को 26 सीटें मिली। उत्तर प्रदेश और बिहार में भारतीय जन संघ के टिकट पर जीते नेताओं में बड़ी संख्या में ओबीसी समुदाय के नेता थे।

Ram Manohar Lohia AJGAR: अजगर समीकरण से हुआ कांग्रेस को नुकसान
लोहिया के नारे ने गैर कांग्रेसी नेताओं की पीढ़ी को खड़ा किया। उत्तर प्रदेश में जाट नेता चौधरी चरण सिंह ने सरकार बनाई और फिर अपना राजनीतिक दल भी बनाया। चौधरी चरण सिंह का सामाजिक गठबंधन अजगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अजगर का मतलब था- अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत।
चरण सिंह जब कांग्रेस में थे तभी से उन्होंने ग्रामीण इलाकों और किसानों के बीच आधार बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी। वह गैर जाट जातियों में भी काफी लोकप्रिय थे। राजीव गांधी के खिलाफ जब वीपी सिंह ने बगावत की थी तो अजगर के फार्मूले का विस्तार पूरे उत्तर भारत में किया गया। ओबीसी और राजपूत समुदाय के गठजोड़ की वजह से उत्तर भारत में कांग्रेस कमजोर होती चली गई।
बिहार में भूरा बाल साफ करो का नारा
1989 के बाद मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम-यादव के समीकरण पर गठबंधन बनाए और वह अपने-अपने राज्यों में मुसलमानों के नेता बनकर उभरे और खुद को अगड़ी जातियों के खिलाफ आक्रामक ढंग से खड़ा किया। जब बिहार में लालू प्रसाद यादव का शासन था तो आरजेडी ने भूरा बाल साफ करो जैसा भड़काऊ नारा दिया था। इसका मतलब भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला (कायस्थ) जातियों के खिलाफ था।

Kanshi Ram DS-4: कांशीराम का DS-4 समीकरण
1981 में कांशीराम ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी DS4 समीकरण बनाया था। इसमें उन्होंने सभी वंचित समुदायों के लोगों को जोड़ने की कोशिश की थी। उनका प्रसिद्ध नारा था ब्राह्मण ठाकुर बनिया चोर, बाकी सब हैं DS-4।
कांशीराम ने बहुजनों को अपना सामाजिक आधार बनाया और बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनीतिक दल खड़ा किया। उन्होंने अगड़ी जातियों पर हमला बोला। 1993 में कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा से गठबंधन किया और इसने बीजेपी को यादव समुदाय से इतर ओबीसी समुदाय के और जाटव समुदाय से इतर दलित जातियों के नेताओं को आगे बढ़ाने पर मजबूर किया।
मायावती ने पार्टी में सतीश मिश्रा को अहम जिम्मेदारी देना शुरू किया और ऐसा करने के पीछे वजह ब्राह्मण समुदाय तक पहुंचने की कोशिश थी। यह वह समुदाय था जो लंबे वक्त तक बसपा के निशाने पर रहा था। मायावती ने सर्व समाज और सर्वजन की राजनीति शुरू की और 2007 के यूपी के विधानसभा के चुनाव में अपने दम पर सरकार बनाई।