Kunal Kamra Controversy: देश में कुणाल कामरा की कॉमेडी इस समय सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है। मुद्दा इसलिए क्योंकि यहां पर महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को निशाने पर लिया गया, विवाद इसलिए क्योंकि पीएम मोदी पर तंज कसा गया। अब तंज कसना, किसी नेता की टांग खींचना या फिर किसी सरकार की मजाकिया अंदाज में जवाबदेही तय करना, ये सबकुछ पॉलिटिकल सटायर के अंदर आता है, हिंदी में इसे राजनीतिक व्यंग भी कहा जाता है। इतिहास बताता है कि नेताओं को आईना दिखाने में इस पॉलिटिकल सटायर ने ही अहम भूमिका निभाई है।
पॉलिटिकल सटायर का मतलब क्या है?
अब तो जब डिजिटल युग का आरंभ हो चुका है, पॉलिटिकल सटायर ही दर्शकों को भी कोई मुद्दा समझने का नया नजरिया देता है। कहां तो यह भी जा सकता है कि इस तरह की कॉमेडी ने भी लोगों की समझ और सोच को निर्धारित किया है। शायद इसी ताकत को नेताओं ने भी समझा है और जब कोई विवाद होता है तो तुरंत कॉमेडियन्स को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। कुणाल कामरा पर भी इस समय केस दर्ज हो रहे हैं, शिवसेना के तमाम नेता उनके पीछे पड़ चुके हैं। लेकिन इस विवाद से इतर एक सवाल उठता है- क्या भारत अभी पॉलिटिकल सटायर के लिए तैयार नहीं है? क्या नेताओं पर किए गए मजाक बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? अब इन सवालों के जवाब जानेंगे, लेकिन पहले पॉलिटिकल सटायर का इतिहास समझना जरूरी है।
रामायण-महाभारत और पंचतंत्र, हर जगह मिलेगा सटायर
सटायर का साधारण शब्दों में मतलब होता है मजाक, व्यंग और दूसरे तरीकों से नेताओं को निशाने पर लेना, संस्थाओं से सवाल पूछना और सामाजिक मुद्दों को उठाते रहना। भारत में भी बात जब सटायर की आती है तो इसका इतिहास रामायण और महाभारत काल तक जाता है। अगर भगवान हनुमान अपनी चुतर बातें, बुद्धिमानी और ताकत के लिए जाने जाते थे, उनकी कई बातों में व्यंग भी छिपा होता था। कुछ इसी तरह से महाभारत काल में विदुर महात्मा को लेकर भी कई कहानियां प्रचलन में हैं। पंचतंत्र की कहानियों को अगर उठाकर देखा जाए तो वहां भी व्यंग के कई उदाहरण मिलते हैं।
सियासी कार्टून्स कैसे दिखाते हैं समाज को आईना?
इसी तरह अखबारों में दिखने वाले सियासी कार्टून्स भी पॉलिटिकल सटायर का ही एक तरीका है, उसका भी एक लंबा इतिहास है। जब शब्द समझ नहीं आते थे, जब बोलना ठीक नहीं लगता था, तब चित्रों के जरिए ही समाज को भी आईना दिखाया गया और सियासी गलियारों में भी हलचल पैदा की गई। 20वीं सदी में गगेंद्रनाथ टैगोर के जातिवाद दर्शाते कार्टून काफी चर्चा में रहे थे। तब अपनी कलाकारी के जरिए ही वे दिखाते थे कि कैसे ब्राह्मण गरीब मजदूरों का शोषण कर रहे हैं। गुलामी काल में अंग्रेजों को ही एक्सपोज करने के लिए कई दूसरे बंगाली कार्टूनों ने भी पॉलिटिकल सटायर को ही अपना हथियार बनाया था। बात चाहे काफी खान की हो, जतिन सेन की हो या फिर रेवती भूषण की, इन सभी ने ईस्ट इंडिया कंपनी की करतूतों से पर्दा उठाया था।
बात जब भी ‘फादर ऑफ पॉलिटिकल कार्टूनिंग इन इंडिया’ की आती है, तब शंकर पिल्लई का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी 1948 में शुरू हुई शंकर्स वीकली ने नजाने कितने सियासी व्यंग अपने कार्टून्स के जरिए बिखेरे थे। अंबेडकर तक को उन्होंने अपने निशाने पर लिया था। बाद में आरके लक्ष्मण, विजय नारेन, सतीश आचार्य जैसे कई और कलाकार आए और उन्होंने भी अखबारों में, मैग्जीन्स में अपने कार्टून के जरिए पॉलिटिकल सटायर की इस कला को जिंदा रखा।
लालू की मिमिक्री, अटल का मजाक, कोई विवाद नहीं
अब इतना सारा इतिहास बताने का कारण यह रहा कि पॉलिटिकल सटायर भारत का अभिन्न अंग रहा है। ऐसा नहीं है कि यह कोई आज का ट्रेंड है। नेताओं की मिमिक्री करना तो कई कलाकारों का पैसा कमाने का एक मात्र जरिया बन चुका है। श्याम रंगीला इसका क्लासिक उदाहरण हैं जिन्होंने पीएम मोदी की ही मिमिक्री कर लोकप्रियता हासिल की है। इसी तरह लालू प्रसाद यादव की तो नजाने कितने कॉमेडियन नकल उतारते हैं, फिर चाहे लेजेंड्री राजू श्रीवास्तव हों या फिर सिराज खान। शेख सुमन को याद किया जाना चाहिए जो अपने शो में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बेहतरीन मिमिक्री किया करते थे।
शेखर सुमन ने तो यहां तक कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी को उनका काम पसंद था, वे कहा करते थे- जब तुम मेरी नकल करते हो, मैं सबसे जोर से हंसता हूं। अब यही से सारी कहानी शुरू होती है, जब अटल बिहारी जैसे नेता ने खुद पर हुए मजाक को कभी उस तरीके से नहीं लिया तो फिर एकनाथ शिंदे पर हुए मजाक ने कैसे इतना तूल पकड़ लिया? इस सवाल का जवाब भारत की वर्तमान राजनीति में छिपा है जिसने इस समाज को भी अब अलग-अलग विचारधारों में बांट दिया है।
विचारों में बंटा देश, मुश्किल है पॉलिटिकल सटायर की राह?
साइकोलॉजी में एक शब्द होता है- Cognitive Dissonance। इसका मतलब होता है कि अगर कोई आपके विचारों को चुनौती देने की कोशिश करता है या फिर ऐसी बात करता है जो आपके विचारों से मेल नहीं खाती, आप नाराज हो जाते हैं, आप या तो उस स्थिति से भागने की कोशिश करते हैं या फिर खुद को सही बताने में लग जाते हैं। अब पॉलिटिकल सटायर की कॉमेडी का आधार ही यह है कि आप किसी नेता या सरकार का तो मजाक बना रहे हैं, अब जो उस सरकार या नेता के समर्थक होंगे, उनका नाराज होना लाजिमी है। कुणाल कामरा के साथ भी यही हो रहा है, उन्होंने अपनी कॉमेडी मोदी के खिलाफ खड़ी है, वे हिंदुत्व वाली विचारधारा को चुनौती देते हैं। इसी वजह से सबसे ज्यादा निशाने पर भी वे राइट विंग के रहते हैं।
अमेरिका-ब्रिटेन-जर्मनी में कैसे हैं हालात, कितनी आजादी?
इसके ऊपर भारत जैसे देश में नेताओं को काफी वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है,समाज में उनका स्थान दूसरों के मुकाबले कुछ ऊपर रहता है। यह भी एक कारण रहता है कि जब किसी नेता को लेकर मजाक होता है या कॉमेडी शुरू होती है तो उसका असर भी लोगों पर उतना ही पड़ता है। लेकिन जिस तरीके से भारत इस मामले में इतना संवेदनशील दिखा है, दूसरे कई मुल्क काफी आगे निकल चुके हैं। अमेरिका को तो स्टैंड अप कॉमेडी का जननी कहा जा सकता है, वहां तो राष्ट्रपति से लेकर सरकार, कोई भी पॉलिटिकल सटायर से सुरक्षित नहीं है।
Saturday Night Live, The Daily Show और Last Week Tonight कुछ ऐसे शोज हैं जिन्होंने अमेरिकी राजनीति पर जमकर व्यंक कसे हैं। ब्रिटेन का रुख किया जाए तो वहां भी पॉलिटिकल कॉमेडी को लेकर ज्यादा टॉलरेंस देखने को मिल जाती है। वहां पर भी Mock the Week और Have I Got News for You कुछ ऐसे शोज हैं जहां सिर्फ नेताओं का मजाक ही बनाया जा सकता है, कहा जा सकता है कि उन्हें रोस्ट किया जाता है। जर्मनी, फ्रांस में भी काफी आजादी देखने को मिल जाती है। लेकिन बात जब भारत की आती है तो यहां पर एक तो लोगों का अति संवेदनशील होना पॉलिटिकल सटायर में एक रोड़ा बनता है, इसके ऊपर देश का संविधान भी बोलने की आजादी को कुछ पाबंदियों से बांधने का काम करता है।
इसी वजह से कुणाल कामरा और मुनावर फारूकी जैसे कलाकारों को निशाने पर लिया जाता है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 19-1 (ए) में बोलने की आजादी दी गई है, लेकिन कुछ पाबंदियां भी रहती हैं। इसके अलावा मानहानी जैसी धाराएं भी कॉमेडियन्स पर लगती रहती हैं। इसी वजह से देश भी कुणाल कामरा जैसे कलाकारों के मजाक पर अब फंस जाता है- इसे अभिव्यक्ति की आजादी माना जाए या फिर लक्ष्मण रेखा का पार होना?
वैसे स्टैंड अप कॉमेडी का इतिहास भी 130 साल पुराना है, इस कला के भी कई प्रकार होते हैं। मन में ते आता ही होगा आखिर कब शुरू हुई थी स्टैंड अप कॉमेडी, इसकी दिलचस्प कहानी क्या है, हर सवाल का जवाब मिलेगा यहां पर