वैसे तो आजकल बारिश और बाढ़ से हाहाकार मचा हैा लेकिन, बीजेपी में हार के बाद हाहाकार है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने एक बयान दिया तो सबका ध्यान हार से हट कर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से उनकी कथित तकरार पर चला गया। इसी के बीच मौर्य दिल्ली में भाजपा आलाकमान से मिलने आ गए या बुला लिए गए।
मौर्य ने चुनावी हार पर विश्लेषण के दौरान कहा था कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है। वह जब यह बात कह रहे थे तो योगी और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा सहित कई बड़े नेता भी वहां बैठे थे।
मौर्य के बयान के दो मतलब निकाले जा रहे हैं। एक तो यह कि मौर्य ने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के मकसद से यह बयान दिया। और दूसरा, यह कि उनका बयान योगी को चुनौती है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की दस साल में पहली बड़ी चुनावी हार हुई। उसके बाद एक और हार हुई। विधानसभा उपचुनावों में। इसके बाद बीजेपी के हालात इन दिनों काफी अलग दिखाई दे रहे हैं। पार्टी विद अ डिफरेंस, अनुशासित पार्टी कही जाने वाली भाजपा में बयानबाजी और बगावती रुख तक आम हो गया है।
हार के कारणों पर मंथन हो रहा है, लेकिन जानकार कह रहे हैं कि असली कारण ही छिपा लिया गया है। वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि कारणों का पता लगाने के लिए 40 सदस्यों की टास्क फोर्स बनाई, लेकिन इस टास्क फोर्स ने केंद्रीय चुनाव समिति के फैसलों और तरीकों की छानबीन की ही नहीं।
जब यूपी की 80 में से 50 सीटों के उम्मीदवार तय किए गए तो कमेटी की औपचारिक बैठक से पहले मोदी-शाह-नड्डा ने लोक कल्याण मार्ग पर अनौपचारिक बैठक की।

इस दौरान करीब दो घंटे तक योगी आदित्य नाथ इंतजार करते रहे थे। बाद में औपचारिक बैठक में नाम पढ़ दिया गया। बताया जाता है कि सीएम योगी ने 35 मौजूदा सांसदों के नाम हटाने का सुझाव दिया था, जिसे नहीं माना गया। इनमें से 27 चुनाव हार गए।
राज्य | 2019 में मिली सीटें | गंवाई सीटें |
उत्तर प्रदेश | 62 | 29 |
महाराष्ट्र | 23 | 14 |
पश्चिम बंगाल | 18 | 6 |
राजस्थान | 25 | 11 |
बिहार | 17 | 5 |
कर्नाटक | 25 | 8 |
हरियाणा | 10 | 5 |
कूमी कपूर लिखती हैं कि टास्क फोर्स के सदस्य लखनऊ और वाराणसी गए ही नहीं। वाराणसी जाते तो पता चलता कि वहां स्थानीय ठेकेदारों में कितना असंतोष है।
वाराणसी में पीएम मोदी महज 1.52 लाख वोटों के अंतर से जीते। 2019 में यह अंतर 4.79 लाख का था। 8478 वोटर्स ने ईवीएम में ‘नोटा’ बटन भी दबाया।
वाराणसी की जीत किसी भी सिटिंंग पीएम के लिए सबसे कम मार्जिन वाली जीत रही। 13.49 प्रतिशत। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हार के एक अपवाद को छोड़ कर। 1991 में चंद्रशेखर भी काफी कम मार्जिन से जीते थे, लेकिन वह कार्यवाहक पीएम थे।
प्रधानमंत्री | जीत का मार्जिन |
राजीव गांधी | 72.18 |
राजीव गांधी | 50.22 |
नरेंद्र मोदी | 45.22 |
इंदिरा गांधी | 40.47 |
अटल बिहारी वाजपेयी | 37.74 |
इंदिरा गांधी | 35.24 |
जवाहरलाल नेहरू | 33.46 |
चरण सिंह | 33.33 |
पीवी नरसिम्हा राव | 30.97 |
जवाहरलाल नेहरू | 21.88 |
जवाहरलाल नेहरू | 19.49 |
अटल बिहारी वाजपेयी | 16.4 |
पीवी नरसिम्हा राव | 13.56 |
नरेंद्र मोदी | 13.49 |
चंद्रशेखर | 12.78 |
वाराणसी लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम
उम्मीदवार | पार्टी | मिले वोट |
नरेंद्र मोदी | भाजपा | 612970 |
अजय राय | कांग्रेस | 460457 |
अतहर जमाल लारी | बसपा | 33766 |
के. शिवकुमार | युग तुलसी पार्टी | 5750 |
गगन प्रकाश यादव | अपना दल (के) | 3634 |
दिनेश कुमार यादव | निर्दलीय | 2917 |
संजय कुमार तिवारी | निर्दलीय | 2171 |
नोटा | | 8478 |
कुल | | 1130141 |
अनुप्रिया बोलीं- बीजेपी वालों ने नहीं मानी बात
बीजेपी की सहयोगी अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल का कहना है कि विपक्ष ने जो नैरेटिव बनाया, उसका काउंटर करने के लिए वाराणसी में भाजपा की ओर से कोई था ही नहीं।
अनुप्रिया ने इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज कार्यक्रम में यह भी कहा कि चुनाव के अंतिम चरण तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने भाजपा को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि विपक्ष के नैरेटिव का जोरदार असर है, लेकिन भाजपा वाले यह मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि अंडरकरंट इतना मजबूत हो सकता है।
आरएसएस ने कहा है कि जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन भाजपा का ज्यादा ध्यान कार्यकर्ताओं के सम्मान पर है। क्योंकि, बताया जा रहा है कि इन कार्यकर्ताओं की अनेदखी से उपजी नाराजगी के चलते ही ऐसा जनादेश आया।

केशव बोले- सरकार से बड़ा है संगठन
यूपी में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि सरकार से बड़ा संगठन है तो इसे भी कार्यकर्ताओं का खोया सम्मान वापस लाने की कवायद के तौर पर दिया गया बयान बताया जा रहा है। झारखंड में बाकायदा कार्यकर्ता सम्मान अभियान चलाया जा रहा है और 20 जुलाई को 20 हजार कार्यकर्ताओं के जुटान करके अमित शाह के भाषण से उनका हौंसला बढ़ाने का प्लान है।
हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पन्ना प्रमुखों को एक्टिव करने पर जोर दिए जाने की बात सामने आ रही है। माना जा रहा है कि इनके एक्टिव नहीं रहने के चलते ही लोकसभा चुनाव में दो बार से सारी सीटें जीतने का बीजेपी का सिलसिला 2024 में टूट गया और पार्टी 5 सीटों पर सिमट गई।

दिलीप घोष को अध्यक्ष बनाने की मांग
लेकिन, बंगाल में मामला गरम है। बंगाल में 17 जुलाई से बीजेपी की राज्य कमेटी की बैठक है। इसमें दिल्ली से मनोहर लाल खट्टर को भेजे जाने का प्लान है। पहले राजनाथ सिंंह जाते, लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं है। तो माना जा रहा है कि खट्टर इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस खबर से कई नेताओं का हौसला टूट गया लगता है। वे कह रहे हैं कि ऐसी बैठकों में अमित शाह या जेपी नड्डा स्तर के नेताओं को आना चाहिए। खट्टर के भेजने से तो ऐसा लगता है कि बंगाल को लेकर भाजपा ने उम्मीद ही छोड़ दिया।
वैसे, यह सवाल ज्यादा चिंता वाला नहीं है। क्योंकि यह परसेप्शन पर आधारित है और कुछ नेताओं का अनुमान है। बड़ी चिंता कुछ नेताओं के एक्शन से हैं, जिन्होंने खुले आम दिलीप घोष को फिर से पश्चिम बंगाल का भाजपा अध्यक्ष बनााए जाने की मांग कर दी है और इसके लिए आंदोलन तक पर उतर आए हैं।