उच्चतम न्यायालय और चुनाव आयोग एक बार फिर आमने सामने नजर आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम. जोसेफ ने चुनाव आयोग के इस रुख पर असहमति व्यक्त की है कि मतदान का अधिकार (Right to Vote) केवल वैधानिक अधिकार (Statutory Right) है न कि संवैधानिक अधिकार (Right to Vote Constitutional Right)।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने कहा है कि मतदान का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र व्यवस्था की मांग को लेकर याचिकाएं दायर की गई हैं।
सुवनाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने वकील से पूछा, ‘संविधान के अनुच्छेद 326 के बारे में आप क्या कहेंगे?’ जवाब में निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने कहा, ‘326 मतदाता को अधिकार नहीं देता’ इस पर जस्टिस जोसेफ ने पहले तो पूछा, क्यों? फिर सलाह देते हुए कहा, कृपया आप अनुच्छेद 326 पढ़ें।
इसके बाद वकील ने कोर्ट में ही संविधान के अनुच्छेद 326 को पढ़ा, जो इस प्रकार है:
”लोकसभा और विधानसभा के लिए चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। इसके लिए मतदाता का भारत का नागरिक और उम्र 21 साल होना अनिवार्य है। इसके अलावा अगर भारतीय न होने, मानसिक रूप से कमजोर होने, अपराध, भ्रष्टाचार और गैर कानूनी काम में लिप्त होने की वजह से किसी कानून के तहत वोटिंग राइट पर प्रतिबंध न लगा हो, तो नागरिक किसी चुनाव में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा।” (20 दिसंबर 1988 से पहले वोटिंग के लिए कम से कम 21 साल का होना अनिवार्य था।)
‘नागरिक किसी चुनाव में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा।‘ इस वाक्य पर जोर देते हुए जस्टिस जोसेफ ने पूछा, “क्या आप कह रहे हैं कि संसद की विधायी शक्ति संविधान को ओवरराइड कर करेगी?”
जस्टिस जोसेफ ने आगे कहा, ”संविधान ने अधिकार देने पर विचार किया है। यही मौलिक बात है। वोटिंग की उम्र शुरुआत में 21 साल थी, जिसे बाद में घटाकर 18 साल कर दिया गया था। अयोग्यताएं क्या हैं, इसका जिक्र अनुच्छेद 326 में ही है।” न्यायमूर्ति जोसेफ ने स्पष्ट बोला कि “यह कहना सही नहीं होगा कि मतदान का अधिकार केवल एक वैधानिक अधिकार है।”