जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने बुधवार को आधिकारिक रूप से ऐलान कर दिया है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला एक बार फिर जींद जिले की उचाना कलां सीट से चुनाव लड़ेंगे। दुष्यंत पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट से जीते थे। उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला सिरसा जिले की डबवाली सीट से चुनाव में ताल ठोकते नजर आएंगे।

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए जेजेपी ने उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ गठबंधन किया है। हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में 70 सीटों पर जेजेपी और 20 सीटों पर आसपा (कांशीराम) चुनाव लड़ेगी।

जेजेपी के सामने इस चुनाव में अपनी सियासी प्रतिष्ठा को बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन यह सच है कि जेजेपी के राजनीतिक भविष्य का फैसला काफी हद तक दुष्यंत चौटाला की जीत पर ही निर्भर करेगा क्योंकि दुष्यंत चौटाला ही पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं।

भले ही पार्टी की कमान उनके पिता अजय सिंह चौटाला के पास हो लेकिन हरियाणा और इसके बाहर जेजेपी की पहचान दुष्यंत चौटाला के नाम से है। उनके भाई दिग्वजिय चौटाला भी युवाओं में लोकप्रिय हैं।

dushyant cahutala| BJP| JJP
JJP नेता दुष्यंत चौटाला (Source- Express)

पहले चुनाव में जीती 10 सीटें

जेजेपी को अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में 10 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसा शानदार प्रदर्शन करके जेजेपी ने हरियाणा की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया था। उस चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था लेकिन बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।

बीजेपी के साथ मिलकर चलाई सरकार

जेजेपी ने खट्टर सरकार को समर्थन दिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाई। यह सरकार साढ़े चार साल तक चली और इस साल मार्च में बीजेपी और जेजेपी के रास्ते अलग-अलग हो गए। सवाल यह है कि क्या दुष्यंत चौटाला इस बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सकते हैं? इसके लिए हमें इस बात को समझना पड़ेगा कि दुष्यंत चौटाला और जेजेपी के सामने कितनी चुनौतियां हैं?

Ajay Singh Chautala Abhay Singh Chautala
इनेलो और जेजेपी में से कौन ज्यादा सीटें जीतेगा? (Source-FB)

साथ छोड़कर चले गए विधायक, नेता

जेजेपी के लिए मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब चुनाव से ठीक पहले उसके 10 में से सात विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। इन सात विधायकों में से कुछ विधायक बीजेपी के साथ और कुछ कांग्रेस के साथ चले गए। इसके अलावा बड़ी संख्या में पार्टी के पदाधिकारियों और नेताओं ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया।

इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जेजेपी का कोई करिश्मा नहीं चला था और पार्टी को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे। सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। निश्चित रूप से इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर खराब असर पड़ा है।

किसानों का विरोध करेगा राह मुश्किल?

हरियाणा में जब बीजेपी और जेजेपी की सरकार चली तो इसका चेहरा दुष्यंत चौटाला ही थे लेकिन जेजेपी को किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी के साथ खड़े रहने की वजह से जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा था। लोकसभा चुनाव के दौरान जब दुष्यंत चौटाला की मां और विधायक नैना चौटाला जेजेपी के टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रही थीं तब उन्हें किसानों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था।

अब बात करते हैं दुष्यंत चौटाला की उचाना कलां में चुनौतियां क्या हैं। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में उन्होंने उचाना कलां की सीट पर बड़ी जीत हासिल की थी। बड़े जाट नेता माने जाने वाले चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को उन्होंने 47 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था और इस जीत से दुष्यंत चौटाला ने रिकॉर्ड कायम किया था।

उचाना कलां में पिछले पांच चुनाव के नतीजे

सालजीते उम्मीदवार का नाम
2000भाग सिंह छातर
2005चौधरी बीरेंद्र सिंह
2009ओम प्रकाश चौटाला
2014प्रेमलता
2019दुष्यंत चौटाला

उचाना कलां में असरदार हैं किसान

उचाना कलां सीट अधिकांश ग्रामीण आबादी वाली सीट है और यहां पर किसान काफी प्रभावशाली हैं। विरोध के बाद भी दुष्यंत चौटाला ने हालांकि यहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत तो दिखाई है लेकिन हरियाणा में किसान बीजेपी से और उसका साथ देने वाले नेताओं के खिलाफ अच्छा खासा गुस्सा जाहिर कर चुके हैं।

किसान आंदोलन के दौरान किसान नेताओं ने बार-बार इस बात की मांग की थी कि जेजेपी को मनोहर लाल खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए लेकिन जेजेपी सरकार के साथ खड़ी रही। ऐसा माना जा रहा है कि इसका दुष्यंत चौटाला को विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है और लोकसभा चुनाव में भी इसकी झलक जेजेपी को मिले वोटों से देखने को मिलती है।

Nayab singh Saini
नायब सिंह सैनी के कंधों पर बीजेपी को जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है। (Source-NayabSainiOfficial)

कांग्रेस से लड़ सकते हैं पूर्व सांसद चौधरी बृजेंद्र सिंह

दुष्यंत चौटाला के लिए उचाना कलां में विरोधी दलों से मिलने वाली चुनौती से निपटना आसान नहीं होगा। कांग्रेस की ओर से यहां से चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। बृजेंद्र सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव में हिसार लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे और इस बार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपने पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ कांग्रेस में वापसी की थी। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था।

इस बार विधानसभा चुनाव में बृजेंद्र सिंह को उचाना कलां सीट से टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है। क्योंकि दुष्यंत चौटाला और बृजेंद्र सिंह जाट बिरादरी से आते हैं, ऐसे में यह माना जा रहा है कि बीजेपी यहां से किसी गैर जाट नेता को टिकट देकर चुनावी मुकाबले को रोचक बना सकती है।

2014 के विधानसभा चुनाव में उचाना कलां से बीजेपी जीत चुकी है। तब चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने दुष्यंत चौटाला को हराया था।

चुनावी माहौल का बारीकी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि किसानों के विरोध, जेजेपी के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन, विरोधी दलों के संभावित मजबूत उम्मीदवारों को देखते हुए दुष्यंत चौटाला के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव में लड़ाई मुश्किल दिख रही है।