Jat vs Non-Jat Politics Haryana: हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीख (5 अक्टूबर) बिल्कुल नजदीक आ गई है लेकिन राज्य में सरकार चला रही बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस बागियों से परेशान हैं। बीजेपी में करीब 33 और कांग्रेस के 36 नेताओं ने बगावत कर चुनाव मैदान में ताल ठोक दी है।
मतदान से पहले एक बड़ा सवाल यह भी सामने आया है कि क्या जाट बनाम गैर जाट राजनीति का असर चुनाव नतीजों में दिखेगा?
90 सीटों वाले हरियाणा में अधिकतर सीटों पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है लेकिन जेजेपी-आसपा (कांशीराम), इनेलो-बसपा का गठबंधन भी कुछ सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ रहा है। आम आदमी पार्टी भी हरियाणा की सभी 90 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी हुई है।
पूर्व मंत्री ने छोड़ी बीजेपी, लगाए गंभीर आरोप
बीजेपी को मतदान से पहले लगातार झटके लग रहे हैं। पार्टी को ताजा झटका पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह ठेकेदार के रूप में लगा है। बिक्रम सिंह ठेकेदार रेवाड़ी जिले और अहीरवाल में अपनी सियासी पहचान रखते हैं। बिक्रम सिंह यादव अहीरवाल की कोसली विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद से ही वह नाराज चल रहे थे। माना जा रहा था कि बिक्रम सिंह यादव चुनाव लड़ेंगे लेकिन वह चुनाव मैदान में नहीं उतरे।
यादव ने अपने इस्तीफे की कॉपी में लिखा है कि बीजेपी अपने सिद्धांतों और कार्यशैली से पूरी तरह भटक चुकी है और कार्यकर्ताओं के समर्पण और अनुशासन को उसकी कमजोरी समझने लगी है। बिक्रम यादव ने लिखा है कि यह पीड़ा उनकी व्यक्तिगत नहीं है बल्कि पार्टी के लिए काम करने सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं की है, इसलिए वह पार्टी छोड़ रहे हैं।
बिक्रम सिंह यादव 2014 में जब कोसली से विधायक बने थे तो उन्हें प्रदेश की तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार में मंत्री बनाया गया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था।
कई नेताओं को दिखाया बाहर का रास्ता
हरियाणा में टिकटों का ऐलान होने के बाद से ही बीजेपी के अंदर खलबली मची हुई है। बड़ी संख्या में पार्टी के नेता बगावत कर चुके हैं और कई जगहों पर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। कुछ दिन पहले ही पार्टी ने ऐसे 8 नेताओं को 6 साल के लिए बाहर कर दिया था जो चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इन नेताओं में रानियां से चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, गन्नौर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे देवेंद्र कादियान, लाडवा से संदीप गर्ग, असंध से जिलेराम शर्मा, सफीदों से बच्चन सिंह आर्य, महम से राधा अहलावत, गुरुग्राम से नवीन गोयल और हथीन से केहर सिंह रावत शामिल हैं। इन सभी को 6 साल के लिए पार्टी से निकाला गया है।
दूसरी ओर कांग्रेस भी अपने नेताओं की बगावत से जूझ रही है। पार्टी ने पिछले कुछ दिनों में बगावती रूख दिखाने वाले 24 नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है। जिन बड़े नेताओं को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाया गया है उनमें अनीता ढुल, विजय जैन, नरेश ढांडे, प्रदीप गिल, सज्जन सिंह ढुल, दयाल सिंह सिरोही, दिलबाग संडील, सतवीर रतेड़ा, ललित नागर, चित्रा सरवारा और राजेश जून सहित कई नेता शामिल हैं।
जाट बनाम गैर जाट का कार्ड चलेगा?
हरियाणा की राजनीति में जाट बनाम गैर जाट की बहस चुनाव प्रचार के दौरान फिर से तेज हुई है। बीजेपी ने अपने 10 साल के शासन में गैर जाट नेताओं को ही मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया है जबकि 2005 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार में जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री रहे थे।
बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर गैर जाट (ब्राह्मण) समुदाय से आने वाले मोहन लाल बड़ौली को टिकट दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी की कोशिश 75% गैर जाट आबादी के बड़े हिस्से को अपने साथ लाने की है। पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर और पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले नायब सिंह सैनी को पार्टी ने इसी रणनीति के तहत मुख्यमंत्री बनाया।
बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर गैर जाट (ब्राह्मण) समुदाय से आने वाले मोहन लाल बड़ौली को टिकट दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी की कोशिश 75% गैर जाट आबादी के बड़े हिस्से को अपने साथ लाने की है। लेकिन बीजेपी जानती है कि गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए जाट वोटों के उसके खिलाफ एकजुट होने का भी खतरा है। क्योंकि कांग्रेस भी गैर जाट वोटों पर पकड़ रखती है। उसके प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदय भान और सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं। बीजेपी इस बात को जानती है इसलिए उसने गैर जाट नेताओं को भी आगे बढ़ाया है।
हरियाणा में किस जाति की कितनी आबादी
समुदाय का नाम | आबादी (प्रतिशत में) |
जाट | 25 |
दलित | 21 |
पंजाबी | 8 |
ब्राह्मण | 7.5 |
अहीर | 5.14 |
वैश्य | 5 |
राजपूत | 3.4 |
सैनी | 2.9 |
मुस्लिम | 3.8 |
36 सीटों पर असरदार हैं जाट
यह जानना जरूरी होगा कि हरियाणा की राजनीति को जाट किस तरह प्रभावित करते हैं। हरियाणा की 90 में से 36 विधानसभा सीटों और 10 में से चार लोकसभा सीटों पर जाट हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। हिसार, भिवानी, रोहतक, झज्जर, सोनीपत, सिरसा, जींद और कैथल के इलाके को हरियाणा की जाट बेल्ट माना जाता है।
जाट वोटों पर है हुड्डा का असर
हरियाणा की राजनीति को देखें तो यह साफ नजर आता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जाट वोटों पर असर है। जाट बेल्ट वाले इलाकों से इतर भी हुड्डा को प्रदेश की राजनीति में बड़ा जाट नेता माना जाता है। एक वक्त में बंसीलाल और देवीलाल इस समुदाय के बड़े नेता थे लेकिन पिछले 25 से 30 सालों में हुड्डा ने खुद को इस समुदाय का बड़ा चेहरा बनाया है।
इसी के दम पर कांग्रेस नेतृत्व ने साल 2005 में पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल पर तरजीह देते हुए हुड्डा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को 31 सीटें मिली थी तो इसका क्रेडिट हुड्डा के नेतृत्व को ही गया था। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 72 से 75 टिकट हुड्डा की सिफारिश पर दिए हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पिछली बार शून्य के आंकड़े से आगे बढ़कर 5 सीटें जीती है और जीते सांसदों में हुड्डा के समर्थकों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि हुड्डा उसे जाट वोटों का बड़ा हिस्सा दिला सकते हैं।