नेहरू-गांधी परिवार के मशहूर वफादार राजेंद्र कुमार धवन (आर.के. धवन) 1970 के दशक की शुरुआत में इंदिरा गांधी के स्टेनो-टाइपिस्ट हुआ करते थे। बाद में उनका ऐसा जलवा हुआ कि वह अपनी इच्छानुसार कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री बनवाते और हटवाते थे। उनका प्रभाव इतना था कि इंदिरा गांधी से मिलने आने वाले अमीर और शक्तिशाली लोग भी उन्हें ‘धवन साब’ कहा करते थे।

धवन को इंदिरा गांधी के दूत के रूप में पहचाना जाता था। इंदिरा अपने मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और राज्य के पार्टी प्रमुखों को सीधे निर्देश देने से बचती थीं। धवन उनके माध्यम थे, जो अक्सर अप्रिय और अजीब फैसले सुनाते थे। प्रधानमंत्री ने यह व्यवस्था इसलिए कर रखी थी ताकि कुछ गलत होने पर दोष धवन को दिया जा सके। इस व्यवस्था से धवन बेहद पावरफुल हो गए थे।

इंदिरा गांधी, धवन की सलाह को गंभीरता से लेती थीं। इंदिरा गांधी पर धवन के प्रभाव का अंदाज़ा एक वाकये से लगाया जा सकता है जब उन्होंने प्रधानमंत्री को नमाज़ पढ़ने तक के लिए राजी करा लिया। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘Leaders, Politicians, Citizens’ में इस किस्से को विस्तार से लिखा है।

इंदिरा के कमरे में मौलाना ने बांधी तावीज़

यह जनवरी 1980 के आम चुनावों से पहले की बात है। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी। जनता ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी से अपदस्थ कर दिया था। धवन उन्हें सांत्वना देने के लिए कई गुरुओं, मौलवियों, बाबाओं और मुनियों को बुलाते थे।

एक रोज धवन के बुलावे पर इंदिरा के दरबार में मेवाती मौलाना जमील इलियासी पहुंचे। वह नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर एक मस्जिद चलाते थे। मौलाना इलियासी थोड़े बातूनी थे। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की भारी जीत होगी, बशर्ते उन्हें एक बार मिसेज गांधी के बेडरूम में जाने की इजाजत दी जाए।

यह बहुत अजीब मांग थी। लेकिन धवन ने इसकी मंजूरी दे दी। मौलाना इलियासी इंदिरा गांधी के बेडरूम में गए और कमरे की छत पर एक तावीज़ बांध दी। इतना करने के बाद मौलाना ने स्पष्ट निर्देश दिया कि 350 से अधिक संसदीय सीटें जीतने के बाद उन्हें तुरंत बुलाया जाए।

1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 353 सीटें जीतीं। जीत के बाद इंदिरा गांधी इलियासी और उनके तावीज़ को भूल गईं। चुनाव परिणाम जनवरी में आए थे और जून में 23 तारीख को इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई।  

इंदिरा ने पढ़ी नमाज़

बेटे की मौत ने इंदिरा को भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था। इलियासी जल्द ही इंदिरा के दरबार में दोबारा पेश हुए। उन्होंने रोते हुए पूछा कि उन्हें उस शक्तिशाली तावीज़ को हटाने के लिए क्यों नहीं बुलाया गया? मौलाना का दावा था कि उससे ही इंदिरा के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

इलियासी ने राय दी कि इस ‘गलती’ को तुरंत ठीक किया जाना चाहिए। इंदिरा ने जानना चाहा कि यह कैसे ठीक होगा? इलियासी ने इंदिरा को नमाज़ पढ़ने को कहा। जब इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि नमाज़ कैसे अदा की जाती है, तो इलियासी ने कहा- मैं जैसे-जैसे कर रहा हूं, वैसे ही आप भी कीजिए। धवन ने इंदिरा गांधी को ऐसा करने के लिए मना लिया और इंदिरा गांधी ने नमाज़ पढ़ी।

जब संजय की मौत के बाद रोत हुए चामुंडा देवी मंदिर पहुंची इंदिरा

संजय गांधी की मौत से एक दिन पहले 22 जून को इंदिरा गांधी चामुंडा देवी मंदिर जाने वाली थीं। मंदिर में पूजा-पाठ की पूरी व्यवस्था हो गई थी। लेकिन 20 जून की शाम संदेश भेजा गया कि प्रधानमंत्री मंदिर नहीं आ पाएंगी। जब मंदिर के पुजारी ने यह बात सुनी तो बहुत गुस्सा हुआ।

पुजारी ने कहा, “आप इंदिरा गांधी से कहिए, यह चामुंडा हैं। यदि कोई साधारण प्राणी नहीं आ सकेगा तो मां क्षमा कर देंगी। लेकिन यदि शासक अपमान करेगा तो देवी माफ नहीं करेंगी।”

Indira Gandhi

पुजारी ने इंदिरा के लिए कहा कि वह यहां रोते हुए आएंगी। यही हुआ भी। संजय की मौत के एक माह बाद इंदिरा रोते हुए चामुंडा मंदिर पहुंचीं। विस्तार से पढ़ने के लिए ऊपर फोटो पर क्लिक करें: