India China Disengagement Agreement: चार साल तक चली तनातनी के बाद भारत और चीन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे विवाद को सुलझाने पर राजी हो गए हैं। माना जा रहा है कि दोनों देश साल 2020 से पहले की तरह ही सीमा पर पेट्रोलिंग करेंगे। याद दिलाना होगा कि जून, 2020 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 जांबाज जवानों ने शहादत दी थी जबकि चीन के चार जवान मारे गए थे।
हालांकि यह कहा जाता है कि हिंसक झड़प में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 40 सैनिकों की मौत हुई थी और वह मरने वाले जवानों का सही आंकड़ा छिपा रहा है।
साल 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के बाद यह दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई सबसे खतरनाक लड़ाई थी। इसके बाद पिछले चार सालों में कूटनीतिक, राजनयिक, सैन्य वार्ताओं का दौर चला और अब जाकर दोनों देशों के बीच एलएसी पर गश्त को लेकर सहमति बन पाई है।
ऐसे में यह जानना जरूरी है पिछले चार सालों में दोनों देशों के बीच आए रिश्तों में क्या-क्या महत्वपूर्ण घटनाक्रम रहे हैं।
जून, 2020
भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में रिश्ते बिगड़ने की शुरुआत चीन की ओर से भारत के द्वारा बनाए जा रहे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर आपत्ति जताने के बाद हुई थी। भारत गलवान घाटी में एक सड़क भी बना रहा है जो इसे एक अहम एयरबेस से जोड़ती है। चीन इस सड़क से खुद के लिए खतरा महसूस करता है क्योंकि उसने इस इलाके के कई हिस्सों पर अपना दावा किया हुआ है। गलवान में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय और 4 चीनी सैनिक मारे गए थे।
इसके बाद भारत ने चीन से आने वाले निवेश की जांच को सख्त किया और भारत में चल रहे कई लोकप्रिय चीनी मोबाइल ऐप पर बैन लगा दिया और दोनों देशों के बीच सीधे यात्री हवाई रास्तों को भी बंद कर दिया गया।
जनवरी, 2021
नाकू ला दर्रे के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई, जिसमें दोनों ही पक्षों के लोग घायल हुए।
सितंबर 2021
पैंगोंग झील के पास गोली चलने की बातें सामने आई। 1996 के नो-फायरआर्म्स समझौते का उल्लंघन हुआ।
दिसंबर 2022
अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में सैनिकों के बीच फिर से झड़प हुई, जिसमें दोनों ही देशों के सैनिकों को मामूली चोटें आईं।
जुलाई, 2024
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया था कि कजाकिस्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच द्विपक्षी बैठक हुई थी। बैठक में दोनों ही देश इस बात पर सहमत हुए थे कि सीमा पर चल रहे विवाद का लंबा खिंचना किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा।
सितंबर, 2024
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि चीन के साथ चल रहे विवाद का लगभग 75% समस्याओं का समाधान हो चुका है और इसी दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री के. राममोहन नायडू ने कहा था कि दोनों देशों ने सीधी यात्री उड़ानों को फिर से शुरू करने पर चर्चा की है।
सीमा विवाद के दौरान भारत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि सीमा पर अप्रैल, 2020 से पहले वाली स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए लेकिन पिछले कुछ सालों में जो सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई थी उनसे पता चला था कि पीएलए ने अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अपनी मौजूदगी को बढ़ाया है और इसके मुकाबले में भारत ने भी अपने जवानों की तैनाती की थी।
क्या है सीमा को लेकर विवाद?
चीन और भारत के बीच सीमा को लेकर विवाद की वजह 3,488 किमी. लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) है। भारत के मुताबिक LAC की लंबाई 3,488 किमी. है, जबकि चीन इसे लगभग 2,000 किमी. ही मानता है। यह तीन हिस्सों में बंटी हुई है। पूर्वी हिस्सा- अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में है, बीच का हिस्सा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में है और पश्चिमी हिस्सा- लद्दाख में है।
पूर्वी और मध्य हिस्से में ज्यादा विवाद नहीं है लेकिन जो बड़े विवाद हैं, वह पश्चिमी हिस्से में हैं। यहां पर पहली बार LAC की बात सामने आई थी। 1959 में चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाइ के द्वारा तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को लिखी गई दो चिट्ठियों में चीन की ओर से LAC का जिक्र किया गया था। लेकिन भारत ने 1959 और 1962 में LAC की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया था।
हालांकि 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने चीन की यात्रा के दौरान एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें LAC को बनाए रखने और सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति बनी थी।
भारत के पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन अपनी किताब में लिखते हैं कि भारत को ऐसा इस वजह से करना पड़ा क्योंकि 1980 के दशक के मध्य में भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव बढ़ने लगा और सीमा पर शांति बनाए रखने की जरूरत पड़ी। 1988 में राजीव गांधी बीजिंग गए और वहां सीमा विवाद हल करने के लिए बातचीत जारी रखने और सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमति बनी।
जब तक भारत और चीन के बीच सीमा का पूरी तरह निर्धारण नहीं हो जाता है तब तक ऐसा माना जाता है कि सीमा विवाद जारी रह सकता है। दोनों देशों ने समझदारी दिखाते हुए सीमा पर चल रहे तनाव को हल करने का फैसला जरूर लिया है लेकिन सीमा का निर्धारण किए जाने से ही सीमा विवाद पूरी तरह खत्म हो सकता है।