India vs NDA Alliance in Jharkhand Elections 2024: झारखंड के विधानसभा चुनाव में इंडिया और एनडीए गठबंधन में कांटे की टक्कर है और दोनों गठबंधन के नेताओं ने फिर से सरकार बनाने का दावा किया है। बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ गठबंधन किया है और अपने सहयोगी दलों जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को भी हिस्सेदारी दी है। दूसरी ओर, झामुमो अपने सहयोगी दलों- कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों के साथ चुनाव लड़ रही है।
बीजेपी की कोशिश किसी भी कीमत पर झारखंड में इस बार एनडीए की सरकार बनाने की है। इसके लिए पार्टी ने केंद्रीय कृषि मंत्री और राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को जिम्मेदारी दी है। पार्टी ने राज्य में कथित रूप से हो रही बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं की घुसपैठ को मुद्दा बनाया है और इंडिया गठबंधन में शामिल दलों पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर, झामुमो और इंडिया गठबंधन सोरेन सरकार की उपलब्धियों को लेकर चुनाव मैदान में है।
राज्य में एक चरण का मतदान हो चुका है जबकि दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को होना है। चुनाव नतीजे 23 नवंबर को आएंगे।
विधानसभा चुनाव के इस मौके पर झारखंड गठन और इसके चुनावी इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
एक ही नेता ने पूरा किया कार्यकाल
साल 2000 में बिहार से अलग होकर बने इस प्रदेश में अब तक सात नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं लेकिन केवल एक ही नेता ऐसे रहे जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इस नेता का नाम रघुबर दास है। दास मौजूदा वक्त में ओडिशा के राज्यपाल हैं।

झारखंड भले ही साल 2000 में बना लेकिन आजादी के बाद से ही अलग राज्य बनाने की मांग शुरू हो गई थी। इतिहास में जाएं तो जयपाल सिंह मुंडा की झारखंड पार्टी ने आदिवासी राज्य के मुद्दे पर 1952 का चुनाव लड़ा था और तब उन्होंने लोकसभा में तीन और बिहार विधानसभा में 30 सीटें जीती थी। इसके बाद झारखंड के गठन की मांग बीच-बीच में जोर पकड़ती रही और यह मामला राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने भी पहुंचा।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण भी अलग राज्य का समर्थन करते थे लेकिन उस दौर में भी झारखंड अस्तित्व में नहीं आ सका था।
अटल सरकार ने बनाया था झारखंड
15 नवंबर, 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने एक साथ तीन नए राज्य बनाने की मंजूरी दी थी। ये राज्य झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ थे। झारखंड बिहार से अलग होकर बना जबकि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ क्रमश: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से निकले थे।
जब झारखंड अलग राज्य बना तो इसे विधानसभा की 81 और लोकसभा की 14 सीटें मिली। झारखंड को खनिज भंडार के मामले में भारत के सबसे धनी राज्यों में शुमार किया जाता है।
बीजेपी ने बनाया मरांडी को सीएम
जब झारखंड बना तो उस दौरान राज्य में बीजेपी के सबसे बड़े आदिवासी चेहरे करिया मुंडा थे लेकिन जब पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी ने एक और आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया। बाबूलाल मरांडी लंबे वक्त तक राष्ट्रीय सड़क स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे थे और झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी 1998 में लोकसभा का चुनाव हरा चुके थे। बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजेपी में अंदरूनी लड़ाई शुरू हो गई और पार्टी के अंदर सीधे तौर पर दो धड़े बन गए। एक धड़ा मरांडी का था और दूसरा अर्जुन मुंडा का था। अर्जुन मुंडा झामुमो से बीजेपी में आए थे।
इस लड़ाई का नतीजा यह हुआ कि मरांडी को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा 2003 में राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में बड़ा झटका लगा जब वह लोकसभा की 14 में से सिर्फ एक सीट पर ही चुनाव जीत सकी। यह सीट कोडरमा की थी, जहां से मरांडी जीते थे।

मरांडी ने छोड़ी बीजेपी, बनाई अपनी पार्टी
2005 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। शिबू सोरेन कुछ वक्त के लिए मुख्यमंत्री बने लेकिन वह बहुमत साबित नहीं कर पाए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। बीजेपी ने जैसे-जैसे बहुमत के लिए विधायक जुटाए और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने लेकिन इससे बाबूलाल मरांडी नाराज हो गए और उन्होंने बीजेपी छोड़ दी। इसके बाद मरांडी ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया।
इसके बाद झारखंड की राजनीति में लंबे वक्त तक अच्छी-खासी उथल-पुथल रही। मुंडा को मुख्यमंत्री बने डेढ़ साल ही हुआ था कि निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कुछ विधायकों, छोटी पार्टियों, कांग्रेस के समर्थन की वजह से वह मुख्यमंत्री बन गए लेकिन वह भी लगभग दो साल तक इस कुर्सी पर रहे और इसके बाद शिबू सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बने। शिबू सोरेन लगभग 5 महीने तक सीएम रहे और इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।
सितंबर, 2010 में बीजेपी और झामुमो ने मिलकर सरकार बनाई। इस सरकार में अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने जबकि हेमंत सोरेन ने डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाली लेकिन यह गठबंधन ज्यादा नहीं चला और जुलाई, 2013 में हेमंत सोरेन पहली बार मुख्यमंत्री बन गए और अर्जुन मुंडा विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।

BJP ने गैर आदिवासी नेता को बनाया सीएम
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते बीजेपी को 37 सीटें मिली। पार्टी ने आजसू के साथ मिलकर सरकार बनाई और पहली बार राज्य में एक गैर आदिवासी नेता रघुबर दास को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया। लेकिन 2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झटका लगा जब पार्टी सिर्फ 25 सीटें ही जीत सकी। इस बार पार्टी ने किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था। इस चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला और हेमंत सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बने।
चंपई ने की झामुमो से बगावत
हेमंत सोरेन को 2024 में एक कथित जमीन घोटाले से जुड़े मामले में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था और पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनकी गैर मौजूदगी में पार्टी ने चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन जब हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए तो उन्होंने चंपई सोरेन को हटाकर फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली। इससे चंपई सोरेन नाराज हो गए और बीजेपी में शामिल हो गए। चंपई सोरेन और उनके बेटे इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
झारखंड में पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजे
साल | बीजेपी | झामुमो | कांग्रेस | झाविमो | आजसू |
2014 विधानसभा चुनाव | 37 | 19 | 6 | 8 | 5 |
2019 विधानसभा चुनाव | 25 | 30 | 16 | 3 | 2 |
बीजेपी ने सोरेन परिवार में लगाई सेंध
बीजेपी ने 2019 के विधानसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल किया ही, शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को भी अपने साथ ले लिया और सहयोगी दलों को साथ लेकर बड़ा गठबंधन भी बनाया।
दूसरी ओर, जेल से आने के बाद हेमंत सोरेन लगातार मोदी सरकार और जांच एजेंसियों पर हमलावर रहे हैं। सोरेन का कहना है कि मोदी सरकार और जांच एजेंसियां उन्हें आदिवासी होने की वजह से निशाना बना रही हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी पांच लोकसभा सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था। उसके बड़े आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, समीर उरांव भी चुनाव हार गए थे। झारखंड में आदिवासी मतदाताओं की आबादी 26% है।
लोकसभा सीट का नाम | आने वाली विधानसभा सीटें |
खूंटी | खरसावां (एसटी), तमाड़ (एसटी), तोरपा (एसटी), खूंटी (एसटी), सिमडेगा (एसटी), कोलेबिरा (एसटी) |
सिंहभूम | सरायकेला (एसटी), चाईबासा (एसटी), मझगांव (एसटी), जगनाथपुर (एसटी), मनोहरपुर (एसटी), चक्रधरपुर (एसटी) |
लोहरदगा | मांडर (एसटी), सिसई (एसटी), गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), लोहरदगा (एसटी) |
दुमका | शिकारीपाड़ा (एसटी), नाला, जामताड़ा, दुमका (एसटी), जामा (एसटी), सारठ |
राजमहल | बोरियो (एसटी), राजमहल, बरहेट (एसटी), लिट्टीपाड़ा (एसटी), पाकुड़, महेशपुर (एसटी) |
लोकसभा चुनाव में झामुमो और कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, बीजेपी का गिरा
राजनीतिक दल | 2019 लोकसभा चुनाव में मिले वोट (प्रतिशत में) | 2024 लोकसभा चुनाव में मिले वोट (प्रतिशत में) |
बीजेपी | 50.96 | 44.60 |
कांग्रेस | 15.63 | 19.19 |
झामुमो | 11.51 | 14.60 |
झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में से 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ दो सीटें जीती थी और यही वजह थी कि पार्टी बहुमत से काफी दूर रह गई थी जबकि झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने 25 सीटें जीती थी। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही बीजेपी ने आदिवासी मतदाताओं तक पहुंचने की पूरी कोशिश की है।

बीजेपी बोली- बदल रही झारखंड की डेमोग्राफी
झारखंड में बीजेपी लगातार डेमोग्राफी बदलने और अवैध घुसपैठ होने का दावा कर रही है। असम के मुख्यमंत्री और राज्य के सह चुनाव प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि झारखंड के संथाल परगना इलाके में बड़ी संख्या में बांग्लादेश से घुसपैठिये आ रहे हैं और यहां के आदिवासियों और दलितों की जमीनें छीन रहे हैं। सरमा का दावा है कि झारखंड के 20 विधानसभा क्षेत्रों में बांग्लादेशी घुसपैठिए 20 से 48% तक बढ़ गए हैं। बीजेपी ने झारखंड चुनाव के लिए ‘रोटी बेटी माटी की पुकार, झारखंड में भाजपा सरकार’ नारा दिया है। बीजेपी का कहना है कि बड़े पैमाने पर आदिवासियों का धर्मांतरण कराया जा रहा है।
इसके जवाब में इंडिया गठबंधन ने सरना धर्म कोड, अधिवास विधेयक 1932 को मुद्दा बनाया है। इंडिया गठबंधन को मैय्या सम्मान योजना से भी वोट मिलने की उम्मीद है। इस योजना के तहत 18-50 साल की हर वंचित महिलाओं को 1,000 से बढ़ाकर 2,500 रुपये दिए जाने का प्रस्ताव है।