Devdutt Pattanaik on Arts and Culture: (द इंडियन एक्सप्रेस ने UPSC उम्मीदवारों के लिए इतिहास, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कला, संस्कृति और विरासत, पर्यावरण, भूगोल, विज्ञान और टेक्नोलॉजी आदि जैसे मुद्दों और कॉन्सेप्ट्स पर अनुभवी लेखकों और स्कॉलर्स द्वारा लिखे गए लेखों की एक नई सीरीज शुरू की है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स के साथ पढ़ें और विचार करें और बहुप्रतीक्षित UPSC CSE को पास करने के अपने चांस को बढ़ाएं। इस लेख में, पौराणिक कथाओं और संस्कृति में विशेषज्ञता रखने वाले प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक ने अपने लेख में भारत में अलग-अलग धर्मों में होने वाली अंतिम संस्कार की प्रथाओं पर चर्चा की है।)

भैंसें तालाबों, नदियों, दलदलों और चावल की खेती के लिए तय वैट लैंड में पाई जाती है। दूसरी तरफ गायें शुष्क वन क्षेत्रों को पसंद करती हैं। भारत में शुष्क जंगल और वैट रीवर बेसिन दोनों हैं। शुष्क क्षेत्र गेहूं और बाजरा की खेती के लिए हैं, जबकि आर्द्र क्षेत्र चावल की खेती के लिए हैं। इस तरह गाय और बैल भारत के दो अलग-अलग इकोसिस्टम का प्रतिनिधित्व करते हैं। खानाबदोश गायों के साथ घूमते हैं, जबकि किसान भैंसों से जुड़े होते हैं, जिन्हें अपने आवास से दूर जाना पसंद नहीं होता।

बैलों का बधियाकरण किया जाता है और उन्हें गाड़ियां खींचने और कठोर मिट्टी जोतने के लिए बैल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। भैंसों को बधियाकरण की जरूरत नहीं होती। उन्हें नाक में नथ डालकर कंट्रोल किया जाता है। कुछ भैंसों को बोझा ढोने वाले पशुओं के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है और पानी से भरे चावल के खेतों में जोतने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि ज्यादातर भारतीय गायों पर फोकस करते हैं। हम अक्सर इस बात को नजर अंदाज कर देते हैं कि भैंस भारत के इकोनॉमिक इकोसिस्टम के लिए कितनी अहम हैं और वे रीति-रिवाजों, कला और संस्कृति में कितनी खास भूमिका निभाती हैं।

हड़प्पा की मुहरों पर भैंसों का चित्रण है। यह दिखाता है कि वे पालतू थे और 4,500 साल पहले हड़प्पा सभ्यता का हिस्सा थे। यह नदी में पाई जाने वाली भैंस थी, जिसका दूध दही में मिलाकर मक्खन बनाया जाता था और फिर घी बनाया जाता था। भैंसों का इस्तेमाल मांस के लिए भी किया जाता था और उनकी हड्डियों का इस्तेमाल औजार बनाने के लिए किया जाता था। भैंसा प्रसिद्ध पशुपति मुहर पर अंकित है, जिसके सामने एक साधु है जो अपने सिर पर भैंस के सींग पहने हुए है। भैंस के सींग अन्य मुहरों पर भी पाए जाते हैं, जो शक्ति और पौरुष का संकेत देते हैं।

जैन और हिंदू पौराणिक कथाओं में भैंस

लगभग 3,500 वर्ष पूर्व, ऋग्वेद में शक्तिशाली इंद्र की तुलना एक जंगली भैंसे से की गई है। लगभग 2,000 वर्ष पूर्व, तमिल संगम काव्य, कुरुन्तोकई 65 में , कमल के तालाब में भैंसे की तुलना एक असभ्य पुरुष से की गई है, जो उस सुसंस्कृत कन्या की कद्र नहीं करता जिससे वह विवाह करने वाला है। यह दर्शाता है कि उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक, भारत की सांस्कृतिक कल्पना में भैंसा कितना अभिन्न था।

अजंता की दीवारों पर चित्रित महिष जातक में एक सौम्य भैंसे का वर्णन है जो एक बंदर की शरारतों को सहन करता है। वह बंदर को उसके चिड़चिड़े और व्यवहार के लिए दंडित करने से इनकार कर देता है, भले ही उसे वृक्ष आत्मा या यक्ष द्वारा ऐसा करने की सलाह दी गई हो। एक दिन, वह सौम्य भैंसा कहीं चला जाता है और उसकी जगह एक दूसरा भैंसा ले लेता है। बंदर, यह जाने बिना कि वह एक और भैंसा है, वही शरारतें करता है और कुचलकर मर जाता है।

भारत में अहम हैं अलग-अलग धर्मों में अंतिम संस्कार की प्रथाएं

जैन पौराणिक कथाओं में भैंसा बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का प्रतीक है। जैन यक्षी ज्वालामालिनी को भैंसे पर सवार दिखाया गया है। एक कथा के अनुसार, यक्षी पूर्वजन्म में एक धर्मनिष्ठ जैन थीं, जो जैन मुनियों को भोजन कराती थीं, लेकिन उनके पति ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया। इसलिए उनका पुनर्जन्म यक्षी के रूप में हुआ और वे भैंसे पर सवार होती हैं, जो उनके पति का पुनर्जन्म था।

भैंसा यमराज का वाहन

हिंदू पौराणिक कथाओं में भैंसे की बहुत अहम भूमिका है। यह मृत्यु के देवता यमराज का वाहन है। भैंसा राक्षस महिष के रूप में भी फेमस है। इसका वध अनेक भुजाओं वाली देवी दुर्गा ने किया था। राक्षस का वध करती इस देवी की सबसे प्राचीन प्रतिमा राजस्थान में मिली है और इसका समय 100 ईसा पूर्व बताया गया है। कुषाण काल की कई टेराकोटा प्रतिमाओं में देवी को अपने नंगे हाथों से भैंसे का वध करते हुए दिखाया गया है।

बाद में यह छवि और भी विस्तृत हो जाती है। देवी को सिंह पर सवार होकर भैंसे को अपने पैरों से दबाकर मारते हुए दिखाया गया है। ऐसी छवियां गुप्त, चालुक्य और पल्लव मंदिरों में पाई जाती हैं। अब ये भारत भर में हर शरद ऋतु में मनाए जाने वाले नवरात्रि उत्सव का हिस्सा हैं।

लोक त्योहारों में भैंसे की बलि

दक्कन भर के लोक उत्सवों में, देवी को एक भैंसा बलि के रूप में चढ़ाया जाता है। देवी को भैंसा चढ़ाने का उद्देश्य उन्हें प्रसन्न करना भी है ताकि बच्चे बाघों के हमलों से सुरक्षित रहें। जब एक भैंसे की बलि दी जाती है, तो उसका पैर उसके मुंह में डालकर देवी को भेंट किया जाता है। यह प्रथा नेपाल में भी प्रचलित है। साथ ही, एक नए नर बछड़े को चुना जाता है और उसे अगले वर्ष देवी को चढ़ाने के लिए पूरे वर्ष मोटा किया जाता है। ऐसे अनुष्ठान धरती की उर्वरता सुनिश्चित करते हैं। पुराने जीवन की जगह पर नया जीवन आता है।

केरल में हर (शिव) और हरि (विष्णु) के पुत्र, स्थानीय देवता अयप्पा, महिष की बहन महिषी को पराजित करते हैं। महाराष्ट्र में, ग्राम देवी के पति, भैंस-देवता म्हसो-बा की पूजा होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि देवी के प्रेमी भैंसे की हत्या के बाद, वह बैल की सवारी करने वाले शिव को अपना पति चुनती हैं। दक्कन क्षेत्र की कई लोक देवियों के युवा पुरुष पुजारी होते हैं जिन्हें पोतराज या भैंसा राजा कहा जाता है, जो देवी के सम्मान में जुलूस निकालते हैं। पोतराज कोड़े लिए एक भयंकर पुरुष की तरह कपड़े पहने होते हैं और आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में मनाए जाने वाले बोनालू जैसे जुलूसों में दिखाई देते हैं। इस आकृति को कभी काली के पुत्र के रूप में, तो कभी उनके पति के रूप में पहचाना जाता है, जबकि वे खुद को उनका सेवक कहते हैं।

लेख से जुड़े सवाल

  • हड़प्पा मुहरों और प्रसिद्ध पशुपति मुहर पर भैंसों का चित्रण क्या दर्शाता है?
  • जैन और हिंदू पौराणिक कथाओं में भैंस का क्या स्थान है, और यह कैसे दर्शाता है कि भैंस भारत की सांस्कृतिक कल्पना का अभिन्न अंग है?
  • हिंदू पौराणिक कथाओं में भैंसे के बदलते चित्रण – जिसे अनेक भुजाओं वाली देवी दुर्गा द्वारा मारे गए राक्षस से लेकर नवरात्रि उत्सव का हिस्सा बनने तक – हमें क्या बताते हैं?
  • पूरे दक्कन में लोक त्योहारों में भैंस की बलि की रस्म प्रजनन और सुरक्षा के बारे में विश्वासों को किस प्रकार प्रतिबिंबित करती है?
  • केरल में महिषी और महाराष्ट्र में म्हसोबा की कहानियां भैंस के चित्रण में क्षेत्रीय विविधताओं को कैसे प्रतिबिंबित करती हैं?

(देवदत्त पटनायक एक प्रसिद्ध पौराणिक कथाकार हैं जो कला, संस्कृति और विरासत पर लिखते हैं।)