शरद जैन
इस साल मानसून की शुरुआत सामान्य तरीके से नहीं हुई है। 61 वर्षों के बाद मानसून मुंबई और नई दिल्ली में एक ही दिन – 24 जून को पहुंचा। इन शहरों में मानसून की शुरुआत आम तौर पर क्रमशः 10 जून और 30 जून के आसपास होती है। इसके आगमन के तुरंत बाद, भारत भर में कई स्थानों पर भारी से बहुत भारी वर्षा हुई। जून/जुलाई की शुरुआत में नदियों और शहरों में बाढ़ आना असामान्य है क्योंकि अधिकांश बाढ़ आमतौर पर मानसून के बाद के महीनों में होती है।
अध्ययन और विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारत में नागरिकों, संपत्तियों और बुनियादी ढांचे को बाढ़ से पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं की जा सकती है। इसलिए, हमें अपना ध्यान और प्रयास बाढ़ नियंत्रण से हटाकर बाढ़ प्रबंधन की ओर लगाने की जरूरत है। लेकिन भारत में नदियों पर बना हाइड्रो इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रभावी ढंग से बाढ़ प्रबंधन करने के लिए अपर्याप्त है।
बाढ़ से सूखे का असर कम किया जा सकता है
बाढ़ का मौसम समाप्त होने के लगभग पांच महीने बाद अक्टूबर में देश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी होती है और लोगों को सूखे का सामना करना पड़ता है। वर्तमान में हम बाढ़ के प्रवाह को तबाही के रूप में देखते हैं और उसके जल्द से जल्द लौट जाने की कामना करते हैं। हालांकि यदि बाढ़ प्रवाह के एक बड़े हिस्से को सुरक्षित रूप से संरक्षित किया जा सके, तो क्षति कम हो जाएगी। बचाया गया पानी आने वाले सूखे को आंशिक रूप से कम करने में मदद करेगा। सूखे को कम करने के लिए जल भंडारण भारत के लिए एक बढ़िया मौका है।
हाल के दिनों में भारत को हर साल कम से कम एक बड़ी बाढ़ की घटना का सामना करना पड़ा है। जैसे-जैसे 2023 का मानसून आगे बढ़ रहा है, बाढ़ से होने वाली क्षति और विनाश का पैटर्न को रिपीट होते देखा जा रहा है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, हर साल बाढ़ के कारण औसतन 1,600 लोगों की जान चली जाती है। बाढ़ से 75 लाख हेक्टेयर भूमि भी प्रभावित होती है और फसलों, घरों और सार्वजनिक संपत्तियों को 1,805 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
बाढ़ प्रबंधन के लिए क्या करें?
बाढ़ प्रबंधन के लिए कई प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं। मोटे तौर पर इन्हें संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। संरचनात्मक उपायों में है पानी का भंडारण, तटबंध निर्माण और नदियों का डायवर्सन शामिल हैं। ये नुकसान पहुंचाने वाले पानी को कृषि क्षेत्रों, शहरों, उद्योगों आदि से दूर रखकर बाढ़ के खतरों को कम करते हैं।
जब पानी तेजी बह रहा हो तो उसका भंडारण कर पानी के कम होने के बाद उसे छोड़ कर बाढ़ के एक्सट्रीम सिचुएशन को नियंत्रित किया जा सकता है। पानी को सिंचाई, बिजली उत्पादन, जल आपूर्ति आदि के लिए संरक्षित भी किया जा सकता है। इसके अलावा, टैंक और तालाब भारत में जल संरक्षण के पारंपरिक साधन हैं। ये पारंपरिक उपाय ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने में भी सहायता होते हैं और जैव विविधता को बढ़ावा देते हैं।
गैर-संरचनात्मक तरीके में बाढ़ का पूर्वानुमान, चेतावनियां और बाढ़ के मैदान का ज़ोनिंग, लोगों की समय पर निकासी में मदद करना शामिल है। ध्यान दें कि बाढ़ तभी खतरा बनती है जब लोग बाढ़ के पानी के करीब जाते हैं या उसकी आवाजाही में बाधा डालते हैं।
पूर्वानुमान और चेतावनी का सिस्टम विकसित होने से लोगों और चल संपत्तियों को समय पर सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर लिया जाता है। भारत में 5,500 से अधिक बड़े बांध हैं। सटीक पूर्वानुमान लगाकर बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। एक आम कहावत है: “बाढ़ ईश्वर का कार्य है लेकिन बाढ़ से होने वाला नुकसान काफी हद तक मनुष्य का कार्य है”।
बाढ़ प्रबंधन में क्या हैं अड़चन?
गैर-संरचनात्मक तरीकों में निर्माण शामिल नहीं होता है इसलिए पर्यावरण या किसी अन्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, पानी को न तो संरक्षित किया जाता है और न ही वैकल्पिक उपयोग में लाया जाता है। बड़ी और मध्यम जल संरक्षण परियोजनाएं भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाले पानी को बचा सकती हैं। इसलिए, बाढ़ को मैनेज करने के लिए, मौजूदा बुनियादी ढांचे में बदलाव किया जाना चाहिए या नया बुनियादी ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।
भारत में अधिकांश पानी सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, नर्मदा और तापी नदी से आता है। मानसून में भारतीय नदियों का जलस्तर बनना सामान्य है। मानसून के चार महीनों के दौरान, भारतीय नदियां अपने वार्षिक प्रवाह का लगभग 75 प्रतिशत प्रवाहित करती हैं। यही कई बार बाढ़ का कारण बनती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और महानदी जैसे बेसिनों में बड़े पैमाने पर बाढ़ का प्रवाह होता है। गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदी के लिए की गई भंडारण की व्यवस्था अपर्याप्त है।
जल संरक्षण के विकल्प बड़े भंडारण से लेकर खेत तालाबों तक भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता है। प्रत्येक विकल्प के कुछ फायदे, सीमाएं, चिंताएं और आवश्यकताएं होती हैं। किसी भी विकल्प को सिरे से खारिज कर देना बुद्धिमानी नहीं है। निःसंदेह, जल संरक्षण और आम सहमति बनाने के लिए अच्छे स्थल ढूंढना एक चुनौती है।
जलवायु परिवर्तन एक चुनौती
जलवायु परिवर्तन बाढ़ प्रबंधन को मुश्किल बनाता जा रहा है। बारिश का पैटर्न, तीव्रता और अवधि में बदलाव की संभावना से पूर्वानुमान मुश्किल हो रहा है। हाल ही में आईपीसीसी ने मूल्यांकन रिपोर्ट 6 जारी की, जिसमें बताया गया कि गर्म होती दुनिया में तीव्र बारिश का अधिक होना भविष्य में आम हो सकता है। इसलिए भविष्य में भारतीय नदियों में प्रवाह और उनकी परिवर्तनशीलता बढ़ेगी। इससे बाढ़ और सूखे की अधिक घटनाएं होंगी।
(लेखक राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के निदेशक रहे हैं और अब आईआईटी रूड़की में हैं।)
