ब्रिटिश शासन काल (British Raj) में रामपुर (Rampur) एक समृद्ध रियासत था। रामपुर रियासत (Rampur State) की शुरुआत नवाब फैज उल्ला खान से मानी जाती है। रामपुर रियासत की समृद्धी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी नवाब खानदान के पास 2600 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। रामपुर रियासत जब अपने उरूज पर था, तब नौवें नवाब हामिद अली खां ने महल तक रेल लाइन बिछवा लिया था। ट्रेन के लिए विशेष स्टेशन (Nawab Rampur Station) भी बनवाया गया था। नवाब अक्सर अपने निजी ट्रेन से ही सफर किया करते थे। उन्होंने शाही घराने के इस्तेमाल के लिए साल 1925 में ट्रेन की चार बोगियां खरीदी थीं।

बोगी में होती थी 5 स्टार होटल जैसी व्यवस्था

रामपुर नवाब की रेल लाइन 40 किलोमीटर लंबी थी। उनकी निजी ट्रेन रामपुर से मिलक के बीच चला करती थी। कुल चार बोगियों की ट्रेन में एक डिब्बा नवाब के लिए होता था, जिसमें डाइनिंग रूम, बेडरूम, बाथरूम समेत ऐशो आराम की तमाम सुविधाएं होती थीं। ट्रेन में किचन भी होता था। साथ में खानसामे और नौकर भी चला करते थे। सुरक्षा के लिहाज से एक डिब्बा में सैनिकों की टुकड़ी भी चला करती थी। सफर से पहले रियासत की तरफ से रेल मंत्रालय को सूचित किया जाता था ताकि रूट तय हो सके।  

अपनी ट्रेन से लोगों को पहुंचाया था पाकिस्तान

भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त रामपुर वह पहला रियासत था, जो भारत में विलय के लिए तैयार हुआ था। हालांकि नवाब ने रियासत के उन नागरिकों को अपनी ट्रेन से पाकिस्तान पहुंचवाया था, जो बंटवारे के वक्त भारत में नहीं रहना चाहते थे। उस वक्त सीमा के दोनों तरफ खूब हिंसा हो रही थी इसलिए नवाब ने सुरक्षा के मद्देनजर अपनी सेना की दो बटालियन भी भेजी थी। आज़ादी के बाद रामपुर के नवाब ने साल 1954 में अपनी ट्रेन की चार बोगियों में से दो भारत सरकार को दे दी थीं।

अब खंडहर हो चुका है स्टेशन

कभी राजसी ठाट-बाट से दमकता रामपुर के नवाब का निजी रेलवे स्टेशन अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। हालांकि कोर्ट ने सर्वे में रेलवे स्टेशन की कीमत 113 करोड़ 88 हजार रुपये आंकी है।