Hindu Dominated Seats in Jammu Election 2024: जम्मू-कश्मीर में एग्जिट पोल से सामने आए आंकड़ों ने रोमांच बढ़ा दिया है। साल 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद यह पहला मौका है, जब राज्य में विधानसभा के चुनाव हुए। एग्जिट पोल के आंकड़े दिखाते हैं कि 90 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन बहुमत के आसपास पहुंच सकता है। लेकिन उन्हें सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन लेना पड़ सकता है। ऐसे में राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बन सकती है।

नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के अलावा, बीजेपी, महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद की पार्टी एआईपी, अपनी पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस ने भी अपने-अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा।

एग्जिट पोल के आंकड़ों के बीच यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या जम्मू-कश्मीर में सरकार के गठन में एक बार फिर से जम्मू की बड़ी भागीदारी रहेगी? इसमें से भी विशेष रूप से हिंदू-बहुल जिलों पर सभी की नजर है।

हिंदू-बहुल जिलों में कितनी सीटें जीतेगी बीजेपी?

जम्मू, सांबा, कठुआ और उधमपुर प्रमुख रूप से हिंदू आबादी की बहुलता वाले जिले हैं। इन जिलों में 24 विधानसभा सीटें आती हैं। ये जिले सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 2014 में बीजेपी ने इन चार जिलों में पड़ने वाली 21 सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी। इन सीटों की बदौलत ही बीजेपी ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।

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जम्मू में सभी सीटों पर लड़ी बीजेपी

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 43 सीटें हैं जबकि कश्मीर में 47। बीजेपी ने जम्मू की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। बीजेपी को उम्मीद है कि यहां उसे एसटी का दर्जा हासिल पहाड़ी समुदाय और पदारी जनजाति के वोट मिल सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में आदिवासी समुदाय के लिए 9 सीटें आरक्षित हैं। इसमें से 6 सीटें जम्मू प्रांत में हैं। इन 6 में से भी 5 सीटें राजौरी-पुंछ के जिलों में आती हैं जबकि एक सीट रियासी जिले में है। यहां पहाड़ी मतदाता बहुसंख्यक हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सीटें एसटी समुदाय के लिए आरक्षित की गई हैं।

बीजेपी से नाराज हैं गुज्जर मतदाता?

कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन ने क्रमशः जम्मू की 30 और 17 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि चार सीटों पर दोनों दल दोस्ताना मुकाबले में थे। इन दोनों ही पार्टियों को जम्मू में गुज्जर वोटों के मिलने का भरोसा है। ऐसा कहा जा रहा है कि गुज्जर मतदाता बीजेपी से नाराज हैं क्योंकि बीजेपी ने पहाड़ी समुदाय के मतदाताओं को एसटी की श्रेणी में शामिल किया है।

बीजेपी के इस कदम से गुज्जर मतदाताओं को लगता है कि जब से अनुच्छेद 370 समाप्त किया गया है, तब से उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व कमजोर हुआ है।

अन्य क्षेत्रीय पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार

पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) ने आधा दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी को ऐसी उम्मीद है कि डोडा ईस्ट से उसके उम्मीदवार- पूर्व मंत्री अब्दुल मजीद वानी की जीत से पार्टी को यहां खाता खोलने का मौका मिलेगा। अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व वाली अपनी पार्टी ने कुछ ही सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं और उसे रियासी जिले से जीत की उम्मीद है।

जम्मू-कश्मीर के एग्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई है। ऐसे में तीनों पार्टियों- एनसी, बीजेपी और कांग्रेस के ऐसे बागी नेता, जिन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, अगर वे चुनाव जीतते हैं तो सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

जम्मू के प्रमुख उम्मीदवारों में चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा का नाम शामिल है। यह दोनों ही नेता 2014 में नतीजे के बाद बनी पीडीपी-बीजेपी की सरकार में मंत्री थे। लेकिन कठुआ दुष्कर्म मामले के आरोपियों के समर्थन में आयोजित की गई एक रैली में शामिल होने के बाद बीजेपी ने चौधरी लाल सिंह से इस्तीफा देने के लिए कहा था। इस बार चौधरी लाल सिंह बसोहली से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं जबकि गंगा विजयपुर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

नौशेरा सीट से एनसी के उम्मीदवार सुरिंदर चौधरी हैं, इस सीट से बीजेपी के जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष रविंदर रैना भी चुनाव मैदान में हैं।