हरियाणा के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की जोरदार टक्कर के बाद अब चुनावी लड़ाई 5 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर शुरू हो गई है। हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही 5-5 सीटों पर जीत मिली है।

बीजेपी के लिए यह प्रदर्शन झटका देने वाला है क्योंकि पिछले चुनाव में उसने सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।

लोकसभा चुनाव में हर‍ियाणा में बीजेपी को जाट बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने दुष्‍यंत चौटाला की पार्टी से गठबंधन तोड़ ल‍िया था। चुनाव के बाद बनी एनडीए की सरकार में भी हर‍ियाणा से क‍िसी जाट को मंत्री नहीं बनाया गया।

लोकसभा चुनाव के नतीजे से बीजेपी को स्पष्ट संदेश मिला है कि अगर उसे हरियाणा की सत्ता में बरकरार रहना है तो उसे नई रणनीति के साथ चुनाव में उतरना होगा, वरना यह राज्य उसके हाथ से निकल सकता है।

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(बाएं से दाएं) मोहन भागवत और पीएम मोदी (Source- PTI)

मोदी 3.0 में तीनों मंत्री गैर जाट समुदाय से

बीजेपी ने कैबिनेट विस्तार में हरियाणा से तीन नेताओं को जगह दी है और यह तीनों ही नेता गैर जाट समुदाय से आते हैं। जबक‍ि, बीजेपी के पास भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से जीते चौधरी धर्मबीर सिंह के रूप में मजबूत जाट नेता हैं। धर्मबीर सिंह लगातार तीसरी बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। मंत्री पद नहीं म‍िलने से चौधरी धर्मबीर सिंह के समर्थक खासे नाराज बताए जाते हैं।

पार्टी ने गुड़गांव से चुनाव जीते राव इंद्रजीत सिंह, फरीदाबाद से चुनाव जीते कृष्ण पाल गुर्जर और करनाल से चुनाव जीते पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को केंद्रीय मंत्री बनाया है।

इससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है? क्योंकि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इस तरह राज्य के इन दोनों बड़े पदों पर गैर जाट नेता ही काबिज हैं।

10 सांसद जीते, तब भी नहीं बनाया किसी जाट नेता को मंत्री

हरियाणा में जब बीजेपी सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी तब भी उसने किसी जाट नेता को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी थी। 2014 में राज्य में सरकार बनाने के बाद से भी उसने किसी जाट नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया।

हालांकि, नायब सिंह सैनी से पहले जाट समाज से आने वाले सुभाष बराला और ओमप्रकाश धनखड़ पार्टी के अध्यक्ष थे। लेकिन, अब बीजेपी को नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन करना है। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद क्या पार्टी रणनीति बदल सकती है और किसी जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है?

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पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडा और सीएम नायब सैनी। (Source- FB)

व‍िधानसभा चुनाव में जाटों की अनदेखी करना आसान नहीं

हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी 22 से 25% के आसपास है और इतने अहम समुदाय को बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकती। खास कर तब जब लोकसभा चुनाव में जाटों ने बीजेपी को झटका दे द‍िया है और उसे जाट बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। साथ ही, जगह-जग‍ह क‍िसानों का व‍िरोध भी झेलना पड़ा। इन क‍िसानों में भी बड़ी आबादी जाटों की है।

प्रदेश अध्‍यक्ष जाट होगा या गैर जाट- बड़ा सवाल

हर‍ियाणा में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए जिन नामों पर भाजपा मंथन कर रही है, उनमें ब्राह्मण समुदाय से आने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा, दलित समुदाय से आने वाले राज्यसभा सांसद कृष्ण लाल पंवार के साथ ही वैश्य समुदाय से पूर्व उद्योग मंत्री विपुल गोयल का नाम चर्चा में है।

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सरबजीत सिंह खालसा और अमृतपाल सिंह निर्दलीय ही चुनाव जीत गए हैं।

इन जाट नेताओं को भी मिल सकता है मौका

अगर पार्टी जाट समुदाय के किसी नेता पर दांव लगाती है तो इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के नाम भी चर्चा में हैं। इसमें से सुभाष बराला को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के चयन में भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की राय को वरीयता दी थी।

चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के उम्मीदवारों को किसानों की जबरदस्त नाराजगी का सामना करना पड़ा। महिला पहलवानों के यौन शोषण के मुद्दे पर भी बीजेपी को कांग्रेस ने जमकर घेरा। जाट बहुल लोकसभा सीटों- सोनीपत, रोहतक और हिसार में बीजेपी को हार मिली है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में अपना जनाधार मजबूत करने के लिए बीजेपी किसी जाट नेता को आगे कर सकती है।

बीजेपी का वोट शेयर गिरा, कांग्रेस का बढ़ा

राजनीतिक दललोकसभा चुनाव 2019 में मिले वोट (प्रतिशत में)लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट (प्रतिशत में)
कांग्रेस 28.51 43.67
बीजेपी 58.2146.11 

दूसरी ओर, कांग्रेस लोकसभा चुनाव के नतीजों से जबरदस्त उत्साहित है और 15 जून से पूरे प्रदेश में जिला स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन करने जा रही है। ऐसा करके पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए जोश भरेगी।

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को ग्रामीण इलाकों से अच्छा समर्थन मिला है जबकि बीजेपी को शहरी इलाकों से। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान सिंह के नेतृत्व में पार्टी अकेले दम पर चुनाव मैदान में जाने को तैयार है।

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेताओं की राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ बैठक हो चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस चुनाव में दमखम दिखाया है। उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा लगभग 3.50 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं।

हुड्डा ने ऐलान किया है कि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया जाएगा। इसका मतलब कांग्रेस अकेले दम पर लड़ने को तैयार है।

विधानसभा चुनाव 2019: हुड्डा के नेतृत्व में बढ़ी थी कांग्रेस की सीटें, बीजेपी की कम हुई

राजनीतिक दलविधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट
कांग्रेस 3115
बीजेपी 4740

हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी

बीजेपी के सामने, जहां राज्य में कोई बड़ा गैर जाट चेहरा उसके पास ना होना मुश्किल है तो वहीं कांग्रेस के सामने गुटबाजी एक बड़ा मुद्दा है। हरियाणा कांग्रेस के अंदर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी उदयभान सिंह का अलग गुट है जबकि सिरसा से चुनाव जीतने वालीं कुमारी सैलजा, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला और पूर्व नेता प्रतिपक्ष किरण चौधरी का अलग खेमा है।

Ajit Pawar
अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के पद की पेशकश की गई लेकिन उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया। (Source-FB)

किरण चौधरी इस बात से सख्त नाराज हैं कि इस लोकसभा चुनाव में उनकी बेटी श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से टिकट नहीं दिया गया। किरण चौधरी चुनाव नतीजे की समीक्षा को लेकर बुलाई गई बैठक में भी नहीं पहुंचीं। कुमारी सैलजा ने भी इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया। यह बैठक चंडीगढ़ में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आधिकारिक आवास पर बुलाई गई थी।

इससे पता चलता है कि चुनाव से पहले भी हरियाणा कांग्रेस में जबरदस्त गुटबाजी जारी है।

यह तय है कि हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जंग होनी है और राज्य में चुनावी मुकाबला दो ध्रुवीय ही होगा। क्योंकि जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल का लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहद खराब रहा है और इन दलों को क्रमश: 0.87% और 1.74% वोट मिले हैं।