लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हरियाणा के अंदर कांग्रेस से जबरदस्त टक्कर मिली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी। लेकिन इस बार वह 5 सीटें ही जीत पाई।
2019 के लोकसभा चुनाव में न सिर्फ बीजेपी सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीती थी बल्कि दोनों राजनीतिक दलों के बीच में वोट प्रतिशत का अंतर भी काफी ज्यादा था। 2019 में बीजेपी को 58.02% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 28.42%।
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी के उम्मीदवारों को हरियाणा में किसानों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। लगभग सभी लोकसभा सीटों पर किसान भाजपा के नेताओं से तमाम सवाल पूछ रहे थे। कुछ ऐसा ही हाल पड़ोसी राज्य पंजाब में भी बीजेपी के नेताओं और उम्मीदवारों का था।
अग्निवीर योजना और महिला पहलवानों के यौन शोषण के मुद्दे पर भी हरियाणा में बीजेपी से खासी नाराजगी दिखाई दी थी।

याद दिलाना होगा कि कृषि कानूनों के खिलाफ जब दिल्ली के बॉर्डर्स पर किसानों ने आंदोलन किया था तो इसमें हरियाणा के किसानों ने अपनी ताकत दिखाई थी। जबरदस्त विरोध के बाद मोदी सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए थे। लेकिन यह माना जा रहा था कि बीजेपी को यहां लोकसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है और चुनाव के नतीजे/रुझानों में यह साफ देखने को मिल रहा है।
बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए ही लोकसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को कुर्सी से हटा दिया था। खट्टर की जगह पर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा असर?
बताना होगा कि हरियाणा में कुछ महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। अगर रुझान नतीजे में बदलते हैं तो बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका होगा जबकि कांग्रेस नई ताकत के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेगी।

महिला पहलवानों के यौन शोषण का मुद्दा
उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से बीजेपी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। यह सभी महिला पहलवान हरियाणा के ग्रामीण इलाकों से आती हैं। बीजेपी ने हालांकि इस नाराजगी को भांपते हुए ही बृजभूषण शरण सिंह को इस बार उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से टिकट नहीं दिया था लेकिन उनके बेटे को प्रत्याशी बनाया था। इसके खिलाफ हरियाणा के पहलवानों ने आवाज उठाई थी।
अग्निवीर योजना को लेकर विरोध
हरियाणा एक ऐसा प्रदेश है जहां से हर साल बड़ी संख्या में युवा फौज में भर्ती होते हैं। मोदी सरकार अग्निवीर योजना लाई थी तो इसका देश के कुछ अन्य राज्यों की तरह हरियाणा में भी विरोध हुआ था।
बीजेपी का गैर जाट कार्ड
हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी 25% है लेकिन 2014 में जब से बीजेपी हरियाणा की सत्ता में आई है तभी से उसने गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे चलने की कोशिश की है। पिछले 10 सालों में उसके दोनों मुख्यमंत्री गैर जाट समुदाय से ही रहे हैं। 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में 36 विधानसभा सीटों पर और इसी तरह 10 लोकसभा सीटों में से चार सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक हैं।

हुड्डा ने दिखाया दम
अगर चुनाव नतीजे यही रहते हैं तो इसका श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के हैवीवेट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जाएगा। हरियाणा में चुनाव प्रचार की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ही संभाली थी। हुड्डा पिछला चुनाव सोनीपत से हार गए थे लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव मैदान में उतरने की बजाय पार्टी के प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार किया। हुड्डा कई बार लोकसभा के सांसद रह चुके हैं। वह 9 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं और जाट समुदाय के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं।
दूसरी ओर बीजेपी के चुनाव प्रचार की अगुवाई पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने की। ऐसा साफ दिखाई देता है कि बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव में चुनावी लड़ाई बेहद कठिन हो सकती है क्योंकि वह सहयोगी जननायक जनता पार्टी से भी गठबंधन तोड़ चुकी है।