लंबे वक्त तक कांग्रेस में रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में पूरी तरह अकेले दिखाई पड़ते हैं। ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का प्रचार कमजोर है और इससे उनके कार्यकर्ता भी निराश दिखाई देते हैं। जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान 18 सितंबर को जबकि दूसरे और तीसरे चरण का मतदान 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होगा।
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस में नाराज नेताओं के गुट G-23 में शामिल थे। कांग्रेस में रहकर वह लंबे वक्त तक पार्टी नेतृत्व से नाराजगी जताते रहे और अगस्त 2022 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी का गठन किया था। इसका नाम डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी रखा था।
कांग्रेस में बड़े ओहदों पर रहे आजाद
कांग्रेस में रहते हुए ही वह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। कई बार भारत सरकार में मंत्री बने। राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे और कांग्रेस संगठन में भी कई बड़े ओहदों पर उन्होंने काम किया। गुलाम नबी आजाद ने जब अपनी पार्टी बनाई तो जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के कई बड़े चेहरों ने पार्टी को अलविदा कहा और आजाद का हाथ पकड़ लिया। जम्मू-कश्मीर के ताजा राजनीतिक हालात में गुलाम नबी आजाद के लिए अपनी पार्टी को जिंदा रख पाना मुश्किल हो गया है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बड़ी संख्या में आजाद की पार्टी के नेता उनका साथ छोड़कर चले गए। अनंतनाग-राजौरी और उधमपुर की सीटों पर तो आजाद की पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके।

गृह नगर में भी नहीं है आजाद की पार्टी का उम्मीदवार
आजाद ने पिछले महीने के आखिरी दिनों में जब अचानक ही यह ऐलान किया कि उनकी सेहत ठीक नहीं है और वह चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं कर पाएंगे तो इससे पार्टी में भगदड़ वाले हालात बन गए। उनकी पार्टी के चार उम्मीदवारों ने अपना नाम भी वापस ले लिया। यह चारों ही उम्मीदवार जम्मू की चिनाब घाटी से थे और इसे आजाद राजनीतिक रूप से अपना मजबूत गढ़ मानते हैं।
हालात इस कदर खराब हैं कि आजाद के पास अब भद्रवाह में एक भी उम्मीदवार नहीं है। भद्रवाह गुलाम नबी आजाद का गृह नगर है। 2006 से 2008 तक आजाद जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, तब वह इसी सीट से विधायक थे।
हालांकि पहले चरण के चुनाव प्रचार के खत्म होने से पहले आजाद अपनी पार्टी के उम्मीदवार अब्दुल मजीद वानी के लिए चुनाव प्रचार करने मैदान में उतरे। जब आजाद का काफिला लोगों के बीच पहुंचा और आजाद गाड़ी से बाहर निकले तो वह काफी बदले हुए दिखे। उन्होंने दाढ़ी बढ़ा ली थी और वह थके हुए लग रहे थे। आजाद ने अनंतनाग और डोडा जिलों में सिर्फ 5 दिन तक चुनाव प्रचार किया।
‘बीजेपी के एजेंट’ का टैग
जम्मू-कश्मीर की 90 में से लगभग 19 सीटों पर आजाद की पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। एक वक्त में राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में रहे गुलाम नबी आजाद अब खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं। जम्मू-कश्मीर की दो बड़ी पार्टियों के प्रमुखों- नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने उनसे दूरी बनाई हुई है। आजाद के बारे में वे यह मानते हैं कि वह बीजेपी के एजेंट हैं।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में गुलाम नबी आजाद भविष्यवाणी करते हैं कि राज्य में किसी भी पार्टी और गठबंधन को बहुमत नहीं मिलेगा। आजाद कहते हैं कि वह विधानसभा में ऐसा विधेयक लेकर आएंगे जिससे बाहरी लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन ना खरीद सकें या नौकरी न पा सकें। आजाद की पार्टी के कार्यकर्ता उन पर लगे ‘बीजेपी प्रॉक्सी’ वाले टैग को सिर्फ प्रोपेगेंडा बताते हैं हालांकि वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनकी पार्टी का चुनाव प्रचार काफी कमजोर रहा है।
गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक करियर इस बात पर निर्भर करेगा कि जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी कितनी सीटें जीतेगी। इसमें भी उनकी ज्यादातर उम्मीदें चिनाब घाटी पर टिकी हुई हैं।