डॉ. मनोज मिश्र
लोक चेतना के प्रत्येक पक्ष में प्रभु श्री राम का योगदान अविस्मरणीय है. श्री राम जी का चरित्र और आदर्श, धर्म पालन, नैतिकता और मानवीय संबंधों के मार्गदर्शन में सदैव प्रेरणा प्रदान करता है. समाज और परिवार के प्रति उनके कर्तव्य ने सदा समाज को आंदोलित और प्रेरित किया है. श्रीराम का न्याय और नैतिकता में किए गए सुकृत्य लोक चेतना में आज भी स्थापित हैं. उनके गुणधर्म, साहस और परहित की भावना सदा अनुकरणीय है. वस्तुतः श्रीराम कथा नर से नारायण बनने की सीख देती है.
राम का जीवन सामाजिक समृद्धि, सद्गुण और सहानुभूति के मार्ग पर चलने के लिए एक प्रेरणा स्रोत है. उनके सार्थक जीवन ने विभिन्न क्षेत्रों में सहानुभूति और सेवाभाव के महत्त्व को बताया है. गोस्वामी जी ने सच कहा है कि
रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जान निहारा॥
श्री रामचन्द्रजी को केवल प्रेम प्यारा है, जो जानने वाला हो (जानना चाहता हो), वह जान ले. श्री राम जी का जीवन एक आदर्श समाज बनाने की कल्पना को साकार स्वरूप देने वाला है. राजा बनने के बाद वह न्याय और धर्म के प्रति अपने समर्पण के लिए जाने जाते हैं, जिसके बलबूते उन्होंने रामराज्य की स्थापना की.
श्री राम, राजाराम, आदर्श आज्ञाकारी पुत्र श्री राम, सर्वस्व त्याग कर अपने भाई को राज सौंपने वाले आदर्श भ्राता श्री राम, स्त्री के अपमान के बदला लेने के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाले आदर्श पति श्री राम, प्रजा के प्रति एक आदर्श शासक श्री राम, वैदिक संस्कृति की सनातन परंपरा की रक्षा के लिए तथा गृहस्थाश्रम की पुनर्प्रतिष्ठा स्थापित करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, भारतीय वाङ्गमय के आदर्श पुरुष श्री राम जैसे असंख्य विशेषणों से विभूषित श्री राम करोड़ों-करोड़ लोंगो के हृदय में विराजमान हैं.
समाज में जब नमस्कार तब राम- राम और जब तिरस्कार तो राम -राम. जन्मोत्सव हो या महाप्रयाण की बेला, सबका अंत राम से ही होता है. भारत के प्रत्येक संस्कार में या समझ में श्रीराम का उद्बोधन भारतीय संस्कृति की पहचान रही है. संयुक्त परिवार-वसुधैव कुटुम्बकम के पर्याय और आदर्श दोनों ही श्रीराम हैं. श्री राम कथा मानवीय सम्बन्धों को व्यापकता प्रदान करने में बेजोड़ रही है. यह एक ऐसे व्यक्तित्व की कथा है जिसने लोकहित को सदा सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. गोस्वामी जी ने लिखा है…
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री रघुनाथजी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है. मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी (गंगाजी) की चाल की भांति टेढ़ी है. प्रभु श्री रघुनाथजी के सुंदर यश के संग से यह कविता सुंदर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी. श्मशान की अपवित्र राख भी श्री महादेवजी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है. गोस्वामी जी ने ऐसा इसलिए लिखा कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की कथा से हमें जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है.
श्रीराम संयुक्त परिवार को टूट से बचाने के लिए राजपाट का त्याग कर आततायियों और असामाजिक तत्वों के विनाश के लिए सदा संकल्पित रहे. लोकहित को सर्वोच्चता तथा भाई का मान रखने के लिए अंततः राजा बनना स्वीकार्य किया और ऐसे रामराज्य की स्थापना की जहां किसी को कोई कष्ट नही था. श्री राम और केवट संवाद सामाजिक समरसता का आदर्श है..
कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोइ करु जेहिं तव नाव न जाई॥
बेगि आनु जलपाय पखारू। होत बिलंबु उतारहि पारू॥
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥
सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा॥
कृपा के समुद्र श्री रामचन्द्रजी केवट से मुस्कुराकर बोले भाई! तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाए. जल्दी पानी ला और पैर धो ले. देर हो रही है, पार उतार दे. एक बार जिनका नाम स्मरण करते ही मनुष्य अपार भवसागर के पार उतर जाते हैं और जिन्होंने (वामनावतार में) जगत को तीन पग से भी छोटा कर दिया था (दो ही पग में त्रिलोकी को नाप लिया था), वही कृपालु श्री रामचन्द्रजी (गंगाजी से पार उतारने के लिए) केवट का निहोरा कर रहे हैं.
यह उच्चतम आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी जैसे व्यक्तित्व का ही हो सकता है कि रावण के साथ युद्ध के समय उसे धर्म और नीति का बोध कराते कहते हैं कि
जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।
संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल रसाल पनस समा॥
एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं।
एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं॥
प्रभु श्रीराम रावण से कहते है कि व्यर्थ बकवास करके अपने सुंदर यश का नाश न करो. क्षमा करना, तुम्हें नीति सुनाता हूं, सुनो! संसार में तीन प्रकार के पुरुष होते हैं- पाटल (गुलाब), आम और कटहल के समान. एक (पाटल) फूल देते हैं, एक (आम) फूल और फल दोनों देते हैं एक (कटहल) में केवल फल ही लगते हैं. इसी प्रकार (पुरुषों में) एक कहते हैं (करते नहीं), दूसरे कहते और करते भी हैं और एक (तीसरे) केवल करते हैं, पर वाणी से कहते नहीं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक भावपूर्ण प्रसंग पर अपनी लेखनी को भावों की चाशनी में डुबो कर सत्य ही लिखा है कि…
सत्यसंध पालक श्रुति सेतू। राम जनमु जग मंगल हेतु॥
गुर पितु मातु बचन अनुसारी। खल दलु दलन देव हितकारी।।
प्रभु श्री राम सत्य प्रतिज्ञ हैं और वेद की मर्यादा के रक्षक हैं. श्रीरामजी का अवतार ही जगत के कल्याण के लिए हुआ है. वे गुरु, पिता और माता के वचनों के अनुसार चलने वाले हैं। दुष्टों के दल का नाश करने वाले और देवताओं के हितकारी हैं. आज जब लगभग 500 वर्षों बाद प्रभु श्री राम का पूर्ण विधि विधान से अयोध्या में पुनः आगमन हो रहा है तब यह ”सर्वे भवन्तु सुखिनः” के उद्घोष के साथ रामराज्य की स्थापना करेगा जो न सिर्फ भरतवंशियों को अपितु सम्पूर्ण मानव समाज के लिए नई सुबह है.
(लेखक वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर में जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।)