आजादी की लड़ाई के सिपाही और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की ट्रेन यात्राओं से जुड़े कई किस्से बेहद दिलचस्प हैं। इन यात्राओं में उनके साथ रहे मोहम्मद यूनुस ने एक संस्मरण में ये किस्से बयां किए हैं। उन्होंने पहली बार 1938 में पंडित नेहरू के साथ कार में सफर किया था। इसके बाद उन्हें उनके साथ यात्रा करने के कई मौके मिले थे। वह तीन साल तक पंडित नेहरू के साथ उनके ही घर में रहे थे।
यूनूस उम्र में पंडित नेहरू से काफी छोटे थे। वह 26 जून, 1916 में अबोटाबाद में पैदा हुए थे। वह खान अब्दुल गफ्फार खान के भांजे थे और उनके साथ 1936 से 1947 तक काम किया था। 1947 में वह भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे और 1974 में रिटायर हुए। 2001 में उनकी मृत्यु हुई। Jawahar Lal Nehru His Life, Work and Legacy में मोहम्मद यूनुस ने पंडित नेहरू के साथ यात्राओं से जुड़ा अपना अनुभव और किस्से लिखे हैं।
जब बिना किसी काम पहली बार आनंद भवन पहुंचे सरदार पटेल
रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन (1940) संपन्न होने के बाद जवाहर लाल नेहरू ट्रेन से इलाहाबाद के लिए रवाना हुए। इलाहाबाद से एक स्टेशन पहले (प्रयाग) ट्रेन से उतर कर वह कार से आनंद भवन के लिए चले। पर, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें झलक रही थीं। उन्होंने मोहममद यूनुस के साथ यह चिंता साझा की और कहा- सरदार वल्लभभाई की बंबई की ट्रेन कई घंटे बाद रवाना होगी। इतनी देर वह स्टेशन पर क्या करेंगे? अच्छा होगा कि आप स्टेशन जाकर उन्हें ले आएं।
आनंद भवन पहुंचने के बाद मोहममद यूनुस फिर से इलाहाबाद स्टेशन पहुंचे। सरदार पटेल को आनंद भवन ले जाने के लिए। सरदार पटेल और उनकी बेटी मणि बेन स्टेशन पर इंतजार करने के लिए कोई जगह देख रहे थे। उन्होंने यूनुस को हैरत भरी निगाहों से देखा और जब पंडित नेहरू का न्यौता सुना तो और हैरान हुए। पंडित नेहरू आनंद भवन में घर के बाहर ही सरदार पटेल का इंतजार कर रहे थे। यह पहली बार था जब सरदार बिना किसी मीटिंग के आनंद भवन आए थे।
मुसाफिर के खर्राटे से परेशान हो गए थे नेहरू
एक बार पंडित नेहरू जब ट्रेन में सफर कर रहे थे तो एक मुसाफिर बहुत जोर से खर्राटे भर रहा था। इससे परेशान होकर पं. नेहरू ने मोहम्मद यूनुस से धीरे से कहा- अगर उसकी नाक दबा दी जाए तो वह खर्राटे लेना बंद कर देगा। यूनुस अपनी सीट से उठे और उस यात्री की नाक जोर से दबा दी। वह व्यक्ति अचानक उछल पड़ा और चिल्लाने लगा- टक्कर लग गई, टक्कर लग गई…। यूनुस खिड़की की ओर देखने लगे। अगला स्टेशन आया तो वह व्यक्ति उतर गया और तब खर्राटे से राहत मिली।
‘नेहरू स्विच’ का किस्सा
एक बार जवाहर लाल नेहरू ट्रेन से इलाहाबाद से कानपुर जा रहे थे। वह सो नहीं पा रहे थे, क्योंकि बोगी में लाइट जल रही थी। उस समय थर्ड और इंटर क्लास कंपार्टमेंट में लाइट ऑफ करने के लिए स्विच नहीं होते थे। इसलिए पंडित नेहरू सफर के दौरान खादी का छोटा काला बैग लेकर चलते थे। यह बैग लाइट को ढंकने के काम आता था। उनका यह तरीका लोगों को भी पता चल गया था। एक बार जब मोहम्मद यूनुस भी ट्रेन में सफर कर रहे थे तो उन्होंने भी उसी तरह के काले बैग से लाइट को ढंक दिया। यह देख कर साथ के मुसाफिर कहने लगे यह नौजवान जरूर नेहरू का साथी लगता है। यूनुस ने लौटने के बाद नेहरू के साथ यह किस्सा साझा किया और मजाक में कहा- इस बैग को ‘नेहरू स्विच’ का नाम दे देना चाहिए।
‘क्या मुंह से लिखूं?’
पंडित नेहरू की ट्रेन जब कानुपर पहुंची तो उनके स्वागत के लिए विशाल भीड़ इंतजार कर रही थी। पंडित नेहरू ने कंपार्टमेंट का दरवाजा खोल दिया। खिड़की और दरवाजे की बीच वह खड़े हो गए और दोनों हाथों से कंपार्टमेंट की छत को पकड़े रखा। इसी बीच एक लड़के ने अपनी नोटबुक उनके सामने करते हुए ऑटोग्राफ की मांग कर दी। पंडित नेहरू ने कहा, ‘क्या मुंह से लिखूं? यह कह कर वह हंस पड़े और भीड़ भी हंसने लगी।
नेहरू के लिए टॉयलेट के सामने टेबल लगाने का किस्सा
दिसंबर, 1941 में बारदोली में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक के बाद सूरत से पंडित नेहरू को फ्रंटियर मेल में सवार होना था। ट्रेन का वक्त रात के दो बजे था। स्टेशन पहुंचने पर पंडित जी को अचानक ख्याल आया आज तो 31 दिसंबर (नव वर्ष की पूर्व संध्या) है तो कुछ होना चाहिए। मोहम्मद यूनुस ने एक चाय वाले को पकड़ा और उससे कहा कि किसी कोने में ऐसी जगह एक टेबल तैयार कर दे जहां भीड़-भाड़ न हो। डाइनिंग रूम से निकले तो देखा कि चाय वाले ने टॉयलेट के पास टेबल लगा दी थी। आसफ अली साहब को यह नागवार गुजरा, पर मोहम्मद यूनुस ने मिर्जा गालिब का हवाला देकर उन्हें समझाया और कहा कि देशप्रेमियों के लिए मयखाने की इस नई जगह पर ऐतराज न करें।