आजादी के 77 साल बाद भी भारत में 70 प्रतिशत वोटिंग आज तक नहीं हुई है। पिछले आम चुनाव में सबसे अधिक मतदान का रिकॉर्ड बना था, जबकि वोटिंग 67.36% ही हुई थी। लोकसभा चुनाव 2019 में करीब 30 करोड़ लोगों ने वोट नहीं डाला था।

चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद वोटिंग प्रतिशत में कोई बड़ा अंतर नहीं आया है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि साल 1967 के आम चुनाव में 61.33 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला था और इसके पांच दशक बाद साल 2019 में मात्र 6.03 प्रतिशत ज्यादा लोगों ने वोट किया।

1962 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों का रिकॉर्ड देखें तो औसत वोटिंग प्रतिशत 59 है। अब सवाल उठता है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी वोट क्यों नहीं करता है?

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लोकसभा चुनावों में वोटर टर्नआउट

कम वोटिंग प्रतिशत के कई कारण

शहरी लोगों में मतदान के प्रति उदासीनता

मतदाता उदासीनता का तात्पर्य चुनाव में मतदान करने के योग्य लोगों के बीच उदासीनता से है। ऐसा तब हो सकता है जब मतदाताओं का चुनावी प्रक्रिया से या राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से मोहभंग हो जाता है, या जब उन्हें नहीं लगता कि उनका वोट मायने रखेगा, या जब उन्हें अपने आसपास के मुद्दों की ज्यादा परवाह नहीं है।

भारत के ज्यादातर बड़े शहरों, खासकर राजधानियों में यह देखने को मिलता है। भारत में 1962 के बाद से मतदाताओं की संख्या में चार गुना से अधिक की वृद्धि देखी गई है, 2023 में यह संख्या 94.5 करोड़ को पार कर गई थी, लेकिन उनमें से लगभग एक तिहाई ने 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया।

मतदान प्रतिशत को 75% तक ले जाने की चर्चा के बीच, चुनाव आयोग ने माना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जिन 30 करोड़ लोगों ने वोट नहीं किया, उनमें शहरी क्षेत्रों के लोग, युवा मतदाता और प्रवासी एक बड़ा हिस्सा थे।

आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ चुनिंदा राज्यों के उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे कम मतदान हुए हैं, जो या तो राज्य की राजधानी की हिस्सा हैं, या प्रमुख शहर हैं। उदाहरण के लिए, लोकसभा चुनाव 2019 में कर्नाटक में सबसे कम मतदान राजधानी की ही तीन सीटों पर हुई थी। वो सीटें थीं- बेंगलुरु दक्षिण, बेंगलुरु सेंट्रल और बेंगलुरु उत्तर। यह पैटर्न अन्य राज्यों में भी देखा जा सकता है। नीचे चुनिंदा राज्यों के तीन संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में सबसे कम मतदान हुए:

कर्नाटक – बेंगलुरु दक्षिण, बेंगलुरु सेंट्रल, बेंगलुरु उत्तर
पश्चिम बंगाल- कोलकाता उत्तर, कोलकाता दक्षिण, हावड़ा
तमिलनाडु- चेन्नई साउथ, चेन्नई सेंट्रल, श्रीपेरंबदूर
तेलंगाना- हैदराबाद, सिकंदराबाद, मल्काजगिरी
आंध्र प्रदेश- विशाखापत्तनम, अराकू, श्रीकाकुलम

प्रवासी कामगारों का बड़ा हिस्सा नहीं कर पाता वोट

भारत की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रवासी कामगारों का एक बड़ा तबका चुनावों में वोट नहीं डाल पाता। उनकी अपनी चुनौतियां, जिससे निपटने और जूझने की कोशिश में प्रवासी कामगार ‘लोकतंत्र के महापर्व’ से वंचित रह जाते हैं। अन्य पर्व-त्योहारों की तरफ ये महापर्व भी उनके लिए इतना खर्चीला होता है कि उनकी जेब इसकी इजाजत नहीं दे पाती।

जिस शासन व्यवस्था के कारण मजदूरों को रोटी कमाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा हो, अगर वो उस व्यवस्था को पुष्ट करने या नकारने के लिए वोट डालना भी चाहें तो उन्हें अपने दफ्तर या फैक्ट्री से छुट्टी लेनी होगी। फिर इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि छुट्टी मिल ही जाए। छुट्टी मिल भी गई, तो उतने दिन की कमाई जाएगी।  

इसके बाद रोजगार की तलाश में अपने शहर, राज्य या देश से दूर गए कामगार के सामने होगा आने-जाने का खर्च जुटाना। यही वो चुनौतियां हैं, जो प्रवासी कामगारों के एक बड़े हिस्से को मतदान प्रक्रिया से लगातार दूर कर रही है। चुनाव आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई दिशाओं में काम कर रहा है, लेकिन इस तरफ अभी भी ध्यान नहीं गया है। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

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नई दिल्ली में चुनाव आयोग के कार्यालय के बाहर लगी ईवीएम का मॉडल। (PTI Photo/Manvender Vashist Lav)

मतदान में युवाओं की रुचि नहीं!

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश के सबसे युवा पात्र मतदाता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने में कम रुचि ले रहे हैं। TOI की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में 18 और 19 साल के 40% से भी कम लोगों ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया है, बिहार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में नामांकन दर एक चौथाई से भी कम दर्ज की गई है।

मतदान की तारीखों की घोषणा के बाद चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 18 और 19 साल के वर्ग में केवल 1.8 करोड़ से कुछ अधिक नए मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल किया गया है। यह आंकड़ा इस जनसांख्यिकीय के अनुमानित जनसंख्या आकार से काफी कम है। आसान भाषआ में कहें तो पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं में से केवल 38% ने ही पंजीकरण कराया है।

पहली बार वोट डालने जा रहे 1.82 करोड़ युवाओं की पढ़ाई और रोजगार का ये है हाल – पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

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युवा मतदाता