फारूक शेख (Farooq Shaikh) की गिनती बॉलीवुड के ऐसे कलाकारों में होती है, जिन्होंने अपने किरदारों से अमिट छाप छोड़ी है। 25 मार्च 1948 को गुजरात के वडोदरा में जन्में फारूक शेख लॉ की पढ़ाई के बाद एक्टिंग की दुनिया में आए थे। चिकन का सफेद कुर्ता एक तरीके से उनकी पहचान बन गया था। कुर्ता भी सिर्फ एक जगह से खरीदते थे और वह जगह थी लखनऊ का सेवा एनजीओ, जिसे पद्मश्री रुना बनर्जी चलाती हैं।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

एक ही जगह से खरीदते थे कुर्ता

एक पुराने इंटरव्यू में रुना बनर्जी (Runa Banerjee) ने कहती हैं कि फारूक शेख 30 साल तक हमसे कुर्ते खरीदते रहे लेकिन कभी भी डिस्काउंट नहीं मांगा। उनका हर कुर्ता कस्टम मेड होता था। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में रूना कहती हैं कि फारुख शेख से उनकी मुलाकात साल 1984 में आई मुजफ्फर अली की फिल्म ‘अंजुमन’ की शूटिंग के दौरान हुई थी, यह फिल्म चिकनकारी वर्कर्स पर केंद्रित थी।

क्यों हर बार 500 रुपये अधिक देते थे?

रुना बनर्जी बताती है कि फारूक शेख (Farooq Shaikh) जो कुर्ता बनवाते थे उसकी कीमत 2500 से 3000 के बीच होती थे, लेकिन वो हर बार 500 ज्यादा देते थे और कहते थे कि यह कुर्ता तैयार करने वाले कामगारों के लिए है। रुना कहती हैं कि उनका बिल 70-80 हजार के बीच होता था। कई बार तो 1 लाख रुपये तक पहुंच जाता था। क्रेडिट कार्ड या चेक से पेमेंट करते थे।

जब पकड़ा दिया ब्लैंक चेक

फारूक शेख जब भी दुबई या और कहीं जाते, तो लोगों के लिए कुर्ता, साड़ी जैसे तोहफे भी ले जाते थे। रुना एक वाकया याद करते हुए कहती हैं कि एक बार उन्होंने मुझे ब्लैंक चेक दे दिया था और कहा था कि जो रकम हो इसमें भर लें। मैंने हंसते हुए शेख साहब (फारूक शेख) से कहा कि अगर मैं ज्यादा भर दूं तो? इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था ‘ऊपर हिसाब देना पड़ेगा रुना जी…’।

जब जहाज में पैसेंजर पर गिरा दी दही

फारूक शेख से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर फिल्म डायरेक्टर साई परांजपे (Sai Paranjpye) साझा करती हैं। एक पुराने इंटरव्यू में बताती हैं कि मुझे और फारूक दोनों को खाने पीने का बहुत शौक था। फारूक जब भी कोलकाता जाते तो वहां से मेरे लिए मिष्टि दोई (मीठी दही) जरूर लाते थे। एक बार वे कोलकाता से मुंबई लौट रहे थे और दही का कंटेनर जहाज में लगेज बॉक्स में डाल दिया। अचानक कंटेनर नीचे गिरा और सारी दही एक पैसेंजर के ऊपर गिर गई। फारूक शेख ही थे जिन्होंने मामले को संभाल लिया।

नमाज को लेकर पाबंद थे

साई परांजपे TOI को दिये इंटरव्यू में बताती हैं कि फारूक शेख शुक्रवार की नमाज को लेकर बहुत पाबंद थे। शूटिंग चल रही हो और कोई बहुत जरूरी सीन शूट किया जाना हो, अचानक पता चला कि फारूक शेख तो हैं ही नहीं। नमाज पढ़ने चले गए हैं। लेकिन उनका स्वभाव ऐसा था कि सबका दिल जीत लेते थे।

खुद चुकाया लाइटमैन का बिल

साल 1981 में आई फिल्म ‘चश्मे-बद्दूर’ से फारूक शेख देखते ही देखते सबकी नजरों में आ गए थे। साई परांजपे इसी फिल्म से जुड़ा एक वाकया साझा करती हैं। वह बताती हैं कि सेट पर एक लाइटमैन को चोट लग गई। उसके इलाज वगैरह की किसी को कोई जानकारी नहीं थी। बाद में पता लगा कि फारूक शेख ने खुद हॉस्पिटल का सारा बिल भरा था और किसी को इसकी खबर तक नहीं दी।