लाइटहाउस जर्नलिज्म को कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर की जा रही एक पोस्ट मिली। इस पोस्ट में दावा किया गया है कि डेनमार्क में एक कानून पारित किया गया है, जिसके तहत मुसलमानों को चुनाव में वोट देने से रोक दिया गया है। जांच के दौरान हमने पाया कि वायरल हो रहा दावा झूठा है।

यह एक पुराना दावा है, जिसे सबसे पहले साल 2020 में शेयर किया गया था।

क्या है दावा?

फेसबुक ग्रुप Pushpendra Kulshreshtha Fans ने वायरल पोस्ट को शेयर किया था।

इस पोस्ट का आर्काइव वर्जन देखें।

अन्य यूजर भी इस दावे को शेयर कर रहे है.

जांच पड़ताल:

हमने गूगल कीवर्ड सर्च के ज़रिए यह पता लगाना शुरू किया कि क्या डेनमार्क, जो एक स्कैंडिनेवियाई देश है, के बारे में कोई ऐसी ख़बर है जिसमें मुसलमानों को लेकर ऐसा कोई क़ानून पारित किया गया हो।

हमें ऐसी कोई ख़बर नहीं मिली जिसमें मुसलमानों को चुनाव में वोट देने से रोकने वाले किसी क़ानून का ज़िक्र हो।

फिर हमें डेनमार्क मंत्रालय की वेबसाइट पर कुछ विवरण मिले।

विवरण: कोई भी व्यक्ति जो 18 वर्ष का है, डेनमार्क का नागरिक है और यहीं रहता है, वह आम चुनाव में मतदान कर सकता है। हालांकि, संरक्षकता के तहत जो लोग कानूनी क्षमता से वंचित हैं, वे मतदान के लिए अयोग्य हैं।

हालांकि, हमें dw.com पर एक समाचार रिपोर्ट मिली जिसका शीर्षक था: डेनमार्क आईएस लड़ाकों की नागरिकता छीनेगा

खबरों में उल्लेख किया गया था: डेनमार्क की संसद ने गुरुवार को एक कानून को मंजूरी दे दी, जिसके तहत सीरिया और इराक में “इस्लामिक स्टेट” (आईएस) समूह के लिए लड़ने वाले दोहरी नागरिकता वाले लोगों से उनकी राष्ट्रीयता छीन ली जाएगी।

हमने पाया कि यह पोस्ट 2020 में भी व्यापक रूप से प्रसारित की गई थी।

निष्कर्ष: डेनमार्क ने मुसलमानों को चुनाव में मतदान करने से रोकने वाला कोई कानून पारित नहीं किया है। वायरल दावा झूठा है।