ओटीटी प्लेटफॉर्म SonyLIV पर ‘तमिल रॉकर्स’ (Tamil Rokerz) नाम से एक सीरीज आयी है। यह सीरीज असल घटनाओं पर आधारित है। ‘तमिल रॉकर्स’ पाइरेटेड कंटेंट का एक जाना माना ठिकाना रहा है, जिसने आज भी फिल्मा निर्माताओं से लेकर सरकार तक के नाक में दम कर रखा है। दिल्ली हाईकोर्ट में इसके खिलाफ मुकदमा चला है। ढेरों गिरफ्तारियां हुई हैं।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in करें

नकेल कसने के तमाम जतन बावजूद तमिल रॉकर्स मिथकीय पक्षी फ़ीनिक्स की तरह हर बार अपने भस्म से उठ खड़ा होता है। सरकारी दस्तावेजों में तमिल रॉकर्स का डोमेन नेम से लेकर URL तक सब प्रतिबंधित है। फिर भी पाइरेटेड कंटेन्ट के शौक़ीन उसका पता ढूंढ लेते हैं। तमिल रॉकर्स पाइरेटेड कंटेंट की दुनिया में अब एक विचार बन चुका है, जिसके नाम के हजारों बहरूपिया वेबसाइट संचालित हो रही हैं।

आज हम जानेंगे तमिल रॉकर्स के उद्भव और विकास की कहानी, ढूंढेंगे कुछ सवालों के जवाब, जैसे- कौन लोग चलाते हैं तमिल रॉकर्स? क्या है उनका मकसद? कैसे पाते हैं फिल्म की पाइरेटेड कॉपी? और कितनी होती है कमाई?

कब हुई शुरुआत?    

TamilRockers की उत्पत्ति काफी हद तक अज्ञात है। लेकिन अगर कुछ रिपोर्ट्स पर विश्वास करें तो यह 2011 के आसपास अस्तित्व में आया था। हालांकि एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर नजर रखने वाली चर्चित वेबसाइट ‘फिल्म कम्पैनियन’ ने विभिन्न सोर्स के हवाले से बताया है कि तमिल रॉकर्स का गठन 2007 या 2011 में दोस्तों के एक छोटे समूह द्वारा किया गया था। आज इसके सदस्य कई देशों में फैले हुए हैं। कहा जाता है कि टीम के कुछ लोग फिल्म रिकॉर्डिंग की सोर्सिंग करते हैं, कुछ अपलोडिंग संभालते हैं। बताया जाता है कि यह ग्रुप भारत के बाहर से ऑपरेट करता है।

शुरुआत में यह ग्रुप अपेक्षाकृत अज्ञात था क्योंकि वे केवल तमिल फिल्में अपलोड करते थे। उनकी लोकप्रियता तब बढ़ी जब उन्होंने अन्य भाषाओं का पाइरेटेड कंटेन्ट भी उपलब्ध कराना शुरू किया।

तमिल रॉकर्स से पहले भी करीब 3-4 वेबसाइट ऐसी थीं जो फिल्मों को ऑनलाइन लीक करती थीं। लेकिन फिल्म पायरेसी की शुरुआत इंटरनेट के आने से तो हुई नहीं। डिजिटल युग से पहले भी कुछ ग्रुप सक्रिय थे, जो पायरेटेड डीवीडी बेचकर पैसा बनाते थे। साल 2003 में धनुष की फिल्म Kaadhal Konden की मूल सीडी की कीमत 450 रुपये थी, जिसकी मात्र 750 प्रतियां बिकीं। वहीं फिल्म की पायरेटेड सीडी 70 रुपये में उपलब्ध थी, जिसकी 60 हजार प्रतियां खरीदी गईं।

साल 2017 में तमिल रॉकर्स के एक पूर्व सदस्य भास्कर कुमार से वॉक्सस्पेस डॉट इन ने बातचीत की थी। भास्कर ने बताया था कि जब रजनीकांत की फिल्म ‘शिवाजी’ आयी थी, तो उनका बिजनेस ऐसा चला था कि डीवीडी बनाने के लिए 70 कंप्यूटर लीज़ पर लेने पड़े थे।

कैसे बनाते हैं पाइरेटेड कॉपी?

भास्कर ने अपने इंटरव्यू में खुलासा किया था कि इस रैकेट में कई निर्माता, वितरक और थिएटर मालिक शामिल हैं। तीन तरीकों से पाइरेटेड कॉपी तैयार किया जाता है।

1.फिल्म स्टूडियो स्टाफ: रिलीज से पहले फिल्म की प्रीमियर स्क्रीनिंग रखी जाती है, जिसमें फिल्म से जुड़े लोग, फिल्म समीक्षक और पत्रकार शामिल होते हैं। फिल्म की प्रीमियर स्क्रीनिंग जिस स्टूडियो में रखी जाती है, उस स्टूडियो के प्रबंधक, संचालक या या स्टाफ के साथ ग्रुप का समझौता होता है। तमिल रॉकर्स के सदस्य स्टूडियो कर्मचारी की पहचान के साथ वहां मौजूद होते हैं और स्क्रीनिंग के वक्त फिल्म को चुपके से रिकॉर्ड कर लेते हैं। इस काम में सहयोग करने वाले स्टूडियो स्टाफ को 70 हजार से एक लाख रुपये तक का भुगतान किया जाता है।

2.विदेशी थिएटर मालिक: कई भारतीय फिल्मों को विदेशों में भी रिलीज किया जाता है। तमिल रॉकर्स विदेशी थिएटर मालिकों को 4 से 10 लाख रुपये तक का भुगतान कर प्रिंट खरीद लेता है।

3.आम लोग: थिएटर में रिलीज हुई फिल्म को लीक करने में आम लोगों की भी बड़ी भूमिका होती है। तमिल रॉकर्स उन्हें कंट्रीब्यूटर (योगदानकर्ता) कहता है। ये लोग स्थानीय सिनेमाघरों से फिल्में रिकॉर्ड करते हैं और तमिल रॉकर्स को भेजते हैं। इसके लिए उन्हें प्रति प्रिंट 500 से 1500 रुपये का भुगतान किया जाता है। कई बार प्रतिस्पर्धी फिल्म निर्माता भी एक दूसरे की फिल्म लीक कराने में मदद करते हैं।

तमिल रॉकर्स पैसा कैसे कमाता है?

चूंकि पायरेसी वेबसाइट्स नई फिल्मों को मुफ्त में ऑनलाइन रिलीज करती हैं इसलिए ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि यह एक फ्री सर्विस है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। यह एक बड़ा व्यवसाय है।

तमिल रॉकर्स ग्रुप अपनी वेबसाइटों पर विज्ञापनों और पॉप-अप से मोटी कमाई करता है। विज्ञापनों के अलावा कई अन्य तरीकों से भी कमाई की जाती है। ऐसा ही एक तरीका है- फिरौती। भास्कर ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि वे कभी-कभी फिल्म निर्माता से संपर्क कर फिरौती की मांग करते हैं। यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो वे इसे टोरेंट होस्ट साइटों को बेच देते हैं जो उन्हें थोक में भुगतान करती हैं।

मार्च 2008 में केरल पुलिस ने पायरेसी के आरोप में तमिल रॉकर्स से कथित रूप से जुड़े तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। इसके अलावा पुलिस ने तमिल रॉकर्स के कथित मास्टरमाइंड कार्थी को उसके दो सहयोगियों प्रभु और सुरेश के साथ तमिलनाडु के विल्लुपुरम से गिरफ्तार किया था। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आरोपियों के बैंक ट्रांजेक्शन से पुलिस जांच में पता चला था कि वो अपने इस अवैध कारोबार से करोड़ों रुपये कमाते हैं।

जनसत्‍ता स्‍पेशल स्‍टोरीज पढ़ने के ल‍िए क्‍ल‍िक करें। अगर क‍िसी मुद्दे को व‍िस्‍तार से समझना है तो Jansatta Explained पर क्‍ल‍िक करें।

Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा विशेष समाचार (Jansattaspecial News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
First published on: 19-08-2022 at 17:14 IST