मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) भारत की सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आज भी मुगलई व्यंजनों (Mughlai dishes) को भारतीयों के बीच खासा पसंद किया जाता है। यह आम धारणा है कि मुगल बादशाह (Mughal Emperors) गोश्त बहुत खाया करते थे। हालांकि इतिहासकारों के मुताबिक कई मुगल बादशाह, जैसे- अकबर, जहांगीर और औरंगजेब खानपान में साग-सब्जियों को अधिक तरजीह दिया करते थे।
सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन करते थे अकबर
अलग-अलग मुगल बादशाह की अलग-अलग खूबी रही। शाहजाहाँ का वास्तुकला पर जोर रहा। वहीं सम्राट अकबर के शासनकाल को पाक विलक्षणताओं के लिए याद किया जाता है। उनके कार्यकाल में कई तरह के व्यंजन ईजाद हुए।
प्रसिद्ध खाद्य इतिहासकार सलमा हुसैन ने मुगलकालीन खाद्य परंपरा पर कई किताबें लिखी हैं। वह बताती हैं कि अकबर सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन किया करते थे। वह केवल गंगाजल पीते थे। उनके किचन गार्डन को गुलाब जल से सींचा जाता था ताकि पकाने के वक्त सब्जियों से सुगंध आए।
अकबर को संबुसा या समोसा बहुत पसंद था। इसके अलावा उनके लिए खास तरह से पालक का साग बनाया जाता था। इस व्यंजन को बनाने के लिए घी, मेथी, अदरक, इलायची और लौंग के साथ पालक को पकाया जाता था।
अकबर के लिए हरिसा (मांस को गेहूं, घी और दालचीनी के साथ पका कर) नाम का एक व्यंजन भी बनाया जाता था। इसका एक शाकाहारी वर्जन भी था, जिसे हलीम कहा जाता था। उसमें मांस की जगह दाल और सब्जियों का इस्तेमाल होता था। ‘द एम्पायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स: हिस्ट्री, आर्ट एंड कल्चर’ नामक किताब में एक पूरे मेमने को भूनने का जिक्र भी मिलता है। हालांकि अकबर ने बीफ या अन्य ऐसी चीजों को खाने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो हिंदुओं और जैनों की आस्था से जुड़ी हुई थीं। किताब के मुताबिक, अकबर की शाही रसोई में भारत और फारस के 400 से अधिक रसोइए काम करते थे।
मुर्गियों का चंदन से होता था मसाज
Colleen Taylor Sen ने अपनी किताब A History of Food In India में बताया है कि अकबर के शासनकाल में महल की मुर्गियों को हाथ से केसर के दाने खिलाए जाते थे और गुलाब जल पिलाया जाता था। इतना ही नहीं मुर्गियों को रोजाना सरसों के तेल और चंदन से मसाज किया जाता था।
सलमा हुसैन ने अपनी किताब ‘द मुगल फीस्ट: रेसिपीज फ्रॉम द किचन ऑफ एम्परर शाहजहाँ’ में लिखा है कि, ‘शाहजहाँ को आम तौर पर किन्नर खाना परोसा करते थे। एक शाही चिकित्सक द्वारा बादशाह का मेनू तैयार किया जाता था, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता था कि खाने में औषधीय रूप से लाभकारी सभी सामग्री शामिल हो सकें।
उदाहरण के लिए बिरयानी बनाने में इस्तेमाल होने वाले चावल के प्रत्येक दाने पर चांदी के तेल का लेप लगाया जाता था। शाही चिकित्सक के मुताबिक, ऐसा करने से चावल आसानी से पच जाता था और एक कामोत्तेजक के रूप में भी काम करता था।