Jharkhand Assembly Elections 2024 Dynasty Politics: भारत की राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है। तमाम राज्यों में दिग्गज नेता अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बहू, बेटी, बच्चों को सौंपते आए हैं। ऐसा ही झारखंड के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। जहां पर वर्तमान मुख्यमंत्री, तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के रिश्तेदार चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं।

दूसरे दलों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी इस मामले में सबसे आगे है जबकि वह दूसरे राजनीतिक दलों पर परिवारवाद और वंशवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती है। झारखंड में 13 नवंबर और 20 नवंबर को वोटिंग होनी है और दोनों ही चरणों की सीटों के लिए चुनावी घमासान जोरों पर है। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के एक दल को छोड़कर दूसरे दल में जाने का सिलसिला भी तेज है।

झारखंड के चुनाव में राज्य के बड़े राजनीतिक परिवारों के आठ नए सदस्य नामांकन कर चुके हैं और इनमें से पांच बीजेपी के उम्मीदवार हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि राजनीति में आम घरों से आने वाला शख्स कैसे आगे बढ़ेगा क्योंकि तमाम राजनीतिक दलों में बड़े नेताओं के परिजनों का ही बोलबाला दिखाई देता है।

चलिए, ऐसे नेताओं के बारे में जानते हैं जो झारखंड में राजनीतिक परिवारों से संबंध रखते हैं और इस बार विधानसभा पहुंचने की जद्दोजहद कर रहे हैं।

सबसे पहले बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। कुछ महीने पहले हुए उपचुनाव में भी उन्होंने यहां से जीत दर्ज की थी।

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चंपई और उनके बेटे को भी टिकट

बाबूलाल सोरेन 40 साल के हैं और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बेटे हैं। चंपई सोरेन झारखंड की राजनीति में बड़ा नाम हैं और वर्षों तक झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन, उनके बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ काम करने के बाद इस साल अगस्त में बीजेपी में शामिल हो गए थे। बीजेपी ने न सिर्फ उन्हें बल्कि उनके बेटे को भी टिकट दिया। चंपई को सरायकेला से जबकि उनके बेटे बाबूलाल सोरेन को घाटशिला सीट से टिकट दिया गया है।

ऐसा दिखाई देता है कि जमीनी स्तर पर बीजेपी के कई कार्यकर्ता बाबूलाल सोरेन को टिकट दिए जाने से खुश नहीं हैं। झामुमो का कहना है कि चंपई सोरेन ने इसलिए उसका साथ छोड़ा क्योंकि वह अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे और पार्टी इसके लिए तैयार नहीं थी जबकि चंपई सोरेन ने कहा था कि झामुमो में उनका अपमान हुआ है।

रघुबर दास की बहू हैं पूर्णिमा दास साहू

जमशेदपुर ईस्ट से चुनाव लड़ रही पूर्णिमा दास साहू झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य में बीजेपी के बड़े नेता रहे रघुबर दास की बहू हैं। रघुबर दास वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल हैं। विरोधी दलों ने आरोप लगाया है कि रघुबर दास अपनी बहू के लिए प्रचार कर रहे हैं और यह संवैधानिक पद की मर्यादा के पूरी तरह खिलाफ है।

जमशेदपुर ईस्ट की सीट पर रघुबर दास पिछली बार चुनाव हार गए थे। तब उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। पूर्णिमा दास साहू के लिए चुनाव आसान नहीं है क्योंकि उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार से है।

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अर्जुन मुंडा की पत्नी हैं मीरा मुंडा

मीरा मुंडा झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी हैं। अर्जुन मुंडा इस बार लोकसभा चुनाव में हार गए थे। मीरा मुंडा लंबे वक्त से पार्टी के लिए काम कर रही हैं लेकिन अर्जुन मुंडा के चुनाव हारने के बाद उनकी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारकर बीजेपी ने टिकट मुंडा परिवार के पास ही रखा है। वह पोटका सीट से चुनाव लड़ रही हैं।

2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो के संजीब सरदार ने बीजेपी की मेनका सरदार को लगभग 50 हजार वोटों के अंतर से पोटका में हराया था। इस वजह से इस सीट पर चुनावी मुकाबला बेहद कठिन माना जा रहा है।

खुद सांसद बने तो भाई, बेटे को दिलाया टिकट

शत्रुघ्न महतो उर्फ शरद महतो बाघमारा सीट से तीन बार बीजेपी के विधायक रहे ढुल्लू महतो के बड़े भाई हैं। ढुल्लू इस बार बीजेपी के टिकट पर धनबाद से सांसद चुने गए हैं तो पार्टी ने बाघमारा की सीट से उनके भाई को उम्मीदवार बना दिया। 2019 में इस सीट पर बेहद नजदीकी मुकाबला रहा था और ढुल्लू महतो ने 800 वोटों से जीत दर्ज की थी।

आलोक सोरेन दुमका लोकसभा सीट से झामुमो के सांसद नलिन सोरेन के बेटे हैं। आलोक सोरेन शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में नलिन यहां से 30 हजार वोटों से जीते थे।

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झारखंड सरकार में मंत्री रहीं जोबा मांझी इस बार लोकसभा चुनाव में सिंहभूम सीट से जीतीं तो उनके बेटे जगत मांझी को झामुमो ने विधानसभा का टिकट दे दिया। वह मनोहरपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां से जोबा मांझी 16 हजार वोटों से जीती थी।

पति जेल में बंद, पत्नी लड़ रहीं चुनाव

झारखंड में चार बार विधायक और मंत्री भी रहे आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम इसलिए चुनाव लड़ रही हैं क्योंकि आलमगीर आलम जेल में हैं। निशात आलम को पाकुड़ सीट से चुनाव मैदान में उतार गया है। 2019 में आलमगीर ने यहां से 60 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीता था।

इसी तरह 50 साल की तारा देवी बीजेपी विधायक इंद्रजीत महतो की पत्नी हैं। वह सिंदरी सीट से चुनाव मैदान में हैं क्योंकि इंद्रजीत का स्वास्थ्य खराब है। 2019 में इंद्रजीत ने यहां से 8000 वोटों से जीत हासिल की थी।

इससे पता चलता है कि बीजेपी, झामुमो या फिर कांग्रेस राज्य के सभी बड़े दलों ने खुलकर अपने परिवार के लोगों को टिकट दिया है।