वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के बीच एक बार फिर ठन गयी है। हाल में अमेरिकन बार एसोसिएशन (एबीए) द्वारा आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में बोलते हुए सिंघवी कुछ ऐसी बातें कह दी थीं, जिसके लिए अब उन्हें बीसीआई को सफाई देनी पड़ रही है।

सिंघवी ने क्या कहा था?

सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने देश में कानूनी शिक्षा की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय मूल्यांकन निकाय (National Assessment Body) की मांग की थी, जो बीसीआई से स्वतंत्र हो। इसके अलावा एक अन्य सुझाव के तौर पर उन्होंने एक अलग Broad-Based Group की भी बात कही थी, जिसमें शिक्षाविद शामिल हों।

बता दें कि बीसीआई एक स्वायत्त निकाय है। यही भारत में कानूनी पेशे और शिक्षा के रेगुलेशन का काम देखती है। बीसीआई की मंजूरी के बिना कोई कानूनी संस्था स्थापित नहीं की जा सकती। एडवोकेट्स एक्ट के तहत, बीसीआई अपीलीय निकाय है जो वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही में राज्य बार काउंसिल द्वारा लिए गए फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है।

सिंघवी ने कानून सुधार, वकीलों को अनुशासित करने, कानूनी शिक्षा और चुनावी राजनीति के उतार-चढ़ाव सहित बीसीआई की “महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों” की ओर इशारा किया था।

अब क्या कह रहे सिंघवी?

सिंघवी के बयान पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। साथ ही उनके किसी भी सुझाव को स्वीकर करने से भी इनकार कर दिया था। बीसीआई अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने अपने हस्ताक्षरित एक बयान में सिंघवी के बयान को “छिपे हुए एजेंडे और छिपे हुए मकसद” के साथ निराधार और दुर्भावनापूर्ण बताया। बीसीआई ने यह भी कहा था कि वरिष्ठ वकील का यह विचार कि कानूनी पेशे को कुछ शिक्षाविदों द्वारा रेगुलेट किया जाना चाहिए “दुर्भाग्यपूर्ण” है। बयान में आगे कहा गया है कि सिंघवी ने “कुछ तथाकथित प्रबंधकों के हाथों भारतीय कानूनी शिक्षा को बेचने” के लिए यह सुझाव दिया था।

बीसीआई की नाराजगी के बाद सिंघवी कह रहे हैं कि उनके बयान को मीडिया ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया। सिंघवी का कहना है कि उन्होंने अपने भाषण के दौरान देश में कानूनी शिक्षा और समग्र पेशे को रेगुलेट करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) की वैधानिक शक्तियों पर सवाल नहीं उठाया।

“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरे भाषण को पूरी तरह से संदर्भ से अलग पेश किया गया और मीडिया में गलत तरीके से उद्धृत किया गया। उसी आधार पर बीसीआई ने कुछ टिप्पणियां की हैं। काश इन अनुचित टिप्पणियों को करने से पहले किसी ने मेरा भाषण विधिवत सुना होता…।”

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि उनका 20 मिनट का संबोधन देश में कानूनी शिक्षा की व्यापक चुनौतियों पर केंद्रित था।

“बार के एक वरिष्ठ सदस्य के रूप में मैं कानूनी शिक्षा और कानूनी पेशे को रेगुलेट करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया की वैधानिक शक्तियों, कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरी तरह से पहचानता हूं और उनकी सराहना करता हूं। एक वैधानिक नियामक के रूप में बीसीआई की सुस्थापित शक्तियां है। मेरा इस पर सवाल उठाने का ना तो कोई इरादा था ना ही विचार और ना ही मैंने वास्तव में ऐसा किया है।”

बता दें कि एबीए द्वारा आयोजित सम्मेलन का उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने किया था। सिंघवी ने वहां ‘कानूनी शिक्षा का भविष्य : कानूनी पेशे का वैश्वीकरण?’ विषय पर अपनी बात रखी थी।