Devdutt Pattanaik on Arts and Culture: (द इंडियन एक्सप्रेस ने UPSC उम्मीदवारों के लिए इतिहास, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कला, संस्कृति और विरासत, पर्यावरण, भूगोल, विज्ञान और टेक्नोलॉजी आदि जैसे मुद्दों और कॉन्सेप्ट्स पर अनुभवी लेखकों और स्कॉलर्स द्वारा लिखे गए लेखों की एक नई सीरीज शुरू की है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स के साथ पढ़ें और विचार करें और बहुप्रतीक्षित UPSC CSE को पास करने के अपने चांस को बढ़ाएं। पौराणिक कथाओं और संस्कृति में विशेषज्ञता रखने वाले प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक ने अपने इस लेख में भारत में घोड़ों के इतिहास को लेकर बदलावों पर विस्तार से चर्चा की है।)

कई लोग तर्क देते हैं कि घोड़े भारत के मूल निवासी हैं और प्रागैतिहासिक काल में इन्हें भारत में पाला भी जाता था। उनका तर्क है कि भीमबेटका में घोड़ों के गुफा चित्र इस बात का प्रमाण हैं कि हड़प्पा काल (2500-2000 ईसा पूर्व) से भी पहले भारत में घोड़े मौजूद थे लेकिन यह बिल्कुल सच नहीं है।

नक्काशियों में घोड़ों का अस्तित्व

इक्वस नामाडिकस नामक घोड़े की प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप से विलुप्त हो जाने वाली प्रजाति है। इक्वस नामाडिकल घोड़े लगभग 11,700 साल पहले होलोसीन युग में भारत से लुप्त हो गये थे। भारत में पायी जाने वाली कलाकृतियों में नहीं इन्हें दर्शाया गया है। नर्मदा घाटी में इनके जीवाश्म पाए गए हैं। भीमबेटका भोपाल के पास विंध्य पहाड़ियों पर स्थित है । यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है जो मानव कल्पना के कुछ प्रारंभिक अवशेषों को संजोए हुए है। सात पहाड़ियों में फैली और 700 से ज़्यादा शैलाश्रयों वाली ये गुफाएं न केवल प्रागैतिहासिक आवास हैं बल्कि ऐसे कैनवास भी हैं जिन पर आदिमानव ने नक्काशी और चित्रकारी की थी।

1957 में पुरातत्ववेत्ता वी.एस. वाकणकर द्वारा पहली बार इसके प्रागैतिहासिक महत्व को मान्यता दिए जाने के बाद से भीमबेटका दक्षिण एशिया में मानव विकास और सांस्कृतिक इतिहास की हमारी समझ का एक अहम केन्द्र बन गया है।

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भीमबेटका में सबसे पुरानी शैल कला?

भीमबेटका को वास्तव में उल्लेखनीय बनाने वाली चीज़ें इसके शैलचित्र यानी पत्थर पर उकेरे गए कप्यूल (कप के आकार के गड्ढे) और रेखीय आकृतियाँ हैं। कुछ विशेषज्ञ, खासकर रॉबर्ट बेडनारिक, बताते हैं कि ये 700,000 साल पुराने हो सकते हैं, शायद होमो सेपियंस के धरती पर आने से भी पहले। ऑडिटोरियम गुफा में ये अचुलियन औज़ारों की परतों के नीचे दिखाई देते हैं, जो ये भी दर्शाते हैं कि इन्हें प्राचीन मानवों ने बनाया था। यदि ऐसा है, तो मध्य प्रदेश के दराकी-चट्टान के साथ भीमबेटका को दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात शैल कला का खिताब मिल सकता है।

भीमबेटका की लोकप्रिय छवि की बात करें तो शिकार, नर्तकियों और घुड़सवारों के चित्रों से आती है। कुछ रिपोर्टो का दावा है कि ये 30,000 साल पुराने हैं लेकिन विद्वान अतिशयोक्ति से सावधान करते हैं। उत्कीर्णन के विपरीत इन चित्रों का विश्वसनीय वैज्ञानिक काल-निर्धारण नहीं है। लोगों ने पहले के चित्रों पर चित्रकारी की है जिससे काल-निर्धारण मुश्किल हो गया है।

इस मामले में ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि इनमें से ज़्यादातर मध्यपाषाण काल ​​और उसके बाद के होलोसीन काल यानी लगभग 10,000 साल पहले की हैं और कई ऐतिहासिक काल तक फैली हुई हैं। पाषाण युग और बाद के ताम्र युग (ताम्रपाषाण युग) की कलाकृतियों के स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं जब खेती और पशुपालन शुरू हुआ था।

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वैदिक काल में घोड़े

भीमबेटका में उत्कीर्ण कुछ दृश्य ऐसे भी हैं, जिनमें पुरुषों को घोड़ों या हाथियों पर सवार दिखाया गया है। ये दृश्य भारतीय समाज में इन जानवरों के आगमन से पहले के नहीं हो सकते। आधुनिक घोड़ों को लगभग 2200 ईसा पूर्व यूरेशियन मैदानों में पालतू बनाया गया था। भारत में घोड़ों के प्रमाण केवल महापाषाण काल, लगभग 1000 ईसा पूर्व से ही मिलते हैं। ये वैदिक लोगों के साथ आए थे।

ऋग्वेद की तिथि 1500 ईसा पूर्व है। उसमें विश्व का सबसे प्राचीन अश्व-काव्य है। 1500 ईसा पूर्व से पहले किसी भी सभ्यता में घोड़े नहीं थे। यह लगभग इसी समय मिस्र, यूनान और चीन तक पहुंचा। रथ की सवारी पहले आई क्योंकि शुरुआती नस्ल के घोड़े सवारी के लिए बहुत छोटे थे। घुड़सवारी बाद में आई। घुड़सवार दुनियाभर में 700 ईसा पूर्व के बाद ही दिखाई दिए। इसलिए भीमबेटका में घोड़ों के चित्र अधिकतम 2500 साल पुराने हैं। भारत की मानसूनी जलवायु में घोड़ों का प्रजनन कठिन है। महाराष्ट्र (भीमथड़ी घोड़ा), गुजरात (काठियावाड़ घोड़ा) और राजस्थान (मारवाड़ी घोड़ा) में अश्व प्रजनन 1200 ईस्वी के बाद ही शुरू हुआ है।

हाथियों को नहीं बनाया गया पूरी तरह पालतू

घोड़ों की ही तरह हाथियों को भी पकड़ा गया था लेकिन उन्हें कभी पूरी तरह से पालतू नहीं बनाया गया क्योंकि किसी भी चयनात्मक प्रजनन कार्यक्रम ने उनके जीव विज्ञान को कभी नया रूप नहीं दिया। पालतू हाथियों का सबसे पहला उल्लेख 800 ईसा पूर्व के वैदिक अनुष्ठान पुस्तिकाओं में मिलता है।

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ये शैलाश्रय स्वयं मनुष्यों के लिए आदर्श आवास थे। प्रचुर मात्रा में झरने का पानी, हिरण और सूअर जैसे शिकार के जानवर और प्राकृतिक संरक्षण ने भीमबेटका को लाखों वर्षों तक एक समृद्ध बस्ती बनाए रखा। इसके अलावा दीवारों पर अंकित हाथों से बनी कुल्हाड़ियां और हथौड़ों के अवशेष भी मिले हैं, जो कि पुरापाषाण काल ​​से लेकर मध्यपाषाण काल ​​तक यहां निरंतर निवास का प्रमाण देते हैं। यहां तक कि 74,000 साल पहले हुए टोबा महाविस्फोट ने भी यहां जीवन का सफाया नहीं किया – पत्थर के औजारों की परंपराएँ निर्बाध रूप से चलती रहीं।

क्या है भीमबेटका का इतिहास?

“भीमबेटका” नाम की बात करें तो ये उस स्थान से जुड़ा है, जहां महाभारत के भीम और हनुमान की भेंट हुई थी। इसकी असली विरासत कहीं ज़्यादा गहरी है और प्रागैतिहासिक मानवता से जुड़ी है। यह स्थल संपूर्ण इतिहास को समेटे हुए है। संभवतः 500,000 वर्ष से भी पुराने प्रारंभिक मानव उत्कीर्णन से लेकर मध्यपाषाण काल ​​के शिकार और घोड़ों और हाथियों के साथ ऐतिहासिक युद्ध दृश्यों तक को अपने में समाहित किए हए हैं। यह हमें बताता है कि कला आधुनिक मानव के साथ अचानक नहीं आई; यह धीरे-धीरे विकसित हुई है।

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(देवदत्त पटनायक एक प्रसिद्ध पौराणिक कथाकार हैं जो कला, संस्कृति और विरासत पर लिखते हैं।)