समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। उच्चतम न्यायालय में याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी से लेकर अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज वकील जिरह कर रहे हैं। 19 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मैं 20 अप्रैल को लंच तक अपनी बात खत्म कर लूंगा। इस पर CJI चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने उन्हें टोका।
‘अनंत काल तक नहीं चल सकती बहस’
सीजेआई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि आप आज ही अपनी बात समाप्त कर लीजिए। इस पर सिंघवी ने दलील दी कि यह ऐसा मसला है जिसे बहुत बारीकी से देखने की जरूरत है। मैं कुछ फैक्ट्स रखूंगा। सिंघवी की इस बात पर जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि आपको तो कोर्ट में लंबा अनुभव है और आप जानते हैं कि देश में कहीं अनंत काल तक बहस नहीं चल सकती है।
सिंघवी ने जवाब दिया- कोर्ट ने कई सारे सवाल पूछे हैं और मुझे उनका जवाब देना है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि इसकी (जवाब देने की) सीमा आज ही है। हमें निर्धारित समय सीमा के भीतर केसेज खत्म करने की आदत डालनी होगी, क्योंकि और केसेस पेंडिंग हैं। उधर, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बेंच से लेकर बार तक… ऐसा नहीं है कि हमारे पास इसे तय करने के लिए बहुत लंबा वक्त है। कई बार आप भूल जाते हैं
क्या गे या लेस्बियन कपल बच्चा गोद नहीं ले सकते?
19 अप्रैल को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि समलैंगिक विवाह के बाद ऐसे कपल यदि बच्चे एडॉप्ट करते हैं तो उनपर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बेंच ने कहा कि लेस्बियन (Lesbian) या गे (Gay) कपल को अब भी व्यक्तिगत तौर पर बच्चा अडॉप्ट करने की अनुमति है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र की दलील पर कहा, ‘ मान लीजिए कि कोई कपल गे रिलेशनशिप में है या लेस्बियन रिलेशनशिप में हैं तो उनमें से कोई भी बच्चा गोद ले सकता है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना कि इससे बच्चे के दिमाग पर असर पड़ेगा, ठीक नहीं है। अभी भी जो कानून है उसके मुताबिक दोनों में से कोई बच्चा अडॉप्ट कर सकता है। एक बार जब आपने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, फिर 2 लोग साथ रहने के लिए और अडॉप्ट करने के लिए स्वतंत्र हैं।
NCPCR की क्या है दलील?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) भी सुप्रीम कोर्ट गया है। एनसीपीसीआर ने अपनी अर्जी में दलील दी है कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और जूविनाइल जस्टिस एक्ट 2015, समलैंगिक कपल्स को एडॉप्शन की अनुमति नहीं देता है। एनसीपीसीआर के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट किसी गे कपल को एक फीमेल चाइल्ड अडॉप्ट करने की अनुमति नहीं देता है।
एनसीपीसीआर ने कहा है कि शादी का अधिकार और कई अधिकारों और दायित्व के साथ आता है, जो कानून के जरिये प्रोटेक्टेड है। गोद लिया बच्चा हो या सरोगेसी के जरिए बच्चा, कई तरह के बेनिफिट सिर्फ मैरिड कपल्स के लिए हैं। एनसीपीसीआर ने अपनी अर्जी में अंबूरी राय वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया की याचिका का विरोध किया है। यह याचिका, 20 याचिकाओं में एक है।
क्या है ‘अंबूरी राय वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया’ की याचिका?
अंबूरी राय वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया की याचिका में एडॉप्शन रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 5(2)A और 5(3) को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। सेक्शन 5(2)A के मुताबिक यदि कोई कपल बच्चा गोद लेना चाहता है तो दोनों की सहमति आवश्यक है और शादीशुदा होना जरूरी है। साथ ही कोई सिंगल पुरुष किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता है।
ठीक इसी तरह, सेक्शन 5(3) में कहा गया है कि कोई भी कपल तब तक बच्चा गोद नहीं ले सकता है जब तक दोनों की कम से कम 2 साल की स्थिर शादीशुदा जिंदगी ना हो।