सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त को जमानत देने पर ट्रायल कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा था। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के इस तरह के आदेश से जमानत से जुड़े आवेदन पर जिला न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर साबित होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि यह नोट किया जाना चाहिए कि ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर अभियुक्त को जमानत दी थी कि उसने ऐसा जुर्म नहीं किया है, जिसके लिए उसे उम्र कैद की सजा दी जाए। साथ ही उसके साथी अभियुक्त को भी जमानत मिल गई है।

CJI चंद्रचूड़ ने और क्या कहा?

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने आदेश में कहा कि ‘इस बात का कोई जस्टिफिकेशन नहीं है कि हाई कोर्ट, ट्रायल कोर्ट से जमानत के लिए स्पष्टीकरण मांगे और यह पूछे कि किस आधार पर जमानत दी? सीजेआई ने कहा कि हाईकोर्ट के इस तरह के आदेश से डिस्ट्रिक ज्यूडिशरी द्वारा बेल एप्लीकेशन पर विचार करने की स्वतंत्रता बुरी तरह प्रभावित होती है। यह ठीक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में और क्या कहा?

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्त को उसी शर्तों पर रिहा किया जाए, जो ट्रायल कोर्ट ने रखे थे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस फैसले पर भी स्टे लगा दिया, जिसके तहत ट्रायल कोर्ट से एक्सप्लेनेशन मांगा गया था।

अडानी मामले पर मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाने से CJI का इनकार

24 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच के सामने ही एडवोकेट एमएल शर्मा ने अडानी ग्रुुप पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से जुड़ी याचिका लगाई और इस मामले में मीडिया की रिपोर्टिंग पर रोक लगाने की मांग की। सीजेआई ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि, “हम मीडिया को कोई निषेधाज्ञा जारी नहीं करने जा रहे हैं।”

इसके पहले 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में केंद्र के सुझाव को सीलबंद लिफाफे में स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि वह निवेशकों के हितों में पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहता है। इसलिए सीलबंद लिफाफे में केंद्र के सुझाव को स्वीकार नहीं करेगा।